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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 92 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 92/ मन्त्र 3
    ऋषिः - प्रियमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-९२
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    इन्द्रा॑य॒ गाव॑ आ॒शिरं॑ दुदु॒ह्रे व॒ज्रिणे॒ मधु॑। यत्सी॑मुपह्व॒रे वि॒दत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑य । गाव॑: । आ॒ऽशिर॑म् । दु॒दु॒ह्रे । व॒ज्रिणे॑ । मधु॑ ॥ यत् । सी॒म् । उ॒प॒ऽह्व॒रे । वि॒दत् ॥९२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्राय गाव आशिरं दुदुह्रे वज्रिणे मधु। यत्सीमुपह्वरे विदत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राय । गाव: । आऽशिरम् । दुदुह्रे । वज्रिणे । मधु ॥ यत् । सीम् । उपऽह्वरे । विदत् ॥९२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 92; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    १-३ राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (वज्रिणे) वज्रधारी (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] के लिये (गावः) वेदवाणियों ने (आशिरम्) सेवने वा पकाने योग्य पदार्थ [दूध, दही, घी आदि] को और (मधु) मधुविद्या [यथार्थ ज्ञान] को (दुदुह्रे) भर दिया है। (यत्) जबकि उसने [उन वेदवाणियों को] (उपह्वरे) अपने पास (सीम्) सब प्रकार (विदत्) पाया ॥३॥

    भावार्थ

    ऐश्वर्यवान् पुरुष वेदवाणियों से सुशिक्षित होकर दूध आदि, भोग्य पदार्थ प्राप्त करके यथार्थ ज्ञान बढ़ावें ॥३॥

    टिप्पणी

    १-३ व्याख्याताः-अ० २०।२२।४-६ ॥

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    विषय

    देखिए व्याख्या अथर्व०२०.२२.४-६ पर।

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    भाषार्थ

    (यत्) जब (उपह्वरे) पर्वतों के एकान्त स्थान में अभ्यास द्वारा (सीम्) सर्वव्याप्त परमेश्वर (विदत्) प्राप्त कर लिया जाता है, तब (गावः) हमारी स्तुतियाँ, (वज्रिणे) पापों पर वज्रापहारी (इन्द्राय) परमेश्वर के लिए, हमारे (मधु) मधुर तथा (आशिरम्) परिपक्व भक्तिरसों को (दुदुह्रे) प्रस्रवित कर देती हैं।

    टिप्पणी

    [सीम्=परिग्रहार्थीयः (निरु০ १.३.७)। परिग्रहः=सर्वतो ग्रहणं सर्वदेशित्वम्। गौः=वाङ् नाम (निघं০ १.११)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    Lands and cows, suns and planets, indeed all objects in motion, exude for Indra, wielder of thunder, the ichor of emotional adoration seasoned with ecstasy like honey sweet milk mixed with soma which he receives close at hand and cherishes.

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    Translation

    The Devotees (Gavah) for attaining the Almighty God who holds thunder-bolt milk out favourable knowledge (Madhu) when He finds these devotees in His nearest position.

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    Translation

    The Devotees (Gavah) for attaining the Almighty God who holds thunder-bolt milk out favorable knowledge (Madhu) when He finds these devotees in His nearest position.

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    Translation

    When I (a devotee) and the Mighty Lord of Destruction of evil and ignorance together climb-up to the shelter, free from all the three kinds of mist cries and troubles, (i.e., Adhyatmic, Adhibhautic and Adhidaivic) of the shelterer of all, we, drinking deep the sweet nectar, contact the highest state of the Friend, Radiant with 21 times splendor and glory.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १-३ व्याख्याताः-अ० २०।२२।४-६ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১-৩ রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (বজ্রিণে) বজ্রধারী (ইন্দ্রায়) ইন্দ্রের [ঐশ্বর্যবান্ রাজার] জন্য (গাবঃ) বেদবাণীসমূহ (আশিরম্) সেবন বা রন্ধনযোগ্য পদার্থ [দুধ, দই, ঘী আদি] কে (মধু) মধুবিদ্যা [যথার্থ জ্ঞান] কে (দুদুহ্রে) পরিপূর্ণ করে। (যৎ) যখন রাজা [সেই বেদবাণীসমূহ]কে (উপহ্বরে) নিজের মধ্যে (সীম্) সকলপ্রকারে (বিদৎ) প্রাপ্ত করে/হয় ॥৩॥

    भावार्थ

    ঐশ্বর্যবান্ পুরুষ বেদবাণীসমূহ দ্বারা সুশিক্ষিত হয়ে দুধ আদি ভোগ্য পদার্থ প্রাপ্ত করে যথার্থ জ্ঞান বৃদ্ধি করুক ॥৩॥

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    भाषार्थ

    (যৎ) যখন (উপহ্বরে) পর্বতের একান্ত স্থানে অভ্যাস দ্বারা (সীম্) সর্বব্যাপ্ত পরমেশ্বর (বিদৎ) প্রাপ্তি হয়, তখন (গাবঃ) আমাদের স্তুতি, (বজ্রিণে) পাপের ওপর বজ্রাপহারী (ইন্দ্রায়) পরমেশ্বরের জন্য, আমাদের (মধু) মধুর তথা (আশিরম্) পরিপক্ব ভক্তিরস (দুদুহ্রে) প্রস্রবিত করে ।

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