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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 27/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - उदीची दिक्, सोमः, स्वजः, अशनिः छन्दः - पञ्चपदा ककुम्मतीगर्भाष्टिः सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
    4

    उदी॑ची॒ दिक्सोमोऽधि॑पतिः स्व॒जो र॑क्षि॒ताशनि॒रिष॑वः। तेभ्यो॒ नमो॑ऽधिपतिभ्यो॒ नमो॑ रक्षि॒तृभ्यो॒ नम॒ इषु॑भ्यो॒ नम॑ एभ्यो अस्तु। यो॒स्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मस्तं वो॒ जम्भे॑ दध्मः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उदी॑ची । दिक् । सोम॑: । अधि॑ऽपति: । स्व॒ज: । र॒क्षि॒ता । अ॒शनि॑: । इष॑व: । तेभ्य॑: । नम॑: । अधि॑पतिऽभ्य: । नम॑: । र॒क्षि॒तृऽभ्य॑: । नम॑: । इषु॑ऽभ्य: । नम॑: । ए॒भ्य॒: । अ॒स्तु॒ । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: । तम् । व॒: । जम्भे॑ । द॒ध्म: ॥२७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदीची दिक्सोमोऽधिपतिः स्वजो रक्षिताशनिरिषवः। तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु। योस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उदीची । दिक् । सोम: । अधिऽपति: । स्वज: । रक्षिता । अशनि: । इषव: । तेभ्य: । नम: । अधिपतिऽभ्य: । नम: । रक्षितृऽभ्य: । नम: । इषुऽभ्य: । नम: । एभ्य: । अस्तु । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: । तम् । व: । जम्भे । दध्म: ॥२७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 27; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    सेना व्यूह का उपदेश।

    पदार्थ

    (उदीची=०-च्याः) उत्तर वा बाईं ओर वाली (दिक्=दिशः) दिशा का (सोमः) प्रेरक वा उत्तेजक [सोम पद वाला सेनापति] (अधिपतिः) अधिष्ठाता हो, (स्वजः) आप उत्पन्न होनेवाला वा बहुत दौड़नेवाले साँप [के समान सेना व्यूह] (रक्षिता) रक्षक होवे, और (अशनिः) बिजुली (इषवः) बाण होवें। (तेभ्यः अधिपतिभ्यः) उन अधिष्ठाताओं और... [म० १] ॥४॥

    भावार्थ

    इस दिशा में (सोम) नाम अधिकारी सेनापति (स्वज) नाम सेना व्यूह रचकर बिजुली के अस्त्र शस्त्रों से शत्रुओं को जीतकर.... [म० १] ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(उदीची) उदीच्याम्-सू० २६ म० ४। तत्रवद् रूपसिद्धिः। उदीच्याः। उत्तरभागस्थितायाः। वामभागवर्त्तमानायाः (सोमः) अ० ३।१६।१। षू प्रेरणे-मन्, तुदादिः। प्रेरकः। उत्तेजकः सेनापतिः (स्वजः) स्व+जः। यद्वा। सु+अज गतिक्षेपणयोः-अच्। स्वयमेवोत्पन्नः स्वजनशीलो वा सर्पः स्वजः-इति सायणः। तथाविधसर्पवत् सेनाव्यूहः (अशनिः) अर्त्तिसृधृधम्यम्यश्य०। उ० २।१०२। इति अश भक्षणे; वा अशू व्याप्तौ-अनि। विद्युद्विद्या। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    उदीची दिशा

    व्याख्याः शृङ्गी ऋषि कृष्ण दत्त जी महाराज

    चतुर्थ जो भुज है वह उदीची दिक् कहलाती हैउदीची का अभिप्राय क्या है? उदीची कहते हैं उत्तरायण कोतो जितने साधकजन हैं वे उत्तरायण में, पूर्वाभिमुख करके साधना करते हैं, योगाभ्यास करते हैं, प्राण की गति को लेते हैंक्योंकि जितना भी ज्ञान का भण्डार है, वह उत्तरायण में रहता हैहमारे यहाँ उत्तरायण और दक्षिणायन दो प्रकार की दिशा कहलाती है।

    दो प्रकार का ज्ञान होता है एक उत्तरायण होता है, एक दक्षिणायन होता हैएक माह में दो पक्ष होते हैं एक उत्तरायण होता है, एक दक्षिणायन होता हैएक शुक्ल होता है, तो एक कृष्ण होता हैकृष्ण अंधकार को कहते हैं और शुक्ल प्रकाश को कहते हैंतो उत्तरायण, यह माता का चतुर्थ भुज कहलाता है।

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    विषय

    उदीची दिक्

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार प्रत्याहार का पाठ पढ़ने पर हम उन्नत होंगे। यही ('उदीची दिक्') । का सन्देश है-'उद् अञ्च'-ऊपर चलें-उन्नति करते चलें। इस उन्नति की दिशा का (अधिपतिः) = स्वामी (सोमः) = सोम है-सौम्य स्वभाव का, विनीत । वस्तुत: वास्तविक उन्नति की पहचान है ही 'विनीतता'। भतृहरि के शब्दों में ('नसत्वेनोन्त्रमन्त:') = नम्रता से ही ये अधिक उन्नत होते हैं। २. इस उन्नति का (रक्षिता) = रक्षक (स्वजः) = खूब क्रियाशीलता है-'अज गतौ'। क्रियाशीलता के द्वारा सब बुराइयों को परे फेंकता हुआ यह उन्नत और उन्नत होता चलता है। (अशनि:) = अग्नि इस दिशा की (इषवः) = प्रेरक है। अग्नि की लपट सदा ऊपर जाती है। सदा ऊपर जाती हुई यह अग्नि की लपट हमें भी ऊपर उठने की प्रेरणा देती है। [शेष पूर्ववत्] |

    भावार्थ

    इन्द्रियों का विषयों से प्रत्याहरण हमें ऊपर ले-चलता है। उन्नत पुरुष विनीत बनता है। क्रियाशीलता द्वारा मलों को दूर फेंकता हुआ यह उन्नति का रक्षक होता है। आग की ऊर्ध्वमुखी ज्वाला से यह ऊपर-और-ऊपर उठने की प्रेरणा लेता है।

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    भाषार्थ

    (उदीची दिक्) उत्तर की दिशा है, (सोमः अधिपति) सौम्य स्वभाव वाला अधिपति है, (स्वजः) स्वयम् अर्थात् स्वभावत: उत्पन्न हुआ है, (रक्षिता) रक्षा करता है, (अशनिः इषवः) व्याप्त प्रकाश इषुरूप हैं। (तेभ्यः) उन के प्रति (नमः) हमारा प्रह्णीभाव हो, (अधिपतिभ्यः नमः) उन अधिपतियों के प्रति प्रह्णीभाव हो, (रक्षितृभ्यः नमः ) उन रक्षकों के प्रति प्रह्णीभाव हो, (इषुभ्यः नमः) इषुरुप उनके प्रति प्रह्णीभाव हो, (एभ्यः) इन सबके प्रति (नमः) प्रह्णीभाव (अस्तु) हो। (यः) जो (अस्मान् द्वेष्टि) हमारे साथ द्वेष करता है, (यम् वयम् द्विष्मः) और जिसके साथ प्रतिक्रियारूप हम द्वेष करते हैं (तम्) उसे (व: जम्भे) तुम्हारी दाढ़ में (दध्मः) हम स्थापित करते हैं। अशनि=आशूङ व्याप्तौ (भ्वादिः)। अशनि उत्तरध्रुव में व्याप्त होकर वहाँ के अन्धकार के विनाश के लिए इषुरूप है।

    टिप्पणी

    [सोमः=सौम्यस्वभाववाला है उत्तरदिशास्थ Aurora (औरोरा) यथा "A luminous meteoric Phenomenon of electrical charactor seen in and towards the Polar regions with a tremulous motion and giving forth streams of light. Aurora Borealis, north lights." (चेम्बरज, २०वीं शतक, कोश)।"औरोरा" यह प्रकाशमान घटना है, जोकि वैद्युत है, और उत्तरदिशा सम्बन्धी है, जोकि उत्तर व में दृष्टिगोचर होती है, चन्चलगतिवाली है, और प्रकाशमयी धाराओंरूपी है, इसे उत्तरीय प्रकाश कहते हैं। ये धाराएँ प्रकाशमयी है, और शीतल हैं। अतः सौम्यस्वभाव वाली हैं।।]

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    विषय

    शक्तिधारी देव के छः रूप ।

    भावार्थ

    (उदीची दिक्) उदीची-उत्तर की दिशा में (सोमोः अधिपतिः) सोम सब का प्रेरक और उत्पादक प्रभु अधिपति है (स्वजः) स्वतः उत्पन्न, स्वयंभू, परमात्मा (रक्षिता) रक्षक है और (अशनिः इषवः) अशनि वज्र ही उसके बाण हैं (तेभ्यो नमः०) इत्यदि पूर्ववत् ॥

    टिप्पणी

    ‘वरुणोऽधिपतिः’, तै० सं०, मै० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। रुद्रा अग्न्यादयश्च बहवो देवताः। १-६ पञ्चपदा ककुम्मतीगर्भा अष्टिः। २ अत्यष्टिः। ५ भुरिक्। षडृर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Protective ircle of Divine Powers

    Meaning

    On the left in the northern quarter, Soma, lord eternal, self-existent controller of self-created negativities is the ruling lord and guardian spirit, his arrows being electric currents of cosmic force. Homage and adoration to all of them. Homage of worship to the ruling lord, homage and service to the protectors, honour and reverence to the arrows, homage and reverence to all these. O lord, whoever hates us or whoever we hate to suffer, all that we deliver unto your divine justice.

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    Translation

    Northern region; The moon is its lord. Svaja (self-born snake) is its defendēr. Thunder (asani) are the arrows. Our homage be to them; homage to the lords; homage to all of them. Him, who hates us and whom we do hate, we commit to your jaws.

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    Translation

    The All-impelling Blissful God is the Lord of the North, natural forces under His control are His protection for us, lightning is His arrows ; etc., etc.

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    Translation

    A peace-loving person is ruler of the Northern region. An ever-activeperson, free from sloth is its warder, and lightning flash the arrows, or to these the rulers, these the warders, and to the arrows. Yea to t ese worship. Within your jaws of justice, we lay the man who hateth us and whom we dislike.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(उदीची) उदीच्याम्-सू० २६ म० ४। तत्रवद् रूपसिद्धिः। उदीच्याः। उत्तरभागस्थितायाः। वामभागवर्त्तमानायाः (सोमः) अ० ३।१६।१। षू प्रेरणे-मन्, तुदादिः। प्रेरकः। उत्तेजकः सेनापतिः (स्वजः) स्व+जः। यद्वा। सु+अज गतिक्षेपणयोः-अच्। स्वयमेवोत्पन्नः स्वजनशीलो वा सर्पः स्वजः-इति सायणः। तथाविधसर्पवत् सेनाव्यूहः (अशनिः) अर्त्तिसृधृधम्यम्यश्य०। उ० २।१०२। इति अश भक्षणे; वा अशू व्याप्तौ-अनि। विद्युद्विद्या। अन्यद् गतम् ॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    On our left side उदीची दिशा हमारे बांइ ओर

    Word Meaning

    ये बांए दिशा मे शरीर में स्थापित मानव हृदय है, जो हमारी मानसिकता में उत्पन्न मानव जीवन मूल्यों के भाव का प्रधान स्थान है, जिस का सोम अधिपति है, उस के लिए प्रणाम | मानव हृदय स्वचालित विद्युत नियन्त्रक नियम से सहज कार्य करता रहता है. यह नियम संसार में हमारे जीवन के सुखों का आधार बनता है. प्रकृति के इस दान के लिए हम अत्यन्त आभारी हैं . और इस दिशा में जो बाधा पहुंचाने वाले तत्व हैं उन्हें हम न्यायोचित परिणाम के लिए प्रकृति को ही समर्पित करते हैं . (आधुनिक शारीरिक विज्ञान के अनुसार मानव हृदय जो निरंतर एक निश्चित गति से रक्त को स्वच्छ कर के सारे शरीर में शुद्ध रक्त का संचार और दूषित पदार्थों का निकास कर रहा है, वह मानव शरीर मे प्रकृति द्वारा स्वत: उत्पन्न विद्युत प्रणाली के कारण से ही है. विद्युत को मोटर आदि चला कर प्रयोग में लाने के लिए वैज्ञानिक Fleming’s Left Hand Rule फ्लेमिन्ग के बाएं हाथ का नियम बताते हैं . यह विद्युत क्रिया प्रकृति का सहज नियम है. ) ( यही ऋषि चिंतन में स्वजोरक्षिताशनि:इषव: का विज्ञान है ) इस अद्भुत विद्युत प्रणाली के लिए हम नमन करते हैं , इस व्यवस्था के द्वारा हमारे शरीर की रक्षा के लिए हम नमन करते हैं , और जो हमारे हृदय के सुचारु कार्य करने में बाधा रूपीशत्रु हैं उन्हें हम ईश्वरीय न्याय व्यवस्था पर छोड़ते है. On our left side is situated the ruler of all our motivations and emotions (our HEART). (Heart’s) self generated independent proper working protects our physical body to ensures orderly life and human existence. For this blessing of Nature we are ever grateful.

    Tika / Tippani

    {It was in deep meditation on the left side of human body that the Rishi could perceive the working of the human heart that operates continuously because it generates its own electrical signal (also called an electrical impulse. (Fleming’s Left Hand Rule on relations between electrical forces is very famous. This motive action of heart electricity comes as a natural, property of electrical phenomenon. ) Modern medical science is able to record this electrical impulse by placing electrodes on the chest. This is called an electrocardiogram (ECG, or EKG).The cardiac electrical signal controls the heartbeat in two ways. First, since each impulse leads to one heartbeat, the number of electrical impulses determines the heart rate. And second, as the electrical signal "spreads" across the heart, it triggers the heart muscle to contract in the correct sequence, thus coordinating each heartbeat and assuring that the heart works as efficiently as possible. The heart's electrical signal is produced by a tiny structure known as the sinus node, which is located in the upper portion of the right atrium. (You can learn about the heart's chambers and valves here.) From the sinus node, the electrical signal spreads across the right atrium and the left atrium, causing both atria to contract, and to push their load of blood into the right and left ventricles. The electrical signal then passes through the AV node to the ventricles, where it causes the ventricles to contract in turn. This left hand motor action natural property of electricity (Fleming’s Rule) provides us with great comforts in our life. For this act of kindness we are ever grateful to Nature and present the impediments in our path for Nature itself to resolve. There is another more direct way to perceive a very close connection of self generated electricity with human body that could not escape a Rishi’s perception in meditation. Human heart located on our left side of the body is self regulated by electronic oscillator at 60 to 70 beats per minute to make us live.

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (উদীচী দিক্) উত্তর দিকের, (সোমঃ অধিপতিঃ) অধিপতি হলো সোম, (স্বজঃ) স্বয়ম্ অর্থাৎ স্বভাবতঃ উৎপন্ন হয়েছে, (রক্ষিতা) রক্ষা করে, (অশনিঃ ইষবঃ) ব্যাপ্ত প্রকাশ ইষুরূপ। (তেভ্যঃ) তার প্রতি (নমঃ) আমাদের প্রহ্বীভাবঃ/নমস্কার হোক, (অধিপতিভ্যঃ নমঃ) সেই অধিপতিদের প্রতি নমস্কার, (রক্ষিতৃভ্যঃ নমঃ) সেই রক্ষকদের প্রতি নমস্কার, (ইষুভ্যঃ নমঃ) ইষুরূপ/বাণরূপ তার প্রতি নমস্কার, (এভ্যঃ) এই সকলের প্রতি (নমঃ) নমস্কার (অস্তু) হোক। (যঃ) যে/যারা (অস্মান্ দ্বেষ্টি) আমাদের সাথে দ্বেষ/হিংসা করে, (যম্ বয়ম্ দ্বিষ্মঃ) এবং যার সাথে প্রতিক্রিয়ারূপে আমরা দ্বেষ করি (তম্) তাকে/সেগুলোকে/তাদের (বঃ জম্ভে) তোমার চোয়ালে (দধ্মঃ) আমরা স্থাপিত করি।

    टिप्पणी

    [সোমঃ= সৌম্য স্বভাবযুক্ত উত্তর দিকের aurora (অরোরা)। যথা “A luminous meteoric phenomenon of electrical charactor seen in and towards the Polar regions with a tremulous motion and giving forth streams of light. Aurora Borealis, northern lights. (চেম্বরজ ২০ শতক, কোশ) "অরোরা" একটি প্রকাশমান ঘটনা, যা বিদ্যুৎ, এবং উত্তর দিকের সাথে সম্পর্কিত, যা উত্তর মেরুতে দৃষ্টিগোচর হয়, ইহা চঞ্চলগতিসম্পন্ন, এবং আলোকময় ধারারূপী, একে উত্তরীয় আলো বলা হয়। এই ধারা আলোকময়, উজ্জ্বল এবং শীতল। অতঃ সৌম/শান্ত স্বভাবযুক্ত।]

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    मन्त्र विषय

    সেনাব্যূহোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (উদীচী=০-ব্যাঃ) উত্তর বা বাম দিকের (দিক্=দিশঃ) দিশার (সোমঃ) প্রেরক বা উত্তেজক [সোম পদের সেনাপতি] (অধিপতিঃ) অধিষ্ঠাতা হোক, (স্বজঃ) স্বতঃ উৎপন্ন হওয়া বা অনেক দ্রুতগামী সাপ [এর সমান সেনা ব্যূহ] (রক্ষিতা) রক্ষক হোক, এবং (অশনিঃ) বিদ্যুৎ (ইষবঃ) বাণ হোক। (তেভ্যঃ) সেই (অধিপতিভ্যঃ) অধিষ্ঠাতা ও (রক্ষিতৃভ্যঃ) রক্ষকদের জন্য (নমো নমঃ) অনেক অনেক সৎকার বা অন্ন এবং (এভ্যঃ) এই (ইষুভ্যঃ) বাণ [বাণধারী] রক্ষকদের জন্য (নমোনমঃ) অনেক-অনেক সৎকার বা অন্ন (অস্তু) হোক। (যঃ) যে [শত্রু] (অস্মান্) আমাদের সাথে (দ্বেষ্টি) শত্রুতা করে, [অথবা] (যম্) যে [শত্রুদের সাথে] (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) শত্রুতা করি, [হে বীরগণ] (তম্) তাঁকে (বঃ) তোমাদের (জম্ভে) দৃঢ় বন্ধনে (দধ্মঃ) আমরা ধরি/স্থাপন করি ॥৪॥

    भावार्थ

    এই দিশায় (সোম) নামক অধিকারী সেনাপতি (স্বজ) নামক সেনা তৈরি করে, বিদ্যুৎ এর অস্ত্র শস্ত্র দ্বারা শত্রুদের জয় করে সৈনিকদের সহিত যশস্বী হয়ে ধর্মাত্মাদের রক্ষা করুক ॥৪॥

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