अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 12/ मन्त्र 3
ऋषिः - ऋभुः
देवता - वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - रोहिणी वनस्पति सूक्त
1
सं ते॑ म॒ज्जा म॒ज्ज्ञा भ॑वतु॒ समु॑ ते॒ परु॑षा॒ परुः॑। सं ते॑ मां॒सस्य॒ विस्र॑स्तं॒ समस्थ्यपि॑ रोहतु ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । ते॒ । म॒ज्जा । म॒ज्ज्ञा । भ॒व॒तु॒ । सम् । ऊं॒ इति॑ । ते॒ । परु॑षा । परु॑: । सम् । ते॒ । मां॒सस्य॑ । विऽस्र॑स्तम् । सम् । अस्थि॑ । अपि॑ । रो॒ह॒तु॒ ॥१२.३॥
स्वर रहित मन्त्र
सं ते मज्जा मज्ज्ञा भवतु समु ते परुषा परुः। सं ते मांसस्य विस्रस्तं समस्थ्यपि रोहतु ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । ते । मज्जा । मज्ज्ञा । भवतु । सम् । ऊं इति । ते । परुषा । परु: । सम् । ते । मांसस्य । विऽस्रस्तम् । सम् । अस्थि । अपि । रोहतु ॥१२.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अपने दोष मिटाने का उपदेश।
पदार्थ
[हे विद्वान्] (ते) तेरे (मज्जा) हाड़ की मींग (मज्ज्ञा) हाड़ की मींग से (संभवतु) मिल जावे (उ) और (ते परुः) तेरा जोड़ (परुषा) जोड़ से (सम्=संभवतु) मिल जावे। (ते) तेरे (मांसस्य) मांस का (विस्रस्तम्) हटा हुआ अंश (सम्=सं रोहतु) जुड़ जावे, और (अस्थि) हाड़ (अपि) भी (सं रोहतु) जुड़ कर ठीक हो जावे ॥३॥
भावार्थ
मनुष्य अपने चंचल मन को ज्ञानप्राप्ति में ऐसा जोड़ दे, जैसे वैद्य विचलित अवयवों को जोड़ देता है ॥३॥
टिप्पणी
३−(ते) तव (मज्जा) अ० १।११।४। अस्थिमध्यस्थस्नेहः (मज्जा) अस्थिस्नेहेन (सं भवतु) संयुक्तो भवतु (उ) अपि (परुषा) पर्वणा (परुः) पर्व (मांसस्य) मन ज्ञाने धृतौ च-स प्रत्ययः। रक्तजधातुविशेषस्य (विस्रस्तम्) वि+स्रन्सु पतने-क्त। विचलितो भागः (अस्थि) शरीरस्थधातुविशेषः (अपि) (सं रोहतु) संहितं भवतु ॥
विषय
विस्त्रस्त मांस का फिर से ठीक हो जाना
पदार्थ
१. हे प्रहत [घायल] व्यक्ति! (ते मज्जा) = तेरे शरीर में स्थित यह मज्जा नामक धातु (मज्ज्ञा संभवतु) = मज्जा के साथ संयुक्त हो जाए (उ) = और (परुषा) = तेरे पर्व [जोड़] के साथ (परु:) = पर्व (सम्) = जुड़ जाए। २. (ते) = तेरे (मांसस्य) = मांस का जो (विस्त्रस्तम्) = भ्रंश है, वह भी पुन: (रोहतु) = उत्पन्न हो जाए। भ्रष्ट हुआ-हुआ मांस फिर से ठीक हो जाए। (अस्थि अपि) = हड्डी भी (सम्) = सम्यक् प्ररूढ़ व संहित हो जाए।
भावार्थ
रोहणी के प्रयोग से सब व्रण व घाव ठीक हो जाएँ जोकि अस्त्र आदि के आघात से मज्जा, परु, मांस, अस्थि में उत्पन्न हो गया है।
भाषार्थ
(ते) तेरी (मज्जा) अस्थिसार [उणा० १।१५९ दयानन्द ] (मज्ज्ञा) अस्थिसार के (सं भवतु) साथ मिल जाय, (ते) तेरी (परु:) हड्डी का जोड़ (परुषा) हड्डी के जोड़ के (सम्, उ) संभवतु, साथ मिल जाय। (ते) तेरे (मांसस्य) मांस का (वि स्रस्तम्) ध्वंसित भाग (सम्) संभवतु, परस्पर मिल जाय, (अस्थि अपि) हड्डी भी (सम् रोहतु) सम्यक् प्ररोहित हो जाय।
टिप्पणी
[मज्जा =marrow of the bones and flesh (आप्टे)। विस्रस्तम्=वि+स्रंसु अवस्रंसने।]
विषय
कटे फटे अंगों की चिकित्सा।
भावार्थ
हे पुरुष ! (ते मज्जा) तेरी मज्जा धातु (मज्ज्ञा) मज्जा के साथ मिल कर (सं रोहतु) वृद्धि को प्राप्त हो, (परुषा परुः सं रोहतु) पोरु से पोरु मिलकर अच्छा हो जाय। (मांसस्य) और मांस का (विस्रस्तं) विनाश को प्राप्त हुआ भाग भी (सं रोहतु) उचित रीति से रूप कर ठीक होजाय और (अस्थि अपि) हड्डी भी टूटी हुई हो तो वह भी (सं रोहतु) ठीक २ मिलकर जुड़ जावें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋभुर्ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १ त्रिपदा गायत्री। ६ त्रिपदा यवमध्या भुरिग्गायत्रीं। ७ भुरिक्। २, ५ अनुष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Rohini Vanaspati
Meaning
Let your marrow join with marrow and grow, let your joint of spine join with the joint, let the tom flesh be healed, join with the bone and grow.
Translation
May your marrow be joined with marrow, your limb be joined with limb. May your torn up flesh as well as your broken bone also grow up.
Translation
Let your marrow be joined with marrow, let your limb be joined with limb, let whatever is fallen of your flesh and bone also grow again.
Translation
With marrow be the marrow, joined, thy limb united with thy limb, let what hath fallen of thy flesh, and the bone also grow again.
Footnote
Thy refers to the injured person.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(ते) तव (मज्जा) अ० १।११।४। अस्थिमध्यस्थस्नेहः (मज्जा) अस्थिस्नेहेन (सं भवतु) संयुक्तो भवतु (उ) अपि (परुषा) पर्वणा (परुः) पर्व (मांसस्य) मन ज्ञाने धृतौ च-स प्रत्ययः। रक्तजधातुविशेषस्य (विस्रस्तम्) वि+स्रन्सु पतने-क्त। विचलितो भागः (अस्थि) शरीरस्थधातुविशेषः (अपि) (सं रोहतु) संहितं भवतु ॥
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