Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 27 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 27/ मन्त्र 7
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - इळा, सरस्वती, भारती छन्दः - द्विपदा साम्नीबृहती सूक्तम् - अग्नि सूक्त
    0

    द्वारो॑ दे॒वीरन्व॑स्य॒ विश्वे॑ व्र॒तं र॑क्षन्ति वि॒श्वहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्वार॑: । दे॒वी: । अनु॑ । अ॒स्य॒ । विश्वे॑ । व्र॒तम् । र॒क्ष॒न्ति॒ । वि॒श्वहा॑ ॥२७.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्वारो देवीरन्वस्य विश्वे व्रतं रक्षन्ति विश्वहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्वार: । देवी: । अनु । अस्य । विश्वे । व्रतम् । रक्षन्ति । विश्वहा ॥२७.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 27; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पुरुषार्थ का उपदेश।

    पदार्थ

    (विश्वे) सब [उत्तम गुण] (अस्य) इसके (व्रतम्) व्रत की और (देवीः) प्रकाशवाले (द्वारः) घरके द्वारों की (विश्वहा=विश्वधा) अनेक प्रकार (अनु) अनुकूल रीति से (रक्षन्ति) रक्षा करते हैं ॥७॥

    भावार्थ

    विद्वान् के उत्तम गुण ही उनके नियमों और घर आदि की रक्षा करते हैं ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(द्वारः) द्वृ संवरणे णिच्−विच्। द्वारः पदनाम−निघ० ५।२। द्वारो जवतेर्वा द्रवतेर्वा−निरु० ८।९। यज्ञे गृहद्वार इति कात्थक्योऽग्निरिति शाकपूणिः−निरु० ८।१०। द्वाराणि (देवीः) देदीप्यमानाः (अनु) आनुकूल्येन। (अस्य) विदुषः (विश्वे) विश्वेदेवाः सर्वे दिव्यगुणाः (व्रतम्) सत्यभाषणादिकर्म (रक्षन्ति) पान्ति (विश्वहा) धस्य हः। विश्वधा। अनेकधा ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    दिव्यता व व्रतरक्षण

    पदार्थ

    १. (अस्य) = गतमन्त्र के 'तरी' के (द्वार:) = इन्द्रिय-द्वार (देवी:) = दिव्य गुणयुक्त व प्रकाशमय होते हैं। २. इसके (विश्वे) = सब इन्द्रिय-द्वार (विश्वहा) = सदा (व्रतम् अनुरक्षन्ति) = व्रतों का अनुकूलता के साथ रक्षण करते हैं। जिस इन्द्रिय का जो व्रत है, उसका वह पालन करती ही है। ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञान-प्राप्ति में लगती हैं और कर्मेन्द्रियाँ यज्ञादि कर्मों में प्रवृत्त रहती हैं।

    भावार्थ

    भवसागर को तैरनेवाले के इन्द्रिय-द्वार प्रकाशमय होते हैं और अपने-अपने व्रत का पालन करते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (देवी:) कान्तियुक्त अर्थात् चमकते हुए ( विश्वा = विश्वा:) [ काठक ] सब (द्वारः) दरवाजे, (विश्वहा) सब दिनों, (अनु) निरन्तर, (अस्य) इस महान्-अग्नि परमेश्वर सम्बन्धी (व्रतम्) यज्ञकर्म की ( रक्षन्ति) रक्षा करते हैं

    टिप्पणी

    [देवी:= दिवु क्रीडाविजिगीषाव्यवहारद्युतिस्तुतिमोदमदस्वप्न- कान्तिगतिषु (दिवादिः)। व्रतं कर्मनाम (निघं० २।१)। विश्वहा= विश्वानि अहानि। अभिप्राय यह कि यज्ञशाला के सब दर्वाजे प्रतिदिन निरन्तर खुले रहते हैं ताकि यज्ञकर्ता और यज्ञ भक्त लोग यज्ञकर्म और उसके दर्शन के लिए आ सकें]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ब्रह्मोपासना।

    भावार्थ

    (देवीः) दिव्यगुणसम्पन्न, ज्ञानमय (द्वारः) द्वार-रूप इन्द्रियां (अनु अस्य) इस आत्मा की शक्ति के अनुकूल व्यापार करते हैं। और (विश्वे) समस्त लोक और समस्त विद्वान् भी (अस्य) इसके ही (व्रतं) उपदिष्ट कर्त्तव्यों का (विश्वहा) नाना प्रकार से (रक्षन्ति) पालन करते हैं। समानार्थ ऋचा देखो ऋ० १। १४२। ६॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। अग्निर्देवता। १ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्। २ द्विपदा साम्नी भुरिगनुष्टुप्। ३ द्विपदा आर्ची बृहती। ४ द्विपदा साम्नी भुरिक् बृहती। ५ द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्। ६ द्विपदा विराड् नाम गायत्री। ७ द्विपदा साम्नी बृहती। २-७ एकावसानाः। ८ संस्तार पंक्तिः। ९ षट्पदा अनुष्टुब्गर्भा परातिजगती। १०-१२ परोष्णिहः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Agni and Dynamics of Yajna

    Meaning

    All the doors of divine experience and knowledge of the world such as the organs of sense, understanding and judgement follow, abide by and maintain the discipline of its law without relent, all the time.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    All the divine doors protect in all the ways the sacred vow of the sacrificer. (Also Yv. XXVII.16) (devir-dvarah)

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The organs of body splendid with the presence of fire and other worldly objects inviolably adhere to the law of this fire.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Intelligent organs obey the behest of this, soul. All, learned persons, indiverse ways, fulfill the duties preached by the soul.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(द्वारः) द्वृ संवरणे णिच्−विच्। द्वारः पदनाम−निघ० ५।२। द्वारो जवतेर्वा द्रवतेर्वा−निरु० ८।९। यज्ञे गृहद्वार इति कात्थक्योऽग्निरिति शाकपूणिः−निरु० ८।१०। द्वाराणि (देवीः) देदीप्यमानाः (अनु) आनुकूल्येन। (अस्य) विदुषः (विश्वे) विश्वेदेवाः सर्वे दिव्यगुणाः (व्रतम्) सत्यभाषणादिकर्म (रक्षन्ति) पान्ति (विश्वहा) धस्य हः। विश्वधा। अनेकधा ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top