अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 28/ मन्त्र 12
ऋषिः - अथर्वा
देवता - अग्न्यादयः
छन्दः - ककुम्मत्यनुष्टुप्
सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
1
आ त्वा॑ चृतत्वर्य॒मा पू॒षा बृह॒स्पतिः॑। अह॑र्जातस्य॒ यन्नाम॒ तेन॒ त्वाति॑ चृतामसि ॥
स्वर सहित पद पाठआ । त्वा॒ । चृ॒त॒तु॒ । अ॒र्य॒मा । आ । पू॒षा । आ । बृह॒स्पति॑: । अह॑:ऽजातस्य । यत् । नाम॑ । तेन॑ । त्वा॒ । अति॑ । घृ॒ता॒म॒सि॒ ॥२८.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
आ त्वा चृतत्वर्यमा पूषा बृहस्पतिः। अहर्जातस्य यन्नाम तेन त्वाति चृतामसि ॥
स्वर रहित पद पाठआ । त्वा । चृततु । अर्यमा । आ । पूषा । आ । बृहस्पति: । अह:ऽजातस्य । यत् । नाम । तेन । त्वा । अति । घृतामसि ॥२८.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रक्षा और ऐश्वर्य का उपदेश।
पदार्थ
(अर्यमा) अरि अर्थात् हिंसकों का नियामक (आ) और (पूषा) पोषण करनेवाला (आ) और (बृहस्पतिः) बड़े बड़ों का रक्षक पुरुष (त्वा) तुझ [परमेश्वर] को (आ) अच्छे प्रकार (चृततु) बाँधे। [हृदय में रक्खे] (अहर्जातस्य) प्रतिदिन उत्पन्न होनेवाले [प्राणी] का (यत् नाम) जो नाम है, (तेन) उस [नाम से] (त्वा) तुझ को (अति) अत्यन्त करके (चृतामसि=०−मः) हम बाँधते हैं ॥१२॥
भावार्थ
जिस प्रकार विद्वान् मनुष्य परमेश्वर का चिन्तन करते हैं, उसी प्रकार सब प्राणी परमात्मा का ध्यान करें ॥१२॥
टिप्पणी
१२−(आ) समुच्चये। सम्यक् (त्वा) देवं परमेश्वरम्−म० ११। (चृततु) चृती हिंसाग्रन्थनयोः। बध्नातु। हृदये धरतु (अर्यमा) अ० ३।१४।२। अरीणां हिंसकः। तेषां नियामकः (पूषा) अ० १।९।१। पोषकः (बृहस्पतिः) अ० १।८।२। बृहतां वेदादिशास्त्राणां पालकः पुरुषः (अहर्जातस्य) अ० ३।१४।१। अहन्यहनि जातस्योत्पन्नस्य प्राणिनः (यत्) (नाम) संज्ञा (तेन) नाम्ना (त्वा) हिरण्यम् (अति) अत्यर्थम् (चृतामसि) चृतामः। बध्नीमः, धरामः ॥
विषय
अर्यमा, पूषा, बृहस्पति
पदार्थ
१. (अर्यमा) = [अरीन् यच्छति] शत्रुओं का नियमन करनेवाला साधक (त्वा) = तुझे-'मुख, त्वचा व हाथ' के त्रिक को (आवृततु) = सब ओर से बाँधे [चती हिंसासंग्रन्थनयोः] अथवा सब ओर से मार ले-वश में कर ले। (पूषा) = पोषण करनेवाला यह साधक 'पायु, उपस्थ व पाद् के त्रिक को वशीभूत करे। बृहस्पतिः-ज्ञान का रक्षक व स्वामी बननेवाला यह साधक आँख, नाक ब कान' के त्रिक को ज्ञान-प्राप्ति में संग्रथित करे। २. (अहः) = सम्पूर्ण दिन (जातस्य) = सदा से प्रादुर्भूत उस स्वयम्भू प्रभु का (यत् नाम) = जो नाम-स्मरण है-नाम का जप है, (तेन) = उसके द्वारा (त्वा) = तुझ इन्द्रिय-त्रिक को (अतिचतामसि) = अतिशयेन बन्धन में-संयमन में-करते हैं। प्रभु-नामस्मरण इन्द्रिय-संयम में हमारा सहायक होता है
भावार्थ
इन्द्रिय-संयम के लिए प्रभु नाम-स्मरण को अपनाते हुए हम 'अर्यमा, पूषा व बृहस्पति' बनते हैं।
भाषार्थ
(अर्यमा) न्यायकारी अथवा अरियों का नियन्ता, (पूषा ) पुष्टिप्रद, (बृहस्पतिः) बृहती-वेदवाणी का, या बृहद् ब्रह्माण्ड का पति परमेश्वर (त्वा) तुझे (आचृततु) अपने साथ ग्रथित अर्थात् सम्बद्ध करे । (अर्हजातस्य) दिन में पैदा अर्थात् प्रकट हुए आदित्य का ( यत् =यदा) जव (नाम) हमारी ओर नमन हो, तब (तेन) उस नमन-काल के साथ, अर्थात् उस काल में, (त्वा) तुझे (अति चृतामसि) पूर्णतया परमेश्वर के साथ हम ग्रथित करते हैं, सम्बद्ध करते हैं।
टिप्पणी
[अर्यमा आदि तीनों पदों द्वारा एक परमेश्वर ही अभिप्रेत है, यतः मन्त्र ११ में 'अनुमन्यताम्' द्वारा, तथा मन्त्र १२ में 'चृततु' द्वारा एक का ही कथन हुआ है। अर्यमा 'आर्यान् मानयति' (दयानन्द सत्यार्थप्रकाश) तथा 'अरीन् नियच्छति' (निरुक्त ११।३।२३; अदिति पद) । 'अहर्जात' का काल है, प्रातःकाल। उस काल की सन्ध्या में प्रार्थी का परमेश्वर के साथ ग्रथन हुआ है। 'वृततु, चृतामसि'= चृती हिंसाग्रन्थनयोः (तुदादिः)।]
विषय
दीर्घ जीवन का उपाय और यज्ञोपवीत की व्याख्या।
भावार्थ
(अर्यमा) समस्त अरि = विघ्नकारियों, काम, क्रोध आदि भीतरी दुष्ट भावों को यमन करने वाला, (पूषा) सब का पोषक (बृहस्पतिः) बृहत्-महान् लोकों का या बृहती वेदवाणी का जो स्वामी है वह (त्वा) तुझ आत्मा को (चृततु) बांध ले। (अह-र्जातस्य) दिन में उत्पन्न होने वाले शुभ पदार्थ सूर्य का (यत् नाम) जो तेज है (तेन) उससे (त्वा) तुझ पुरुष, उपनीत बालक को हम आचार्यगण भी (अति चृतामसि) सब दुष्ट भावों का अतिक्रमण करके इस भगवान् के पापनाशक, शरीरपोषक और ज्ञानवर्धक तीन गुणों से बने त्रिसूत्र से बांधते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। त्रिवृत देवता। १-५, ८, ११ त्रिष्टुभः। ६ पञ्चपदा अतिशक्वरी। ७, ९, १०, १२ ककुम्मत्यनुष्टुप् परोष्णिक्। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Longevity and the Sacred thread
Meaning
O seeker of light and wisdom, may Aryama, divine path maker, Pusha, lord of life’s nourishment, and Brhaspati, lord of infinity, accept you into the filial bond. We accept you and enfold you in that open ended and expansive light and brilliance which is the innate and essential nature and character of the sun which daily rises with new splendour.
Translation
May the ordainer Lord, the nourisher Lord and the Lord supreme fasten you. Whichever is the name of the day-born, with that we fasten you securely (carefully).
Translation
Let the man dispensing justice bind you, O man! let the man protecting us bind you and let the man who is the master of Vedic speeches bind you. The light of sun which shines in the day bind you thoroughly with the sacred thread.
Translation
God, the Suppressor of internal foes like lust and anger, the Nourisher of all, the Lord of vast worlds and Vedic speech, binds thee O soul. With the lustre of the Sun, born in day time, we invest thee with yajnopavit!
Footnote
We: The preceptors, Acharyas. Thee: The child initiated in Brahmcharya Ashram, and invested with Yajnopavit. The child is bound with the sacred thread, possessing the triple characteristics of the Sin-annihilating body-nourishing, knowledge-augmenting God.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१२−(आ) समुच्चये। सम्यक् (त्वा) देवं परमेश्वरम्−म० ११। (चृततु) चृती हिंसाग्रन्थनयोः। बध्नातु। हृदये धरतु (अर्यमा) अ० ३।१४।२। अरीणां हिंसकः। तेषां नियामकः (पूषा) अ० १।९।१। पोषकः (बृहस्पतिः) अ० १।८।२। बृहतां वेदादिशास्त्राणां पालकः पुरुषः (अहर्जातस्य) अ० ३।१४।१। अहन्यहनि जातस्योत्पन्नस्य प्राणिनः (यत्) (नाम) संज्ञा (तेन) नाम्ना (त्वा) हिरण्यम् (अति) अत्यर्थम् (चृतामसि) चृतामः। बध्नीमः, धरामः ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal