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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - सरस्वती छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - अरातिनाशन सूक्त
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    सर॑स्वती॒मनु॑मतिं॒ भगं॒ यन्तो॑ हवामहे। वाचं जु॒ष्टां मधु॑मतीमवादिषं दे॒वानां॑ दे॒वहू॑तिषु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर॑स्वतीम् । अनु॑ऽमतिम् । भग॑म् । यन्त॑: । ह॒वा॒म॒हे॒ । वाच॑म् । जु॒ष्टाम् । मधु॑ऽमतीम् । अ॒वा॒दि॒ष॒म् । दे॒वाना॑म् । दे॒वऽहू॑तिषु ॥७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सरस्वतीमनुमतिं भगं यन्तो हवामहे। वाचं जुष्टां मधुमतीमवादिषं देवानां देवहूतिषु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सरस्वतीम् । अनुऽमतिम् । भगम् । यन्त: । हवामहे । वाचम् । जुष्टाम् । मधुऽमतीम् । अवादिषम् । देवानाम् । देवऽहूतिषु ॥७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 7; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पुरुषार्थ करने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (यन्तः) चलते-फिरते हम लोग (सरस्वतीम्) विज्ञानवती विद्या, (अनुमतिम्) अनुकूल मति और (भगम्) सेवनीय ऐश्वर्य को (हवामहे) बुलाते हैं। (देवानाम्) महात्माओं की (जुष्टाम्) प्रीतियुक्त, (मधुमतीम्) बड़ी मधुर (वाचम्) इस वाणी को (देवहूतिषु) दिव्य गुणों के बुलाने में (अवादिषम्) मैं बोला हूँ ॥४॥

    भावार्थ

    पुरुषार्थी मनुष्य उत्तम विद्या से उत्तम बुद्धि पाकर ऐश्वर्यवान् होते हैं, यही वाणी उत्तम गुण पाने के लिये महात्माओं की संमत है ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(सरस्वतीम्) विज्ञानवतीं विद्याम् (अनुमतिम्) अनुकूलां बुद्धिम् (भगम्) सेवनीयमैश्वर्यम् (यन्तः) गच्छन्तः। उद्योगिनो वयम् (हवामहे) आह्वयामः (वाचम्) इमां वाणीम् (जुष्टाम्) प्रीताम् (मधुमतीम्) माधुर्योपेताम् (अवादिषम्) वद व्यक्तायां वाचि−लुङ्। उच्चारितवानस्मि (देवानाम्) महात्मनाम् (देवहूतिषु) दिव्यगुणानामाह्वानेषु प्राप्तिषु ॥

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    विषय

    सरस्वती अनुमति

    पदार्थ

    १. (भगं यन्त:) = ऐश्वर्य को प्राप्त होते हुए हम (सरस्वतीम्) = विद्या की अधिष्ठातृदेवता सरस्वती को तथा (अनुमतिम्) = शास्त्रानुकूल कर्म की मति को (हवामहे) = पुकारते हैं। हम ऐश्वर्यशाली होकर ज्ञान की रुचिवाले तथा शास्त्रानुकूल यज्ञादि कर्मों के करने की वृत्तिवाले बने रहें, अन्यथा यह धन हमें विलास की ओर ले-जाएगा। २. मैं सदा (देवहूतिषु) = देवों के आह्वानवाली सभाओं में (देवानां जुष्टाम्) = देवों की प्रिय (मधुमतीम्) = माधुर्यवाली (वाचम्) = वाणी को (अवादिषम्) = बोलूँ। मैं सदा सत्सङ्गों में उपस्थित होऊँ और मधुर वाणी ही बोलें।

    भावार्थ

    ऐश्वर्यशाली होकर हम विद्यारुचि व शास्त्रानुकूल कर्मों की प्रवृत्तिवाले बनें, सत्संगों में सम्मिलित हों और मधुर शब्द ही बोलें।

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    भाषार्थ

    (यन्तः) [राष्ट्र में निरीक्षणार्थ] जाते हुए हम [राष्ट्राधिकारी, राष्ट्र में ] (सरस्वतीम्) ज्ञानविज्ञान वाली वेदविद्या का, (अनुमतिम्) परस्पर अनुकूल मति का, (भगम्) षड्विध भग का ( हवामहे ) आह्वान करते हैं, प्रसार करते हैं। ( देवानाम्, देवहुतिषु) दिव्य अधिकारियों के आह्वानों में, (जुष्टाम् ) प्रिय, (मधुमतीम् ) तथा माधुर्यसम्पन्ना (वाचम्) वाक् (अवादिषम् ) मैं राजा रादा बोलता हूँ।

    टिप्पणी

    [राष्ट्र में अराति को दूर करने में, वेदविद्या की सत्ता, परस्पर में अनुकूल भावना तथा भगों की सत्ता आवश्यक है। सरस्वती= सरो विज्ञानं विद्यते ऽस्यां सा सरस्वती वाक् (उणा० ४।१८९, दयानन्द)। भग:= ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशस: श्रियः। ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षष्णां भग इतीरणा।]

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    विषय

    अधीन भृत्यों को वेतन देने की व्यवस्था।

    भावार्थ

    (भगं यन्तः) ऐश्वर्य को प्राप्त होते हुए भी (अनुमतिं) अपने से बड़ों की अनुमति को और (सरस्वतीं) वेद की ज्ञानमयी वाणी को (हवामहे) बराबर लेते, याद रखते और पाठ करते हैं। और हम विद्वान् लोग (देवहूतिषु) विद्वानों की एकत्रित सभाओं और यज्ञ-कार्यों में (देवानां) देव-विद्वानों की (जुष्टां) अति प्रिय (वाचं) वेद वाणी को (अवादिषं) हम बोलें और उसका उपदेश करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। बहवो देवताः। १-३, ६-१० आदित्या देवताः। ४, ५ सरस्वती । २ विराड् गर्भा प्रस्तारपंक्तिः। ४ पथ्या बृहती। ६ प्रस्तारपंक्तिः। २, ३, ५, ७-१० अनुष्टुभः। दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    No Miserliness, No Misery

    Meaning

    Coming upto the wealth, honour and excellence of life, we invoke and adore Anumati, good counsel, and Sarasvati, divine mother spirit of knowledge, wisdom and enlightenment. In the assemblies of noble people on holy occasions, I wish we speak honey sweet language of generosity loved by noble and generous people.

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    Subject

    Sarasvati

    Translation

    Moving forward, we hereby invoke the learning divine (Sarasvati); the assent (anumati), and the prosperity (bhaga). At the invocations of the enlightened ones, I have uttered sweet words, which are pleasing to the enlightened ones.

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    Translation

    We dealing with life’s affairs attain the Vedic speech possessing all Knowledge and Bhaga, the fortune. On the occasions of invocation and supplication we pronounce the word full of sweetness and employed by the learned men.

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    Translation

    In prosperity even, we obey and revere the elders and recite Vedic verses. In the conferences of the learned, I use lovely, sweet words for them.

    Footnote

    In prosperity one forgets the performance of religious duties, and becomes disrespectful towards the elders. The Veda decries and condemns such an attitude. ‘Them’ refers to the learned.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(सरस्वतीम्) विज्ञानवतीं विद्याम् (अनुमतिम्) अनुकूलां बुद्धिम् (भगम्) सेवनीयमैश्वर्यम् (यन्तः) गच्छन्तः। उद्योगिनो वयम् (हवामहे) आह्वयामः (वाचम्) इमां वाणीम् (जुष्टाम्) प्रीताम् (मधुमतीम्) माधुर्योपेताम् (अवादिषम्) वद व्यक्तायां वाचि−लुङ्। उच्चारितवानस्मि (देवानाम्) महात्मनाम् (देवहूतिषु) दिव्यगुणानामाह्वानेषु प्राप्तिषु ॥

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