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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - सविता छन्दः - त्रिपदा पिपीलिकमध्या पुरउष्णिक् सूक्तम् - अमृतप्रदाता सूक्त
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    स घा॑ नो दे॒वः स॑वि॒ता सा॑विषद॒मृता॑नि॒ भूरि॑। उ॒भे सु॑ष्टु॒ती सु॒गात॑वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । घ॒ । न॒: । दे॒व: । स॒वि॒ता । सा॒वि॒ष॒त् । अ॒मृता॑नि । भूरि॑ । उ॒भे इति॑ । सु॒स्तु॒ती इति॑ सु॒ऽस्तु॒ती । सु॒ऽगात॑वे ॥१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स घा नो देवः सविता साविषदमृतानि भूरि। उभे सुष्टुती सुगातवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । घ । न: । देव: । सविता । साविषत् । अमृतानि । भूरि । उभे इति । सुस्तुती इति सुऽस्तुती । सुऽगातवे ॥१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (5)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) वह (घ) ही (देवः) प्रकाशस्वरूप (सविता) सर्वप्रेरक परमेश्वर (उभे) दोनों [प्रातः सायंकालीन] (सुष्टुती) सुन्दर स्तुतियों को (सुगातवे) अच्छे प्रकार गाने के लिये (नः) हमें (भूरि) बहुत से (अमृतानि) अक्षय सुख (साविषत्) देता रहे ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमात्मा की सदा स्तुति करते हुए आत्मबल बढ़ाकर अक्षय सुख प्राप्त करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(सः) प्रसिद्धः (घ) सांहितिको दीर्घः। एव (नः) अस्मभ्यम् (देवः) प्रकाशमानः (सविता) सर्वप्रेरयिता (साविषत्) षू प्रेरणे, लेटि अडागमः। सिब्बहुलं णिद् वक्तव्यः। वा० पा० ३।१।३४। इति वृद्धौ सत्यामावादेशः। प्रेरयेत् (अमृतानि) अ० ४।८।३। अक्षयसुखानि (भूरि) भूरीणि। बहूनि (उभे) प्रातःसायंकालीने, तदुपलक्षिते सर्वकाले−इत्यर्थः (सुष्टुती) शोभने स्तुती (सुगातवे) गायतेस्तुमर्थे तवेप्रत्ययः। सुष्ठु गातुम् ॥

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    विषय

    उभे सुष्टुती सुगातवे

    पदार्थ

    १. (स:) = वह (देव:) = प्रकाशमय (सविता) = प्रेरक प्रभु (घ) = निश्चय से (न:) = हमारे लिए भरि खुब ही (अमृतानि साविषत्) = अमृतत्वों को प्राप्त कराता है-हमें नीरोग जीवनवाला बनाता है। २. (उभे) = दोनों (सुष्टुती) = उत्तम स्तुतियों के-प्रात: व सार्यकालीन स्तुतियों के (सुगातवे) = उत्तम गायन के लिए प्रभु हमें नीरोगता प्रदान करते हैं। ('उभे सुष्टुती सुगातवे') = का यह अर्थ भी सुन्दर है कि दोनों उत्तम स्तुत्य मार्गों से चलने के लिए। हम 'अभ्युदय व निःश्रेयस', 'इहलोक व परलोक', 'शरीर व आत्मा', 'शक्ति व ज्ञान' दोनों का ध्यान करते हुए जीवन में आगे बढ़ें।

    भावार्थ

    प्रभु हमें खुब ही नीरोग बनाते हैं, जिससे हम प्रात:सायं सम्यक् प्रभुस्तवन कर पाएँ। वस्तुतः प्रभुस्तवन ही नीरोगता का साधन हो जाता है।

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    भाषार्थ

    (सः घ) वह ही (सविता देवः) सविता देव (नः) हमें (भूरि) प्रभूत (अमृतानि१) अमर होने के साधन (साविषत्) प्रेरित करे या करता है, ताकि (उभे) दोनों अर्थात् प्रातःसायम् की (सुष्टुतो) उत्तम-स्तुतियां (सुगातवे) उत्तम प्रकार से हम गाएं।

    टिप्पणी

    [साविषत्१ = षू प्रेरणे (तुदादिः), लेटि अडागम: "सिब्बहुलं णिद् वक्तव्य:" इति बुद्ध्यावादेशौ। सविता = (मन्त्र १)]। [१. अथवा "दीर्घजीवन के प्रभूत साधनों को प्रेरित करे या करता है"।]

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    भाषार्थ

    (सः घ) वह ही (सविता देवः) सविता देव (नः) हमें (भूरि) प्रभूत (अमृतानि१) अमर होने के साधन (साविषत्) प्रेरित करे या करता है, ताकि (उभे) दोनों अर्थात् प्रातःसायम् की (सुष्टुतो) उत्तम-स्तुतियां (सुगातवे) उत्तम प्रकार से हम गाएं।

    टिप्पणी

    [साविषत्१ = षू प्रेरणे (तुदादिः), लेटि अडागम: "सिब्बहुलं णिद् वक्तव्य:" इति बृद्ध्यावादेशौ। सविता = (मन्त्र १)]। [१. अथवा "दीर्घजीवन के प्रभूत साधनों को प्रेरित करे या करता है"।]

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    विषय

    ईश्वरस्तुति।

    भावार्थ

    (स घ) वह परमात्मा ही (देवः) एक ऐसा है जो (सविता) सब का उत्पादक है। वही (भूरि) नाना, बहुत से (अमृतानि) अमृतमय मोक्ष के साधन, दीर्घ जीवन और अन्न (नः साविषत्) हमें देता है। (उभे) दोनों प्रकार की (सु-स्तुती) उत्तम स्तुतियां (सुगातवे) उसी के उत्तम गुणगान के लिये हैं। दोनों ‘सुस्तुति’ अर्थात् सामगायन ‘स्तुत’ , और मन्त्रपाठ ‘शस्त्र’ हैं। प्रगीतमन्त्रसाध्या स्तुतिः स्तोत्रम्। अप्रगीतमन्त्रसाध्या स्तुतिः शस्त्रम्।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। सविता देवता। त्रिपदा पिपीलिकामध्या साम्नी जगती २- ३ पिपीलिका मध्या परोष्णिक्। तृचं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Lord of Immortality

    Meaning

    May the self-refulgent Savita bless us with plentiful gifts of immortal value. Let us sing and celebrate him morning and evening and seek the light to lead us forward on the path of rectitude.

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    Translation

    May He, the divine inspirer Lord, indeed, bestow plenty of ambrosia (amrtini) on us, so that we may travel along both - the paths comfortably.

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    Translation

    That is only the most powerful Divinity who is the creator of this universe, may He be pleased to grant us plentiful grains and drinking juices, the prayers at morning and evening are offered to sing His praises along.

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    Translation

    The same All-creating God grants us various means of acquiring salvation. Both morning and evening eulogies are meant to sing His glory.

    Footnote

    Both eulogies may also refer to Brihat Rathantra Sama songs. "It' refers to joy.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(सः) प्रसिद्धः (घ) सांहितिको दीर्घः। एव (नः) अस्मभ्यम् (देवः) प्रकाशमानः (सविता) सर्वप्रेरयिता (साविषत्) षू प्रेरणे, लेटि अडागमः। सिब्बहुलं णिद् वक्तव्यः। वा० पा० ३।१।३४। इति वृद्धौ सत्यामावादेशः। प्रेरयेत् (अमृतानि) अ० ४।८।३। अक्षयसुखानि (भूरि) भूरीणि। बहूनि (उभे) प्रातःसायंकालीने, तदुपलक्षिते सर्वकाले−इत्यर्थः (सुष्टुती) शोभने स्तुती (सुगातवे) गायतेस्तुमर्थे तवेप्रत्ययः। सुष्ठु गातुम् ॥

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