अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 137/ मन्त्र 2
ऋषिः - वीतहव्य
देवता - नितत्नीवनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - केशवर्धन सूक्त
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अ॒भीशु॑ना॒ मेया॑ आसन्व्या॒मेना॑नु॒मेयाः॑। केशा॑ न॒डा इ॑व वर्धन्तां शी॒र्ष्णस्ते॑ असि॒ताः परि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भीशु॑ना: । मेया॑: । आ॒स॒न् । वि॒ऽआ॒मेन॑ । अ॒नु॒ऽमेया॑: । केशा॑: । न॒डा:ऽइ॑व । व॒र्ध॒न्ता॒म् । शी॒र्ष्ण: । ते॒ । अ॒सि॒ता: । परि॑ ॥१३७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अभीशुना मेया आसन्व्यामेनानुमेयाः। केशा नडा इव वर्धन्तां शीर्ष्णस्ते असिताः परि ॥
स्वर रहित पद पाठअभीशुना: । मेया: । आसन् । विऽआमेन । अनुऽमेया: । केशा: । नडा:ऽइव । वर्धन्ताम् । शीर्ष्ण: । ते । असिता: । परि ॥१३७.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
केश के बढ़ाने का उपदेश।
पदार्थ
(केशाः) केश (अभीशुना) अङ्गुली से (मेया) नापने योग्य, फिर (व्यामेन) दोनों [ऊपर-नीचे के] भुज दण्ड से (अनुमेया) नापने योग्य (आसन्) हो गये हैं। वे (असिताः) काले होकर (ते) तेरे (शीर्ष्णः) शिर से (नडाः इव) नरकट घास के समान (परि वर्धन्ताम्) भले प्रकार बढ़ें ॥२॥
भावार्थ
केशरोगी मनुष्य वैद्य की सम्मति से रोगनिवृत्ति करे ॥२॥
टिप्पणी
२−(अभीशुना) भृमृशीङ्०। उ० १।७। इति अभि+अशू व्याप्तौ−ड अलोपो दीर्घश्च। अभीशवः, रश्मिनाम−निघ० १।५। अङ्गुलिनाम−२।५। पदनाम−५।३। अभीशवोऽभ्यश्नुवते कर्माणि−निरु० ३।९। अङ्गुल्या (मेयाः) मातव्याः (आसन्) (व्यामेन) वि+अम गतौ−घञ्। प्रसारितभुजद्वयपरिमाणेन (अनुमेयाः) पश्चात् मातव्याः (केशाः) (नडाः) तृणविशेषाः (इव) यथा (वर्धन्ताम्) वर्धमाना भवन्तु (शीर्ष्णः) शिरसः (ते) तव (असिताः) कृष्णवर्णाः (परि) सर्वतः ॥
विषय
अभीशुना व्यामेन
पदार्थ
१. हे केशाभिवृद्धिकाम पुरुष! तेरे बाल जो पहले (अभीशुना) = अंगुलियों में (मेयाः आसन्) = चार अंगल-इसप्रकार मापने योग्य थे। अब (व्यामेन) = प्रसारित हस्तद्वय परिमाण से (अनुमेयाः) = परिच्छेद्य [मापने योग्य] हो गये हैं। है (ओषधे) = ओषधे! तू (मूलं दृह) = केशों के मूल को दृढ़ कर, (अग्नम् आयच्छ) = इन केशों के अग्रभाग को आयामयुक्त कर तथा (मध्यं वियामय) = [यमय] मध्यभाग को विशेषरूप से स्थिर कर। २. हे पुरुष! (ते) = तेरे (शीर्ण: परि) = सिंर के चारों ओर (असितः केशा:) = ये काले-काले बाल (नडाः इव वर्धन्ताम्) = तृणविशेषों की भाँति खूब बढ़ जाएँ।
भावार्थ
केशवर्धनी के प्रयोग से अंगुलियों से मापने योग्य बाल हाथों से मापने योग्य हो जाते हैं। उनका मूल, अग्न व मध्य-सब दृढ़ व आयत हो जाता है। ये काले-काले बाल नड़ों [तृणों] की भाँति बढ़ जाते हैं।
विशेष
अगले तीन सूक्तों का ऋषि 'अथर्वा' है-स्थिर वृत्तिवाला। यह अपने को स्वस्थ व शक्तिशाली बनाता है।
भाषार्थ
(केशाः) जो केश (अभीशुना) अङ्गुलियों द्वारा (मेयाः) मापने योग्य (आसन्) थे, वे (अनु) ओषधि के प्रयोग के पश्चात् (व्यामेन) व्याम द्वारा (मेयाः) मापने योग्य हो गए हैं। (ते) तेरे (शीर्ष्णः परि) सिर के चारों ओर (असिताः) काले केश (नडाः इव) नड़ की तरह (वर्धन्ताम्) बढ़े।
टिप्पणी
[अभीशवः, अङ्गुलिनाम (निघं० २।५)। व्यामेन= प्रसारित बाहु और प्रसारित हस्ताङ्गुलियों के कानों तक की लम्बाई (आप्टे)। असितस्य= काला सांप (मन्त्र १), और असिताः काले केश।]
विषय
केशवर्धन का उपाय।
भावार्थ
जो केश प्रथम (अभीशुना) अंगुली से (मेयाः आसन्) मापे जा सकते हैं वे ओषधि-सेवन के बाद बढ़कर (व्यामेन अनुमेयाः) फैले हाथों से मापे जा सकते हैं। वे (ते शीर्ष्णः) तेरे शिर के (असिताः) काले काले (केशाः) केश (नडाः इव) नरकुलों के समान (परि वर्धन्तां) खूब बढ़ें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
केशवर्धनकामो वीतहव्योऽथर्वा ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। अनुष्टुभौ। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Hair Care
Meaning
The length and quality of hair is to be measured first by brightness of sun-rays and then by the length of both arms. Let the hair of head grow like reeds of a lake and be jet black par excellence for you.
Translation
The hair, that used to be measured with finger, became so long as to be measured with stretched out arms. May black hair spring all over your head and grow like reeds.
Translation
O man! let your those hair which are measured with a rein be measured with both extended arms and let the black locks spring thick and strong and grow like the reeds upon your head.
Translation
Locks which could be measured with fingers, become measurable with extended hands after the use of medicine. Let the black locks spring thick and strong and grow like reeds upon thy head.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(अभीशुना) भृमृशीङ्०। उ० १।७। इति अभि+अशू व्याप्तौ−ड अलोपो दीर्घश्च। अभीशवः, रश्मिनाम−निघ० १।५। अङ्गुलिनाम−२।५। पदनाम−५।३। अभीशवोऽभ्यश्नुवते कर्माणि−निरु० ३।९। अङ्गुल्या (मेयाः) मातव्याः (आसन्) (व्यामेन) वि+अम गतौ−घञ्। प्रसारितभुजद्वयपरिमाणेन (अनुमेयाः) पश्चात् मातव्याः (केशाः) (नडाः) तृणविशेषाः (इव) यथा (वर्धन्ताम्) वर्धमाना भवन्तु (शीर्ष्णः) शिरसः (ते) तव (असिताः) कृष्णवर्णाः (परि) सर्वतः ॥
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