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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 137 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 137/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वीतहव्य देवता - नितत्नीवनस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - केशवर्धन सूक्त
    1

    दृंह॒ मूल॒माग्रं॑ यच्छ॒ वि मध्यं॑ यामयौषधे। केशा॑ न॒डा इ॑व वर्धन्तां शी॒र्ष्णस्ते॑ असि॒ताः परि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दृंह॑ । मूल॑म् । आ । अग्र॑म् । य॒च्छ॒ । वि । मध्य॑म् । य॒म॒य॒ । ओ॒ष॒धे॒ । केशा॑: । न॒डा:ऽइ॑व । व॒र्ध॒न्ता॒म् । शी॒र्ष्ण: । ते॒ । अ॒सि॒ता: । परि॑ ॥१३७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दृंह मूलमाग्रं यच्छ वि मध्यं यामयौषधे। केशा नडा इव वर्धन्तां शीर्ष्णस्ते असिताः परि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दृंह । मूलम् । आ । अग्रम् । यच्छ । वि । मध्यम् । यमय । ओषधे । केशा: । नडा:ऽइव । वर्धन्ताम् । शीर्ष्ण: । ते । असिता: । परि ॥१३७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 137; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    केश के बढ़ाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (ओषधे) हे ओषधि ! [केशों के] (मूलम्) मूल को (दृंह) दृढ़ कर, (अग्रम्) अग्र भाग को (आ यच्छ) बढ़ा, (मध्यम्) मध्यभाग को (वि यमय) लम्बा कर। (केशाः) केश (असिताः) काले होकर (ते शीर्ष्णः) तेरे शिर से (नडा इव) नरकट घास के समान (परि वर्धन्ताम्) भले प्रकार बढ़ें ॥३॥

    भावार्थ

    मन्त्र २ के समान ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(दृंह) दृढीकुरु (मूलम्) केशमूलम् (अग्रम्) अग्रभागम् (आ यच्छ) आयतं कुरु (मध्यम्) (वियमय) विविधं दीर्घीकुरु (ओषधे) अन्यत्पूर्ववत् ॥

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    विषय

    अभीशुना व्यामेन

    पदार्थ

    १. हे केशाभिवृद्धिकाम पुरुष! तेरे बाल जो पहले (अभीशुना) = अंगुलियों में (मेयाः आसन्) = चार अंगल-इसप्रकार मापने योग्य थे। अब (व्यामेन) = प्रसारित हस्तद्वय परिमाण से (अनुमेयाः) = परिच्छेद्य [मापने योग्य] हो गये हैं। है (ओषधे) = ओषधे! तू (मूलं दृह) = केशों के मूल को दृढ़ कर, (अग्नम् आयच्छ) = इन केशों के अग्रभाग को आयामयुक्त कर तथा (मध्यं वियामय) = [यमय] मध्यभाग को विशेषरूप से स्थिर कर। २. हे पुरुष! (ते) = तेरे (शीर्ण: परि) = सिंर के चारों ओर (असितः केशा:) = ये काले-काले बाल (नडाः इव वर्धन्ताम्) = तृणविशेषों की भाँति खूब बढ़ जाएँ।

    भावार्थ

    केशवर्धनी के प्रयोग से अंगुलियों से मापने योग्य बाल हाथों से मापने योग्य हो जाते हैं। उनका मूल, अग्न व मध्य-सब दृढ़ व आयत हो जाता है। ये काले-काले बाल नड़ों [तृणों] की भाँति बढ़ जाते हैं।

    विशेष

    विशेष-अगले तीन सूक्तों का ऋषि 'अथर्वा' है-स्थिर वृत्तिवाला। यह अपने को स्वस्थ व शक्तिशाली बनाता है।

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    भाषार्थ

    (ओषधे) हे ओषधि ! (मूलम्) केशों की जड़ को (दृंह) तु दृढ़ कर, (अग्रम) केशों के अग्रभाग को (आ यच्छ) लम्बा कर, (मध्यम्) केशों के मध्य भाग को (वि यामय) विशेषतया नियन्त्रित कर सुदृढ़ कर (केशाः नड़ इव परि), अर्थ मन्त्र (२) की तरह।]

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    विषय

    केशवर्धन का उपाय।

    भावार्थ

    हे ओषधे ! केशों के (मूलं दृंह) मूल को दृढ़ कर। (अग्रम्) अग्र भाग को (वि यच्छ) विशेष प्रकार से यमन कर, बांध या मज़बूत कर, और (मध्यं यमय) बीच के भाग को भी दृढ़ कर जिससे केश न आगे से टूटें, न बीच से टूट कर झड़ें और न जड़ से उखड़ें। प्रत्युत (नडाः इव) तालाब के किनारे लगे नरकुलों के समान, हे रोगी ! (ते शीर्ष्णः) तेरे शिर के (असिताः केशाः) काले बाल (परिवर्धन्ताम्) खूब बढ़ें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    केशवर्धनकामो वीतहव्योऽथर्वा ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। अनुष्टुभौ। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Hair Care

    Meaning

    O Nitatni, herbal hair care Oshadhi, strengthen the root of the hair, let it grow, lengthen the middle, and upto the end. Let the hair of the head grow long and thick like reeds of a lake and let it be jet black par excellence for you, for men and women both.

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    Translation

    May you, O herb, make firm the root; prolong the ends; and stretch the middle portion. May black hair spring-all over your head and grow like reeds.

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    Translation

    Let this plant strengthen the roots, prolong the points and lengthen the middle part let the hair black locks spring thick and strong and grow like reeds upon your head, O man !

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    Translation

    O medicine, strengthen the roots of locks, prolong the points, and lengthen the middle part. Let the black locks spring thick and strong and grow like reeds upon thy head!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(दृंह) दृढीकुरु (मूलम्) केशमूलम् (अग्रम्) अग्रभागम् (आ यच्छ) आयतं कुरु (मध्यम्) (वियमय) विविधं दीर्घीकुरु (ओषधे) अन्यत्पूर्ववत् ॥

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