Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 28 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 28/ मन्त्र 2
    ऋषिः - भृगु देवता - यमः, निर्ऋतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अरिष्टक्षयण सूक्त
    1

    परी॒मे॒ग्निम॑र्षत॒ परी॒मे गाम॑नेषत। दे॒वेष्व॑क्रत॒ श्रवः॒ क इ॒माँ आ द॑धर्षति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । इ॒मे । अ॒ग्निम् । अ॒र्ष॒त॒ । परि॑ । इ॒मे । गाम् । अ॒ने॒ष॒त॒ । दे॒वेषु॑ । अ॒क्र॒त॒ । श्रव॑: । क: । इ॒मान् । आ । द॒ध॒र्ष॒ति॒ ॥२८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परीमेग्निमर्षत परीमे गामनेषत। देवेष्वक्रत श्रवः क इमाँ आ दधर्षति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि । इमे । अग्निम् । अर्षत । परि । इमे । गाम् । अनेषत । देवेषु । अक्रत । श्रव: । क: । इमान् । आ । दधर्षति ॥२८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 28; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विद्वान् के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इमे) इन पुरुषों ने (अग्निम्) विद्वान् को (परि) सब ओर (अर्षत) प्राप्त किया है, (इमे) इन्होंने (गाम्) विद्या को (परि) सब ओर (अनेषत) पहुँचाया है। और (देवेषु) विद्वानों में (श्रवः) यश (अक्रत) किया है। (कः) कौन (इमान्) इन लोगों को (आ दधर्षति) जीत सकता है ॥२॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य विद्वानों से विद्या पाकर कीर्ति पाते हैं, वे सदा विजयी होते हैं ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(परि) परितः। सर्वतः (इमे) विद्यार्थिनो मनुष्याः (अग्निम्) विद्वांसम् (अर्षत) ऋष गतौ। प्राप्तवन्तः (परि) (इमे) (गाम्) विद्याम् (अनेषत) णीञ् प्रापणे−लुङ्। प्रापितवन्तः (देवेषु) विद्वत्सु (अक्रत) कृतवन्तः (श्रवः) यशः (कः) शत्रुः (इमान्) समीपवर्तिनो वीरान् (आ) समन्तात् (दधर्षति) धृष अभिभवे, शपः श्लुः। जयति ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    गो परिणय

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार प्रभु का अनुसरण करनेवाले (इमे) = ये व्यक्ति (अग्निं परि अर्षत) = प्रभु की ओर गतिवाले होते हैं। (इमे) = ये (गाम्) = वेदवाणी को परि अनेषत परिणीत करते हैं। वेदवाणी को अपनानेवाले होते हैं। २. इसप्रकार ये (देवेषु) = दिव्य गुणों में (श्रवः) = यश को (अक्रत) = करनेवाले होते हैं, दिव्य गुणों को धारण करके यशस्वी बनते हैं। (क:) = अब कौन (इमान्) = इन्हें (आ दधर्षति) = धर्षित कर सकता है? 'काम-क्रोध, लोभ आदि कोई भी शत्रु इन्हें आक्रान्त करनेवाला नहीं होता।

    भावार्थ

    हम प्रभु की ओर चलें, वेदवाणी को परिणीत करें, दिव्य गुणों से यशस्वी बनें और काम आदि से अजय्य हों।


     

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (इमे) ये जो [कपोत संचालक, मन्त्र १] (अग्निम्) यज्ञिय अग्नि को (परि=परितः) पृथिवी के सब ओर (अर्षत) ले गये हैं, ( इमे) ये जो (गाम् परि= परितः) पृथिवी के सब ओर [कपोत= जलीय-यान को] (अनेषत) ले गये हैं । (देवेषु) भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के दिव्य अधिकारियों में इन्होंने जो (श्रवः) निज यश ( अक्रत) फैलाया है, (इमान्) इन्हें (क:) कौन (आदधर्षति) पराभूत करेगा।

    टिप्पणी

    [यज्ञिय-अग्नि वैदिक संस्कृति की प्रतीक है । यह रोगनाशक, स्वास्थ्य और जोवन को बढ़ाती है । जो इस का प्रकार पृथिवी भर में करते; निज जालीय-यानों का पृथिवी के सब ओर निर्भय हो कर यातायात करते; अन्नसंग्रह करते; पृथिवी के राष्ट्रों में यश प्राप्त करते; उनका कोई नहीं धर्षण कर सकता, न कोई उन्हें पराभूत कर सकता। ञिधृषा प्रागल्भ्ये (स्वादिः), गल्भ धार्ष्ट्ये (भ्वादिः) । धृष प्रसहने (चुरादिः), प्रसहनम् = पराभवः]।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राजा और राजदूत के व्यवहार।

    भावार्थ

    (इमे) ये विद्वान् लोग (अग्निम् अर्षत) अग्नि के समान प्रकाशमान ज्ञानी विद्वान् को प्राप्त करते हैं (गाम् परि अनेषत) और समस्त पृथिवी का परिभ्रमण या वेदवाणी का अभ्यास करते हैं। (देवेषु) विद्वानों में और राजाओं में भी (श्रवः अक्रत) इन्होंने अपना बल या यश प्राप्त किया है। (इमान्) अब इनको (कः) कौन (आ दधर्षति) परास्त कर सकता है। जो विद्वान् दूतों को रखते समय पृथ्वी में पहुंच कर राजाओं में बल प्राप्त कर लें उनको विजय नहीं किया जा सकता।

    टिप्पणी

    (प्र० द्वि०) ‘परिमे गामनेषत पर्यग्निमहृषत’ इति ऋ०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृगुर्ऋषिः। यमो निर्ऋतिश्च देवते। १ त्रिष्टुप्। २ अनुष्टुप्। ३ जगती। तृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Response to Challenge

    Meaning

    These people of our land have raised a force of brilliant people in their fields. They have raised the land, its standard of knowledge, culture and wealth high. They have made a place for themselves among the scholars and rulers of noble character over the earth. Who can then suppress and terrorize them?

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    They have approached the adorable Lord. They have sent (him) around the earth. They have gained glory among the enlightened ones. Who can venture to assail them ?

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    These learned who train the pigeon take its benefit, know the properties of fire, communicate the word of news and a message alround, attain fame among learned men, who is the man that conquers them ?

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    They have secured a learned person, and diffused knowledge all around. They have established their prestige amongst the learned, Who is the man that conquers them?

    Footnote

    They: seekers after knowledge.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(परि) परितः। सर्वतः (इमे) विद्यार्थिनो मनुष्याः (अग्निम्) विद्वांसम् (अर्षत) ऋष गतौ। प्राप्तवन्तः (परि) (इमे) (गाम्) विद्याम् (अनेषत) णीञ् प्रापणे−लुङ्। प्रापितवन्तः (देवेषु) विद्वत्सु (अक्रत) कृतवन्तः (श्रवः) यशः (कः) शत्रुः (इमान्) समीपवर्तिनो वीरान् (आ) समन्तात् (दधर्षति) धृष अभिभवे, शपः श्लुः। जयति ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top