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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - सोमः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - असुरक्षयण सूक्त
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    येन॑ सोम साह॒न्त्यासु॑रान्र॒न्धया॑सि नः। तेना॑ नो॒ अधि॑ वोचत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । सो॒म॒ । सा॒ह॒न्त्य॒ । असु॑रान् । र॒न्धया॑सि । न॒: । तेन॑ । न॒: । अधि॑ । वो॒च॒त॒ ॥७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येन सोम साहन्त्यासुरान्रन्धयासि नः। तेना नो अधि वोचत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन । सोम । साहन्त्य । असुरान् । रन्धयासि । न: । तेन । न: । अधि । वोचत ॥७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सुख की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (साहन्त्य) हे विजयी शूरों में रहनेवाले (सोम) बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन् ! (येन) जिस [मार्ग] से (असुरान्) असुरों को (नः) हमारे लिये (रन्धयासि) तू वश में करे, (तेन) उसी से (नः) हमारे लिये (अधि) अनुग्रह से (वोचत=अवोचत) आपने कथन किया है ॥२॥

    भावार्थ

    परमेश्वर अपनी सनातनी वेदविद्या द्वारा भूत, भविष्यत् और वर्तमान में रक्षा करता है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(येन) पथा−म० १। (सोम) (साहन्त्य) भुवो झिच्। उ० ३।५०। इति षह अभिभवे−झिच्। पाथोनदीभ्यां ड्यण्। पा० ४।४।१११। इति सहन्ति−ड्यण् बाहुलकात्। हे सहन्तिषु सोढृषु जेतृषु भव (असुरान्) सुरविरोधिनो दुष्टान् (रन्धयासि) सू० ६।१। त्वं वशीकुर्याः (नः) अस्मदर्थम् (नः) (अधि) अधिकम् अनुग्रहपूर्वकम् (वोचत) लुङि प्रथमपुरुषस्य छान्दसं रूपम्। भवान् कथितवानस्ति ॥

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    विषय

    साहन्त्य सोम

    पदार्थ

    १. हे (साहन्त्य सोम) = विजयी शक्ति से युक्त सोम-शत्रुओं का पराभव करनेवाले शान्त प्रभो! (येन) = जिस शक्ति से आप (न: असुरान् रन्धयासि) = हमारे आसुरभावों को नष्ट करते हैं, (तेन) = उस शक्ति के साथ (नः) = हमारे लिए (अधिवोचत) = आधिक्येन ज्ञान का उपदेश कीजिए।

    भावार्थ

    प्रभु हमें शक्ति और ज्ञान दें, जिससे हम शत्रुओं का पराभव कर सकें।

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    भाषार्थ

    (साहन्त्य सोम) हे शत्रु का पराभव करने वाले सेनाष्यक्ष ! (येन) जिस [सैनिक बल द्वारा] तू (असुरान्) असुरों को (नः) हमारे (रन्धयासि) वश में कर देता है, ( तेन=तम्) उस बल को (नः) हमारे प्रति (अधिवोचत) अधिकार पूर्वक कह।

    टिप्पणी

    [तेन विभक्तिव्यत्ययः। साहन्त्य= सहन्ति+ ड्यण्। सहन्तिः= षह अभिभवे (सायण) शिच् (उणा० ३।५०), झोऽन्तः (अष्टा० ७।१।३) द्वारा झ को अन्त् आदेश। "ब्रह्मणस्पति" वेदज्ञ विद्वान् है, अतः विद्वत्ता के कारण उसे अधिकार प्राप्त है कि वह वेदोपदेश दे सके]

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    विषय

    उत्तम शासन की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे (सोम) हे ऐश्वर्यवन् राजन् ! हे (साहन्त्य) सबको अपने वश में करने वाले ! नियामक ! (येन) जिस बल से (असुरान्) बलवान् पुरुषों को भी (नः) हमारे कल्याण के लिये (रन्धयासि) अपने वश करता है (तेन) उसी उपाय से (नः) हम पर भी (अधि वोचत) शासन कर, हम पर हुकूमत चला।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। सोमो देवता, विश्वेदेवा देवताः। १-३ गायत्र्यः। ३ निचृत्। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Path without Hate

    Meaning

    O Soma, lord of peace, patience and the pleasures of life, come by the path by which you move and punish the demons, and speak to us of peace and freedom.

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    Translation

    O blissful Lord, O overpowering one, by what force you put the life-giving powers (asuras) under our control, thereby may you incite us.

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    Translation

    O All-impelling and All-conquering Lord! Inspire unto us the knowledge of ways and means for our good with the power and ways through which you control the clouds and disintegrating forces of the World.

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    Translation

    O conquering King, with whatever power, thou subduest the evil-minded persons, bless us with the same power.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(येन) पथा−म० १। (सोम) (साहन्त्य) भुवो झिच्। उ० ३।५०। इति षह अभिभवे−झिच्। पाथोनदीभ्यां ड्यण्। पा० ४।४।१११। इति सहन्ति−ड्यण् बाहुलकात्। हे सहन्तिषु सोढृषु जेतृषु भव (असुरान्) सुरविरोधिनो दुष्टान् (रन्धयासि) सू० ६।१। त्वं वशीकुर्याः (नः) अस्मदर्थम् (नः) (अधि) अधिकम् अनुग्रहपूर्वकम् (वोचत) लुङि प्रथमपुरुषस्य छान्दसं रूपम्। भवान् कथितवानस्ति ॥

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