अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 85/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - यक्ष्मानाशन सूक्त
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इन्द्र॑स्य॒ वच॑सा व॒यं मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य च। दे॒वानां॒ सर्वे॑षां वा॒चा यक्ष्मं॑ ते वारयामहे ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑स्य । वच॑सा । व॒यम् । मि॒त्रस्य॑ । वरु॑णस्य । च॒ । दे॒वाना॑म्। सर्वे॑षाम् । वा॒चा । यक्ष्म॑म् । ते॒ । वा॒र॒या॒म॒हे॒ ॥८५.२॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रस्य वचसा वयं मित्रस्य वरुणस्य च। देवानां सर्वेषां वाचा यक्ष्मं ते वारयामहे ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रस्य । वचसा । वयम् । मित्रस्य । वरुणस्य । च । देवानाम्। सर्वेषाम् । वाचा । यक्ष्मम् । ते । वारयामहे ॥८५.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रोग के नाश के लिये उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्रस्य) प्रतापी, (मित्रस्य) स्नेही (च) और (वरुणस्य) सेवनीय पुरुष के (वचसा) वचन से और (सर्वेषाम्) सब (देवानाम्) व्यवहार जाननेवाले विद्वानों के (वाचा) वचन से (ते) तेरे (यक्ष्मम्) राजरोग को (वयम्) हम लोग (वारयामहे) हटाते हैं ॥२॥
भावार्थ
जैसे विद्वानों से शिक्षा पाकर वैद्य रोगों की निवृत्ति करता है, इसी प्रकार मनुष्य अपने दोषों की निवृत्ति करें ॥२॥
टिप्पणी
२−(इन्द्रस्य) प्रतापिनः पुरुषस्य (वचसा) वचनेन। उपदेशेन (वयम्) पुरुषार्थिनः (मित्रस्य) स्नेहिनः (वरुणस्य) वरणीयस्य। सेवनीयस्य (च) (देवानाम्) व्यवहारिणां विदुषाम् (सर्वेषाम्) समस्तानाम् (वाचा) वचनेन (यक्ष्मम्) राजरोगम् (ते) तव (वारयामहे) निवारयामः ॥
विषय
'इन्द्र, मित्र, वरुण देव'
पदार्थ
१. (इन्द्रस्य) = रोगरूप सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभु के (वचसा) = वचन से वेदप्रतिपादित वाणी से (वयम्) = हम (ते यक्ष्मम्) = तेरे रोग को (वारयामहे) = निवारित करते हैं। वरणवृक्ष के समुचित प्रयोग से हम तेरे रोग को दूर करते हैं। २. (मित्रस्य) = उस प्रमीति [मृत्यु] से बचानेवाले प्रभु के (च) = तथा (वरुणस्य) = द्वेष आदि का निवारण करनेवाले प्रभु के वचन से हम तेरे रोग को दूर करते हैं। 'इन्द्र' में जितेन्द्रियता का भाव है, 'मित्र' में स्नेह तथा 'वरुण' में निषता का। ये तीनों ही वृत्तियों दोष-निवारण के लिए आवश्यक हैं। ३. (सर्वेषां देवानां वाचा) = सब देवों की वाणियों से हम तेरे रोगों को दूर करते हैं। विद्वान् वैद्यों के कथन से वरना का ठीक प्रयोग करते हुए हम नौरोग बनते हैं।
भावार्थ
हम 'जितेन्द्रिय, स्नेहवाले व निष' बनकर रोगों को पराजित करते हैं। विद्वान् बैद्यों के कथन से वरना का ठीक प्रयोग करते हुए हम नीरोग बनते हैं।
भाषार्थ
(इन्द्रस्य) विद्युत्-सम्बन्धी, (मित्रस्य) सूर्यसम्बन्धी, (च) और (वरुणस्य) जलसम्बन्धी, (वचसा) वेदवाणी द्वारा (वयम्) हम (वैद्य] तथा (सर्वेषाम् देवानाम्) सब देवों सम्बन्धी (वाचा) वेदवाणी द्वारा (ते यक्ष्मम्) तेरे यक्ष्म को (वारयामहे) निवारित करते हैं।
टिप्पणी
[अभिप्राय यह प्रतीत होता है कि वेदवाणी में प्रोक्त नाना दिव्य तत्वों विद्युत् आदि द्वारा यक्ष्म का निवारण सम्भव है। यह तत्तत् वेदवाणी में अनुसन्धेय है। जैसे कि मन्त्र ३ में भी वरुणसम्बन्धी जल को तथा वैश्वानर अग्नि को यक्ष्मनिवारक कहा है]।
विषय
यक्ष्मा रोग की चिकित्सा।
भावार्थ
(इन्द्रस्य) सूर्य (मित्रस्य) मरण से त्राण = रक्षा करने वाली शुद्ध वायु और (वरुणस्य) सर्वश्रेष्ठ और व्यापक विद्युत् सम्बन्धी (वचसा) उत्तम उपदेशों द्वारा और (सर्वेषां देवानाम्) समस्त देव, विद्वानों की वाणी, सत् शिक्षा से हम (ते यक्ष्मम्) तेरे राजरोग को भी (वारयामहे) दूर करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषि यक्ष्मनाशनकामः। वनस्पतिर्देवता। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Yakshma Cure
Meaning
By word of Indra, Mitra and Varuna, powers of vital energy, love and justice, and by the prescriptive advice of all divine and expert physicians, we cure and ward off your yakshma, consumptive and cancerous disease.
Translation
By the command of the replendent Lord, of the friendly Lord, of the venerable Lord, and with the speech of all the enlightend ones, we ward off your wasting disease.
Translation
O patient! I, the physician drive your disease away with the consultation and advice of mighty physician, of expert of climate, of expert of preventives and of the advice of the other learned men.
Translation
O patient, we drive away consumption from thee, according to the instructions of glorious, sympathetic, respectable, and all learned persons!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(इन्द्रस्य) प्रतापिनः पुरुषस्य (वचसा) वचनेन। उपदेशेन (वयम्) पुरुषार्थिनः (मित्रस्य) स्नेहिनः (वरुणस्य) वरणीयस्य। सेवनीयस्य (च) (देवानाम्) व्यवहारिणां विदुषाम् (सर्वेषाम्) समस्तानाम् (वाचा) वचनेन (यक्ष्मम्) राजरोगम् (ते) तव (वारयामहे) निवारयामः ॥
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