अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 91/ मन्त्र 3
आप॒ इद्वा उ॑ भेष॒जीरापो॑ अमीव॒चात॑नीः। आपो॒ विश्व॑स्य भेष॒जीस्तास्ते॑ कृण्वन्तु भेष॒जम् ॥
स्वर सहित पद पाठआप॑: । इत् । वै । ऊं॒ इति॑। भे॒ष॒जी: । आप॑: । अ॒मी॒व॒ऽचात॑नी: । आप॑: । विश्व॑स्य । भे॒ष॒जी: । ता: । ते॒ । कृ॒ण्व॒न्तु॒ । भे॒ष॒जम् ॥९१.३॥
स्वर रहित मन्त्र
आप इद्वा उ भेषजीरापो अमीवचातनीः। आपो विश्वस्य भेषजीस्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम् ॥
स्वर रहित पद पाठआप: । इत् । वै । ऊं इति। भेषजी: । आप: । अमीवऽचातनी: । आप: । विश्वस्य । भेषजी: । ता: । ते । कृण्वन्तु । भेषजम् ॥९१.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आत्मिक दोष नाश करने का उपदेश।
पदार्थ
(आपः) शुभकर्म वा जल (इत् वै उ) अवश्य ही (भेषजीः=०−ज्यः) भयनिवारक है, (आपः) शुभकर्म वा जल (अमीवचातनीः=०−न्यः) पीडानाशक है। (आपः) शुभ कर्म वा जल (विश्वस्य) सब के (भेषजीः) भयनिवारक है, (ताः) वे (ते) तेरा (भेषजम्) भयनिवारण (कृण्वन्तु) करें ॥३॥
भावार्थ
मनुष्य वेदविहित कर्मों को करके अपने आत्मिक, और शारीरिक दोष मिटावें, और जलचिकित्सा करके शारीरिक रोगों की निवृत्ति करें ॥३॥ यह मन्त्र कुछ भेद से आ चुका है−अ० ३।७।५ ॥
टिप्पणी
३−(आपः) आप्नोतेर्ह्रस्वश्च उ० २।५८। इति आप्लृ व्याप्तौ−क्विप् अप्तृन्तृच्०। पा० ६।४।११। इत्युपधादीर्घः। अपः कर्मनाम−निघ० २।१। आप्यन्ते प्राप्यन्ते सुखदुःखानि याभिस्ता आपः कर्माणि−इति महीधरभाष्ये यजु० ४०।४। वेदविहितकर्माणि (इद् वा उ) इति सर्वेऽवधारणे (भेषजीः) अ० ३।७।५। भेषज्यः। भयनिवारकाः (अमीवचातनीः−रोगाणां नाशयित्र्यः (विश्वस्य) सर्वस्य (ताः) आपः (ते) तव (कृण्वन्तु) कुर्वन्तु (भेषजम्) रोगनिवर्तनम् ॥
विषय
रोगों से बचानेवाले 'जल'
पदार्थ
१. (आपः) = जल (इत् वा उ) = निश्चय से (भेषजी:) = औषध हैं। (आपः) = जल (अमीवचातनी:) = रोगों को नष्ट करनेवाले हैं। (आपः) = जल (विश्वस्य भेषजी:) = सब रोगों की औषध हैं। (ता:) = वे (ते) = तेरे लिए (भेषजं कृण्वन्तु) = औषध को करें।
भावार्थ
जलों का समुचित प्रयोग सब रोगों का विनाशक है। ये निश्चय से रोगों को दूर करते हैं। 'जल' का अर्थ ही 'आवृत्त' करनेवाला-रोगों से बचानेवाला है।
विशेष
सब रोगों से बचकर यह 'बाजी' शक्तिशाली बनता है और संसार के विषयों में न उलझता हुआ 'अथर्वा' कहलाता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है।
भाषार्थ
(आप:) जल (इद् वै उ) ही निश्चय से (भेषजीः) चिकित्सक हैं, औषध हैं, (आपः) जल (अमीवचातनी:) रोग और रोगजनक "अमीवा" नामक रोग कीटाणु के विनाशक है। (आप:) जल (विश्वस्य) सब रोग समूह के (भेषजीः) चिकित्सक हैं, औषध हैं, (ताः) वे जल (ते) तेरी (भेषजम्! चिकित्सा या औषध (कृण्वन्तु) करें।
टिप्पणी
[मन्त्र में "जलचिकित्सा" का वर्णन है। तथा देखो (अथर्व० १।४।४; १।५।१-४; १।६।१-४ आदि)। तथा आप:= शरीरगत रक्त। यथा- "को अस्मिन्नापो व्यदधात् विषूवृतः पुरुवृतः सिन्धुसृत्याय जाताः। तीव्रा अरुणा लोहिनीस्ताम्रधूम्रा ऊर्ध्वा अवाचीः पुरुषे तिरश्चीः।।" (अथर्व० १०।२।११)। सिन्धु= हृदय। तीव्राः= स्वाद में। अरुणाः= ईषद् रक्त। लोहिणीः= अधिक लाल तथा लोहे वाली। ताम्रधूम्राः= ताम्वे के धूंए जैसे नीलवर्ण, अर्थात् सिराओं के कृष्णरक्त, पुरुष शरीर में ऊर्ध्व, नीचे की ओर तथा आड़े फैले हुए। जैसे-जैसे खान-पान सात्त्विक होता जाता और प्राणायाम तथा श्वास प्रश्वास शुद्ध वायु का सेवन बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे रक्त रूपी "आप:" में रोगों के निरोध तथा शमन करने की शक्ति बढ़ती जाती है, यह दर्शाने के लिये "रक्तरूपी" आपः का यहां कथन किया है।]
विषय
भवरोग-विनाश के उपाय।
भावार्थ
अथवा (आपः इत् या) जल ही (भेषजीः) सब रोगों की चिकित्सा है, क्योंकि (आपः) जल ही (अमीव-चातनीः) रोगों का नाशक है। (आपः) जल ही (विश्वस्य) समस्त प्राणियों के (भेषजीः) रोग को दूर करता है, वही (भेषजम्) रोग को दूर (कृण्वन्तु) करें। इस सूक्त में तीन प्रकार से मल और पापों का नाश करने का उपदेश किया है (१) योगाभ्यास से चित्त के पापों को दूर करे। (२) क्रिया-योग से कायिक दोषों को दूर करे और (३) जल स्नान से शरीर के बाह्य मलों को दूर करे।
टिप्पणी
(तृ०) ‘सर्वस्य भेभृग्वङ्गिराः ऋषिः। बहवो देवताः। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥ष०’ इति ऋ०। ऋग्वेदे सप्तऋषय ऋषयः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वङ्गिराः ऋषिः। बहवो देवताः। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Cure by Apah, ‘waters / karma’
Meaning
Waters, karmas, are curative, waters, karmas, are curative of diseases, waters, karmas, are curative of all health problems. May waters, karmas, cure your problems too.
Subject
Apah: Waters
Translation
The waters certainly have the remedial properties; the waters are dispeller of disease. The waters cure all maladies; may they be the remedy for you.
Translation
Waters are healing balms, waters the destroyers of diseases, waters cure all malady and let them bring medicine for you, O man!
Translation
The waters verily bring health, the Waters drive disease away. The waters cure all malady: may they serve as medicine for thee.
Footnote
Pastor Kusipp the famous Bavarian water-doctor, maintains that what cannot be cured by water is altogether incurable. Water is the panacea. Hydropathy is the one saving principle which can be applied in every case.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(आपः) आप्नोतेर्ह्रस्वश्च उ० २।५८। इति आप्लृ व्याप्तौ−क्विप् अप्तृन्तृच्०। पा० ६।४।११। इत्युपधादीर्घः। अपः कर्मनाम−निघ० २।१। आप्यन्ते प्राप्यन्ते सुखदुःखानि याभिस्ता आपः कर्माणि−इति महीधरभाष्ये यजु० ४०।४। वेदविहितकर्माणि (इद् वा उ) इति सर्वेऽवधारणे (भेषजीः) अ० ३।७।५। भेषज्यः। भयनिवारकाः (अमीवचातनीः−रोगाणां नाशयित्र्यः (विश्वस्य) सर्वस्य (ताः) आपः (ते) तव (कृण्वन्तु) कुर्वन्तु (भेषजम्) रोगनिवर्तनम् ॥
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