अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 12/ मन्त्र 3
ए॒षाम॒हं स॒मासी॑नानां॒ वर्चो॑ वि॒ज्ञान॒मा द॑दे। अ॒स्याः सर्व॑स्याः सं॒सदो॒ मामि॑न्द्र भ॒गिनं॑ कृणु ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षाम् । अ॒हम् । स॒म्ऽआसी॑नानाम् । वर्च॑: । वि॒ऽज्ञान॑म् । आ । द॒दे॒ । अ॒स्या: । सर्व॑स्या: । स॒म्ऽसद॑: । माम् । इ॒न्द्र॒ । भ॒गिन॑म् । कृ॒णु॒ ॥१३.३॥
स्वर रहित मन्त्र
एषामहं समासीनानां वर्चो विज्ञानमा ददे। अस्याः सर्वस्याः संसदो मामिन्द्र भगिनं कृणु ॥
स्वर रहित पद पाठएषाम् । अहम् । सम्ऽआसीनानाम् । वर्च: । विऽज्ञानम् । आ । ददे । अस्या: । सर्वस्या: । सम्ऽसद: । माम् । इन्द्र । भगिनम् । कृणु ॥१३.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सभापति के कर्तव्यों का उपदेश।
पदार्थ
(अहम्) मैं [सभापति] (एषाम्) इन (सभासीनानाम्) यथावत् बैठे हुए पुरुषों का (वर्चः) तेज और (विज्ञानम्) विज्ञान (आ ददे) अङ्गीकार करता हूँ। (इन्द्र) हे परमेश्वर ! (माम्) मुझको (अस्याः) इस (सर्वस्याः संसदः) सब सभा का (भगिनम्) ऐश्वर्यवान् (कृणु) कर ॥३॥
भावार्थ
जहाँ सभापति और सब सभासद् एकमन होकर अपना पराक्रम और विज्ञान अर्थात् सूक्ष्म विचार बढ़ाते हैं, वहाँ पर सब ऐश्वर्यवान् होते हैं ॥३॥
टिप्पणी
३−(एषाम्) पुरोवर्तिनाम् (अहम्) सभापतिः (समासीनानाम्) आस उपवेशने-शानच्। ईदासः। पा० ७।२।८३। आकारस्य ईकारः। यथावदुपविष्टानाम् (वर्चः) तेजः। पराक्रमम् (आ ददे) अङ्गीकरोमि (अस्याः) पुरः स्थितायाः (सर्वस्याः) (संसदः) सभायाः (माम्) (इन्द्र) हे परमेश्वर (भगिनम्) ऐश्वर्यवन्तम् (कृणु) कुरु ॥
विषय
वर्चः विज्ञानम्
पदार्थ
१. राजा [सभापति] कहता है कि (अहम्) = मैं (समासीनानां एषाम्) = सभा में मिलकर बैठे हुए इन सदस्यों की (वर्च:) = तेजस्विता को तथा (विज्ञानम्) = विज्ञान को (आददे) = ग्रहण करता हूँ। वैदुष्यजनित प्रभावविशेष ही 'वर्चस्' है, वेदशास्त्रार्थविषयक ज्ञान ही 'विज्ञान' है। २. हे (इन्द्र) = वाणी के अनुशासक इन्द्र! आप (माम्) = मुझे (अस्याः सर्वस्याः संसद:) = इस सारी संसद के (भगिनं) = [भग-ज्ञान] ज्ञानवाला (कृणु) = कीजिए। मैं सारी सभा के विचारों को सुननेवाला बनूं।
भावार्थ
राजा सभा के सभी सदस्यों के वैदुष्यजनित प्रभावविशेष को जाने तथा वेदशास्त्रार्थ विषयक ज्ञान से परिचित हो। वह सभा के सभी सभ्यों के विचारों को जाने।
भाषार्थ
(एषाम्) इन (समासीनानाम्) निज स्थानों में इकट्ठे बैठे हुए सभासदों के (वर्चः) तेज को, (विज्ञानम्) और निश्चय को (अहम्) मैं सभापति (आददे) स्वीकार करता हूं। (इन्द्र) हे सम्राट् ! (माम्) मुझे (अस्याः सर्वस्याः) इस सब (संसदः) संसद का (भगिनम्) भागी (कृणु) कर।
टिप्पणी
[वर्चः= तेज, और विज्ञान है इन ज्ञानियों का निश्चय। सभापति सम्राट् को कहता है कि मैं यह स्वीकार करता हूं कि संसद में समासीन सब वर्चस्वी हैं, वैदुष्य से सम्पन्न हैं, तथा विज्ञान से सम्पन्न हैं। अतः इनके सम्मत परामर्श को मैं स्वीकार करूंगा। अतः इस संसद् का मुझे भागी अर्थात् अधिकारी वना। वर्चः= वैदुष्यसम्पन्न प्रभावविशेष (सायण)]।
विषय
सभा समिति बनाने का उपदेश।
भावार्थ
(एषाम्) इन (सम्-आसीनानाम्) एकत्र होकर सभा में विराजमान विद्वान् पुरुषों, पदाधिकारियों, एवं प्रजा के प्रतिनिधियों के (वि-ज्ञानम्) विशेष ज्ञान और (वर्चः) बलको (अहम्) मैं उनकी सम्मति लेकर (आ ददे) स्वयं प्राप्त करता हूं। हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवान् राजन् प्रभो ! (अस्याः सर्वस्याः) इस समस्त (संसदः) सभा के (भगिनम्) ऐश्वर्य का स्वामी (माम्) मुझे (कृणु) बना।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शौनक ऋषिः। सभा देवता। १, २ सरस्वती। ३ इन्द्रः। ४ मन्त्रोक्तं मनो देवता। अनुष्टुप्छन्दः। चतृर्ऋचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
The Assembly
Meaning
Of all these members sitting in the Assembly I recognise and accept the knowledge and intention, and I do them honour for that. O Ruler, Indra, lord of the people, make me the partner, honoured of this Assembly.
Subject
Indrah
Translation
The influence and discernment of those seated here, I take to
myself. O resplendent Lord, May you make me acceptable
to all this assembly.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.13.3AS PER THE BOOK
Translation
I, the king make my own strength and knowledge of these members who sit here in parliament. O Almighty Lord! make me conspectus in all these assemblies.
Translation
I take full advantage of the splendor and learning of the members seated here. O God, make me conspicuous in all this gathered assembly!
Footnote
I and me refer to the king.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(एषाम्) पुरोवर्तिनाम् (अहम्) सभापतिः (समासीनानाम्) आस उपवेशने-शानच्। ईदासः। पा० ७।२।८३। आकारस्य ईकारः। यथावदुपविष्टानाम् (वर्चः) तेजः। पराक्रमम् (आ ददे) अङ्गीकरोमि (अस्याः) पुरः स्थितायाः (सर्वस्याः) (संसदः) सभायाः (माम्) (इन्द्र) हे परमेश्वर (भगिनम्) ऐश्वर्यवन्तम् (कृणु) कुरु ॥
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