अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 12/ मन्त्र 4
यद्वो॒ मनः॒ परा॑गतं॒ यद्ब॒द्धमि॒ह वे॒ह वा॑। तद्व॒ आ व॑र्तयामसि॒ मयि॑ वो रमतां॒ मनः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । व॒: । मन॑: । परा॑ऽगतम् । यत् । ब॒ध्दम् । इ॒ह । वा॒ । इ॒ह । वा॒ । तत् । व॒: । आ । व॒र्त॒या॒म॒सि॒ । मयि॑ । व॒: । र॒म॒ता॒म् । मन॑: ॥१३.४॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्वो मनः परागतं यद्बद्धमिह वेह वा। तद्व आ वर्तयामसि मयि वो रमतां मनः ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । व: । मन: । पराऽगतम् । यत् । बध्दम् । इह । वा । इह । वा । तत् । व: । आ । वर्तयामसि । मयि । व: । रमताम् । मन: ॥१३.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सभापति के कर्तव्यों का उपदेश।
पदार्थ
[हे सभासदो !] (यत्) जो (वः) तुम्हारा (मनः) मन (परागतम्) उचट गया है, (वा) अथवा (यत्) जो (इह वा इह) इधर-उधर [प्रतिकूल विषयों में] (बद्धम्) बँधा हुआ है। (वर्तयामसि) हम लौटाते हैं [जिससे] (वः मनः) तुम्हारा मन (मयि) मुझ में (रमताम्) ठहर जावे ॥४॥
भावार्थ
सभापति अपनी विशेष विज्ञानता से सभासदों का ध्यान निर्धारित विषय पर खींच कर कार्यसिद्धि करे ॥४॥
टिप्पणी
४−(यत्) (वः) युष्माकम् (मनः) मननम् (परागतम्) धर्मविषयादन्यत्र गतम् (यत्) (बद्धम्) संसक्तम् (इह वा इह) इतस्ततः। अनिश्चितविषये (वा) अथवा (तत्) मनः (वः) युष्माकम् (आ) आकृष्य (वर्तयामसि) अभिमुखं कुर्मः (मयि) प्रधाने (वः) (रमताम्) रमु उपरमे। तिष्ठतु (मनः) ॥
विषय
एकाग्रता से प्रस्तुत विषय का विचार
पदार्थ
१. सभापति कहता है कि हे सभासदो! यत्-जो वः मन:-आपका मन परागतम्-कहीं दूर गया हुआ है। वा-या यत्-जो आपका मन इह इह वा-इस-इस विषय में, अमुक-अमुक विषय में बद्धम्-बँधा हुआ है, व: आपके तत्-उस मन को आवर्तयामसि-हम सब ओर से लौटाते हैं। हे सभ्यो। वः मन:-आपका मन मयि रमताम्-मुझमें ही रमण करे, अर्थात् यहाँ प्रस्तुत विषय का ही विचार करनेवाला हो।
भावार्थ
सभा में सब सभ्य एकाग्र होकर प्रस्तुत विषय का ही विचार करें। एकाग्र होकर चिन्तन करनेवाला, अडाँवाडोल बृत्तिवाला विद्वान् 'अथर्वा' है [न थर्वति]। यही अगले दो सूक्तों का ऋषि है -
भाषार्थ
हे सदस्यो ! (यद्) जो (वः) तुम्हारा (मनः) समुदित मन (परागतम्) [प्रस्तुत विषय से] परे गया हुआ है, पराङ्मुख हुआ हुआ है, या (यद् इह वा इह वा) जो इधर-उधर [के विषय के साथ] (बद्धम्) बन्धा हुआ है, संलग्न है, (वः) तुम्हारे (तत्) उस समुदित मन को (आव तैयामसि) [मैं सभापति तथा मन्त्रीगण] लौटाते हैं, ताकि (वः) तुम्हारा समुदित (मनः) मन (मयि) मुझ सभापति [द्वारा प्रस्तावित विषय] में (रमताम्) रमण करे।
टिप्पणी
[वेदानुसार स्त्रियों को भी संसद् की सदस्या होने का अधिकार ज्ञात होता है१]। [१. इस अधिकार के लिये मन्त्र १२।३।५२ द्रष्टव्य है। इस मन्त्र में “समित्याम्" द्वारा स्त्री तथा पुरुष के समिति में अनृतभाषण की चर्चा हुई है।]
विषय
सभा समिति बनाने का उपदेश।
भावार्थ
सभापति या वक्ता, सभासदों के प्रति कहे कि हे सभासद् महानुभावो ! (वः) आप लोगों का (यद्) जो (मनः) मन (परागतम्) कहीं अन्यत्र गया है या (यद्) जो मन (इह वा इह वा) अमुक अमुक विषय में (बद्धम्) लगा है, (वः) आपके (तद्) उस चित्त को मैं (आ वर्त्तयामसि) पुनः पुनः लौटा लेता हूँ, अपनी तरफ ख़ैचता हूँ, आपका वह (मनः) मन (मयि रमताम्) मेरे ऊपर, मेरी कही बात में लगे, आप मेरे वचनों पर विचार कीजिये।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शौनक ऋषिः। सभा देवता। १, २ सरस्वती। ३ इन्द्रः। ४ मन्त्रोक्तं मनो देवता। अनुष्टुप्छन्दः। चतृर्ऋचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
The Assembly
Meaning
O members of the Assembly, if your mind and affiliation is disturbed, divided, gone away elsewhere to other loyalties, committed here or there, that we call back home to this Assembly and to this ruler. Pray, let your mind be committed to me, to the Assembly and nowhere else.
Subject
Manas (Thought)
Translation
Your thoughts, which have moved away (from me), or which
are attached here or there - those thoughts of yours, I cause
to tum back (to me). May your mind rejoice in me.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.13.4AS PER THE BOOK
Translation
O members of the parliament and assemblies! draw your thoughts hitherward again and let your mind firmly rest on me if these thoughts of your are turned away or bound and fastened here or there.
Translation
Whether your thoughts are turned away, or bound or fastened here and there we draw them hitherward again: let your mind firmly rest on me.
Footnote
The members of the Legislature should stick to the subject under discussion and not waste their time or fritter away their energy in irrelevant talk. They should listen attentively to the Speaker of the House. ‘Me’ means the Speaker
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(यत्) (वः) युष्माकम् (मनः) मननम् (परागतम्) धर्मविषयादन्यत्र गतम् (यत्) (बद्धम्) संसक्तम् (इह वा इह) इतस्ततः। अनिश्चितविषये (वा) अथवा (तत्) मनः (वः) युष्माकम् (आ) आकृष्य (वर्तयामसि) अभिमुखं कुर्मः (मयि) प्रधाने (वः) (रमताम्) रमु उपरमे। तिष्ठतु (मनः) ॥
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