अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 50/ मन्त्र 5
अजै॑षं त्वा॒ संलि॑खित॒मजै॑षमु॒त सं॒रुध॑म्। अविं॒ वृको॒ यथा॒ मथ॑दे॒वा म॑थ्नामि ते कृ॒तम् ॥
स्वर सहित पद पाठअजैषम् । त्वा । सम्ऽलिखितम् । अजैषम् । उत । सम्ऽरुधम् । अविम् । वृक:। यथा । मथत् । एव । मथ्नामि । ते । कृतम् ॥५२.५॥
स्वर रहित मन्त्र
अजैषं त्वा संलिखितमजैषमुत संरुधम्। अविं वृको यथा मथदेवा मथ्नामि ते कृतम् ॥
स्वर रहित पद पाठअजैषम् । त्वा । सम्ऽलिखितम् । अजैषम् । उत । सम्ऽरुधम् । अविम् । वृक:। यथा । मथत् । एव । मथ्नामि । ते । कृतम् ॥५२.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्यों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
[हे शत्रु !] (संलिखितम्) यथावत् लिखे हुए (त्वा) तुझको (अजैषम्) मैंने जीत लिया है, (उत) और (संरुधम्) रोक डालनेवाले को (अजैषम्) मैंने जीत लिया है। (यथा) जैसे (वृकः) भेड़िया (अविम्) बकरी को (मथत्) मथ डालता है, (एव) वैसे ही (ते) तेरे (कृतम्) कर्म को (मथ्नामि) मैं मथ डालूँ ॥५॥
भावार्थ
जिस दुष्ट जन का नाम राजकीय पुस्तकों में लिखा हो और बड़ा विघ्नकारी हो, उसको यथावत् दण्ड मिलना चाहिये ॥५॥
टिप्पणी
५−(अजैषम्) अहं जितवानस्मि (त्वा) त्वां शत्रुम् (संलिखितम्) राजकीयपुस्तकेषु सम्यग् लिखितम् (अजैषम्) (उत) अपि च (संरुधम्) रुधेः-क्विप्। निरोधकम्। विघ्नकारिणम् (अविम्) अजाम् (वृकः) अरण्यश्वा (यथा) (मथत्) मथ्नाति (एव) एवम् (मथ्नामि) नाशयामि (ते) तव (कृतम्) कर्म ॥
विषय
शत्रुओं को कुचल देना
पदार्थ
१. हे राजस्व तामस् भाव! (संलिखितं त्वा) = हृदयपटल पर सम्यक् लिखित [अंकित] हुए-हुए भी तुझे (अजैषम्) = मैं पराजित करता हूँ। (उत) = और (संरुथम्) -=उन्नति के मार्ग में रोकनेवाले विघ्नभूत तुझे अजैषम् मैं पराजित करता हूँ। २. (यथा) = जैसे (वृकः) = भेड़िया (अवि मथत) = भेड़ को मथ डालता है (एव) = इसी प्रकार (ते कृतम्) = तेरे द्वारा उत्पन्न किये गये राजस् और तामस् सब विकारों को (मनामि) = कुचल डालता हूँ।
भावार्थ
काम, क्रोध' का हृदय में जो दृढ़ स्थापन हुआ है, उसे मैं उखाड़ फेंकता हूँ। इनके द्वारा उन्नति-पथ में होनेवाले विनों को नष्ट करता हूँ। इन्हें कुचलकर मैं उन्नति-पथ पर आगे बढ़ता हूँ।
भाषार्थ
(त्वा) तुझे (अजैषम्) मैंने जीता है (संलिखितम्) परस्पर-लिखी शर्त के अनुसार, (उत) तथा (अजैषम्) मैंने जीता है (संरुधम्) अवरुद्ध किये [किले आदि] को। (यथा) जैसे (वृकः) भेड़िया (अविम्) भेड़ को (मथत्) मथता है, (एवा) इस प्रकार, (ते) तेरे (कृतम्) किये [शत्रुता के] कर्म को (मथ्नामि) मैं मथता हूँ।
टिप्पणी
[संरुधम्= सम्यक्तया अवरुद्ध किये को। अवरोधः= siege (आप्टे)]।
विषय
आत्म-संयम।
भावार्थ
हे प्रतिपक्ष ! राजस और तामसभाव ! (सं-लिखितम्) खूब अच्छी प्रकार शिला पर खुदे हुए लेख के समान हृदय पटल पर अंकित अथवा भूमिमानचित्र के समान आलिखित (उत) और (संरुधम्) हरेक उन्नति के कार्य में मुझे आगे बढ़ने से रोकने वाले, विघ्नकारी बाधक को मैंने अपने आत्मा के बल से (अजैषम्) जीत लिया है। और (यथा) जिस प्रकार (अविम्) भेड़ को (वृकः) भेड़िया (मथद्) पकड़ कर झंझोट डालता है उस प्रकार (ते) तेरे (कृतम्) किए दुष्फल को (मथ्नामि) मैं भी मथ डालूं। अध्यात्मबेदी के लिए दो ही पदार्थ हैं। एक अस्मद्—विषय आत्मा और दूसरा ‘युष्मद् विषय’ संसार। यहां संसार के प्रवर्त्तक अविद्याकृत आवरण को मथ कर तम या वृत पर, जिसको पूर्व मन्त्र में ‘वृत’ कहा है, विजय का प्रत्यक्ष रूप दर्शाया है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कितववधनकामोंगिरा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १, २, ५, ९ अनुष्टुप्। ३, ७ त्रिष्टुप्। ४, जगती। ६ भुरिक् त्रिष्टुप्। नवर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Victory by Karma
Meaning
I have conquered you even though guarded in a fort surrounded by a moat, and I crush whatever evil you have done as a wolf crushes a sheep.
Translation
I have conquered you as planned (sam-bkhitam), also I have conquered you, the checkmated (sam-rudham) (besieged). Like a wolf (vrka) tearing a sheep (avi), I shake down all your efforts.
Comments / Notes
MANTRA NO 7.52.5AS PER THE BOOK
Translation
O enemy! I have completely conquered you like a paper-scrawl, I have conquered you like a Captive, I tear your stake away as a wolf tears and rends a sheep.
Translation
O dark, base tendency, I have subdued the evil designs inscribed on the tablet of my heart, like an inscription engraved on a marble slab. I have conquered all the impediments that stand in the way of my moral progress. As a wolf tears and rends a sheep, so do I avert the fruit of thy evil intention.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(अजैषम्) अहं जितवानस्मि (त्वा) त्वां शत्रुम् (संलिखितम्) राजकीयपुस्तकेषु सम्यग् लिखितम् (अजैषम्) (उत) अपि च (संरुधम्) रुधेः-क्विप्। निरोधकम्। विघ्नकारिणम् (अविम्) अजाम् (वृकः) अरण्यश्वा (यथा) (मथत्) मथ्नाति (एव) एवम् (मथ्नामि) नाशयामि (ते) तव (कृतम्) कर्म ॥
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