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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 15
    ऋषिः - अथर्वा देवता - कामः छन्दः - जगती सूक्तम् - काम सूक्त
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    च्यु॒ता चे॒यं बृ॑ह॒त्यच्यु॑ता च वि॒द्युद्बि॑भर्ति स्तनयि॒त्नूंश्च॒ सर्वा॑न्। उ॒द्यन्ना॑दि॒त्यो द्रवि॑णेन॒ तेज॑सा नी॒चैः स॒पत्ना॑न्नुदतां मे॒ सह॑स्वान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    च्यु॒ता । च॒ । इ॒यम् । बृ॒ह॒ती ।अच्यु॑ता । च॒ । वि॒ऽद्युत् । बि॒भ॒र्ति॒ । स्त॒न॒यि॒त्नून् । च॒ । सर्वा॑न् । उ॒त्ऽयन् । आ॒दि॒त्य: । द्रवि॑णेन । तेज॑सा । नी॒चै: । स॒ऽपत्ना॑न् । नु॒द॒ता॒म् । मे॒ । सह॑स्वान् ॥२.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    च्युता चेयं बृहत्यच्युता च विद्युद्बिभर्ति स्तनयित्नूंश्च सर्वान्। उद्यन्नादित्यो द्रविणेन तेजसा नीचैः सपत्नान्नुदतां मे सहस्वान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    च्युता । च । इयम् । बृहती ।अच्युता । च । विऽद्युत् । बिभर्ति । स्तनयित्नून् । च । सर्वान् । उत्ऽयन् । आदित्य: । द्रविणेन । तेजसा । नीचै: । सऽपत्नान् । नुदताम् । मे । सहस्वान् ॥२.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (इयम्) यह (बृहती) बड़ी (विद्युत्) प्रकाशमान शक्ति [परमेश्वर] (च्युता) गिरे हुए [निर्बल] (च च) और (अच्युता) न गिरे हुए (प्रबल द्रव्यों) को (च) और (सर्वान्) सब (स्तनयित्नून्) शब्द करनेवालों को (बिभर्ति) धारण करता है। (उद्यन्) उदय होता हुआ (सहस्वान्) बलवान् (आदित्यः) प्रकाशमान जगदीश्वर (द्रविणेन) बल से और (तेजसा) तेज से (मे) मेरे (सपत्नान्) वैरियों को (नीचैः) नीचे (नुदताम्) ढकेल देवे ॥१५॥

    भावार्थ

    सर्वपोषक, सर्वशक्तिमान्, परमेश्वर के नियम से पुरुषार्थी जन बल और प्रताप बढ़ाकर वैरियों का नाश करते हैं ॥१५॥

    टिप्पणी

    १५−(च्युता) च्युङ् गतौ-क्त। शेर्लोपः। च्युतानि अधोगतानि। निर्बलानि वस्तूनि (च) (इयम्) प्रत्यक्षा (बृहती) महती (अच्युता) अनधोगतानि। प्रबलानि द्रव्याणि (च) (विद्युत्) विविधं द्योतमाना शक्तिः। परमेश्वरः (बिभर्त्ति) धरति (स्तनयित्नून्) अ० १।१३।—१। गर्जनशीलान् (च) (सर्वान्) (उद्यन्) उदयं गच्छन् (आदित्यः) अ० १।९।१। आदीप्यमानः परमेश्वरः (द्रविणेन) बलेन-निघ० २।९। (तेजसा) प्रतापेन (नीचैः) (सपत्नान्) (नुदताम्) प्रेरयतु (मे) मम (सहस्वान्) बलवान् ॥

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    विषय

    सहस्वान् आदित्यः

    पदार्थ

    १. (इयं बहती) = सब वृद्धियों की साधनभूत यह (विद्युत्) = विशिष्ट दीसिवाली ब्रह्मशक्ति (च्युता च अच्युता च) = [च्युङ् गतौ] गतिमय व स्थिर-चराचर सब पदार्थों को (च) = तथा (सर्वान् स्तनयित्नून) = गर्जना करनेवाले सब मेघादि को (बिभर्ति) = धारण करती है। २. (उद्यन्) = मेरे हृदयाकाश में उदित होता हुआ (आदित्यः) = सूर्यसम दीप्स (सहस्वान्) = बलवान् प्रभु (द्रविणेन) = बल [नि० २.९] व (तेजसा) = तेज से (मे सपत्नान) = मेरे शत्रुओं को (नीचैः नदताम्) = नीचे धकेल दे।

    भावार्थ

    दीप्त  ब्रह्मशक्ति ही चराचर जगत् को वगर्जना करते हुए मेघादि को धारित करती है। हदयाकाश में उदित प्रभु बल व तेज प्राप्त कराके मुझे मेरे शत्रुओं को विनष्ट करने में समर्थ करें।

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    भाषार्थ

    (च्युता) स्व स्थान से च्युत होने वाली (इयं बृहती) यह बड़ी पृथिवी (च) और (अच्युता च) न च्युत होने वाली (विद्युत्) विद्युत्— इन दो में से प्रत्येक [जैसे] (सर्वान् स्तनयित्नूम् च) सब गर्जने वाले मेघों का (बिभर्ति) धारण-पोषण करती है [वैसे] (सहस्वान्) सहनशील कमनीय परमेश्वर (सर्वान् बिभर्ति) सब का भरण-पोषण करता है। [तथा जैसे] (उद्यन् आदित्यः) उदित होता हुआ आदित्य (द्रविणेन तेजसा) निज बल और तेज द्वारा या तेजरूपी बल द्वारा (मे सपत्नान्) मेरे रोगजनक कीटाणुओं को धकेलता है, वैसे (सहस्वान्) पराभव करने वाला कमनीय परमेश्वर मेरे अध्यात्म सपत्नों को (नीचैः नुदताम्) नीचे धकेल दे, पटक दे।

    टिप्पणी

    [पृथिवी च्युता है, निज स्थान से च्युत होती रहती है, सूर्य के चारों ओर परिभ्रमण द्वारा पूर्व स्थान को छोड़ कर अगले-अगले स्थानों की ओर बढ़ती रहती है, पूर्व राशि को छोड़ अगलो अगली राशि की ओर बढ़ती रहती है। विद्युत अच्युता। यह पृथिवी के वायुमण्डल में रहती है। पृथिवी का वायुमण्डल पृथिवी के स्थान बदलने के साथ-साथ अपना स्थान बदलता है, स्वतन्त्ररूप में नहीं अतः वायुमण्डल में रहने वाली विद्युत् भी स्वतन्त्रतया स्थान नहीं बदलती। इसलिये इसे अच्युता कहा है। ये दोनों पृथिवी और विद्युत्, मेघों का भरण-पोषण करती हैं। पृथिवी के परिभ्रमण से ऋतुएं बनती और इसके परिभ्रमण से ही वर्षा ऋतु आती, और मेघों का भरण-पोषण होता है। वायुमण्डल में स्थित कणों पर जब विद्युत् का प्रवेश होता है, तब पृथिवी से उठे वाष्प के कण, विद्युदा विष्ट पार्थिव कणों पर जमा हो जाते हैं, और मेघ का रूप धारण करते हैं। इस प्रकार विद्युत् भी मेघों का भरण-पोषण करती है। मन्त्र में "च" समुच्चयार्थक है। उद्यन् आदित्यः,— यथा "उद्यन्वादित्यः क्रिमीन् हन्तु निम्लोचन हन्तु रश्मिभिः" (अथर्व० २।३२।१)। आदित्य की प्रातःकाल की लालरश्मियां, तथा सांयकाल की लालरश्मियां रोग कीटाणुओं का विशेषतया विनाश करती हैं। उदय होता हुआ तथा अस्त होता हुआ सूर्य लालरश्मियों वाला होता है इस सम्बन्ध में कवि की उक्ति है। यथा “उवेति सविता ताम्रः तात्र एवास्तमेति च"। ताम्रः= ताम्बा, जो कि लाल होता है। सहस्वान्=सहः सहन, तथा पराभव करने वाला]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kama: Love and Determination

    Meaning

    This infinite cosmic energy, constant as well as dynamic, holds and sustains all things existent including thunder and clouds (making, breaking, evolving). So may Aditya, self-refulgent lord of cosmic energy, manifesting in action, commanding omnipotence, with his power and lustre, throw down our negative adversaries and enemies (and thus sustain us).

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    Translation

    This falling (yuta), as well as not falling (acyuta) mighty lightning sustains all the thunder-clouds. May the rising Sun, the overpowerer; with his wealth and brilliance push my rivals downward.

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    Translation

    This powerful lightning nourishes things perishable and imperishable and all the thunders. Let the splendid powerful sun raising up drive my enemies down ward with its ever-coming mighty splendor.

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    Translation

    This Potent, Refulgent God nourishes all perishable and imperishable objects and the thundering clouds. May the Majestic, Lustrous God, with strength and splendor, in His victorious might, drive downward my moral foes.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १५−(च्युता) च्युङ् गतौ-क्त। शेर्लोपः। च्युतानि अधोगतानि। निर्बलानि वस्तूनि (च) (इयम्) प्रत्यक्षा (बृहती) महती (अच्युता) अनधोगतानि। प्रबलानि द्रव्याणि (च) (विद्युत्) विविधं द्योतमाना शक्तिः। परमेश्वरः (बिभर्त्ति) धरति (स्तनयित्नून्) अ० १।१३।—१। गर्जनशीलान् (च) (सर्वान्) (उद्यन्) उदयं गच्छन् (आदित्यः) अ० १।९।१। आदीप्यमानः परमेश्वरः (द्रविणेन) बलेन-निघ० २।९। (तेजसा) प्रतापेन (नीचैः) (सपत्नान्) (नुदताम्) प्रेरयतु (मे) मम (सहस्वान्) बलवान् ॥

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