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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 24
    ऋषिः - अथर्वा देवता - कामः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - काम सूक्त
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    न वै वात॑श्च॒न काम॑माप्नोति॒ नाग्निः सूर्यो॒ नोत च॒न्द्रमाः॑। तत॒स्त्वम॑सि॒ ज्याया॑न्वि॒श्वहा॑ म॒हांस्तस्मै॑ ते काम॒ नम॒ इत्कृ॑णोमि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । वै । वात॑: । च॒न । काम॑म् । आ॒प्नो॒ति॒ । न । अ॒ग्नि: । सूर्य॑: । न । उ॒त । च॒न्द्रमा॑: । तत॑: । त्वम् । अ॒सि॒ । ज्याया॑न् । वि॒श्वहा॑ । म॒हान् । तस्मै॑ । ते॒ । का॒म॒ । नम॑: । इत् । कृ॒णो॒मि॒ ॥२.२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न वै वातश्चन काममाप्नोति नाग्निः सूर्यो नोत चन्द्रमाः। ततस्त्वमसि ज्यायान्विश्वहा महांस्तस्मै ते काम नम इत्कृणोमि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । वै । वात: । चन । कामम् । आप्नोति । न । अग्नि: । सूर्य: । न । उत । चन्द्रमा: । तत: । त्वम् । असि । ज्यायान् । विश्वहा । महान् । तस्मै । ते । काम । नम: । इत् । कृणोमि ॥२.२४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 24
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (न वै चन) न तो कोई (वातः) पवन (कामम्) कामनायोग्य [परमेश्वर] को (आप्नोति) पाता है, (न)(अग्निः) अग्नि और (सूर्य्यः) सूर्य (उत) और (न) (चन्द्रमाः) चन्द्रमा। (ततः) उस से (त्वम्) तू (ज्यायान्) अधिक बड़ा (विश्वहा) सब प्रकार (महान्) महान् [पूजनीय] (असि) है, (तस्मै ते) उस तुझको (इत्) ही, (काम) हे कामनायोग्य [परमेश्वर !] (नमः) नमस्कार (कृणोमि) करता हूँ ॥२४॥

    भावार्थ

    उस परमात्मा को वायु, अग्नि, सूर्य आदि नहीं पहुँच सकते हैं, वह सबसे बड़ा है ॥२४॥

    टिप्पणी

    २४−(न) निषेधे (वै) एव (वातः) पवनः (चन) कश्चिदपि (कामम्) कमनीयं परमेश्वरम् (आप्नोति) प्राप्नोति (न) (अग्निः) (सूर्यः) (न) (उत) अपि (चन्द्रमाः) चन्द्रः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( न वै चन ) = न तो कोई  ( वातः ) = वायु  ( कामम् ) = कामनायोग्य परमेश्वर को  ( आप्नोति ) = प्राप्त होता है  ( न अग्निः ) = न ही अग्नि  ( सूर्य: ) = और सूर्य  ( उत ) = और  ( न चन्द्रमा: ) = न ही चन्द्रमा प्राप्त हो सकता है ।  ( ततः ) = उन सब से आप बड़े और पूजनीय हो । उस आपको ही मैं बार-बार प्रणाम करता हूं।

    भावार्थ

    भावार्थ = उस महान् सर्वव्यापक परमात्मा को वायु, अग्नि, सूर्य, चन्द्रमा आदि नहीं पहुँच सकते। इन सब को अपने शासन में चलानेवाला वह प्रभु ही बड़ा है । उस आपको ही हम बार-बार प्रणाम करते हैं ।

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    विषय

    ज्यायान् प्रभु

    पदार्थ

    १. (यावती:) = जितने भी (भृङ्गा:) = भौरे, (जत्व:) = चमगादड़, (कुरूरव:) = चौलें हैं, (यावती:) = जितने भी (वघाः) = टिड्डी आदि जन्तु हैं, जितने भी (वृक्षसमे:) = वृक्षों पर सरकनेवाले कीट (बभूवुः) = हैं उन सबकी सम्मिलित शक्ति से भी आप महान् हैं। हे (काम) = कमनीय (मन्यो) = ज्ञानस्वरूप प्रभो! आप (निमिषत:) = आँखों को बन्द किये हुए-निमेषोन्मेष के व्यापारवाले जीवों से (ज्यायान्) = बड़े हो, (तिष्ठत:) = इन खड़े हुए वानस्पतिक जगत् से आप बड़े हो, (समुद्रात्) = इन समुद्रों से भी अथवा अन्तरिक्ष से भी आप (ज्यायान्) = बड़े हो। ३. (न वै) = निश्चय से न ही (वात: चन) = यह वायु भी (कामम् आप्नोति) = उस कमनीय प्रभु को व्याप्त कर पाता है, (न अग्निः) = न अग्नि उस प्रभु को महिमा को व्यापता है, (सूर्य:) = सूर्य भी नहीं व्यापता (उत) = और (न चन्द्रमा:) = न चन्द्रमा ही उस प्रभु की महिमा को व्याप सकता है। (तत:) = उन वायु, अग्नि, सूर्य व चन्द्रमा से हे (काम) = कमनीय प्रभो ! (त्वम्) = आप (ज्यायान्) = बड़े हो। (विश्वहा महान्) = सदा महनीय [पूजनीय] हो। (तस्मै ते) = उन आपके लिए (इत्) = निश्चय से (नमः कृणोमि) = नमस्कार करता हूँ।

    भावार्थ

    प्रभु की महिमा को सारे 'भृग व कृमि-कीट-पतङ्ग' नहीं व्याप सकते। वे प्रभु चराचर जगत् व सम्पूर्ण अन्तरिक्ष से महान् हैं। वायु, अग्नि, वचन्द्र में ही प्रभु की महिमा समास नहीं हो जाती। प्रभु इन सबसे महान् हैं।

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    भाषार्थ

    (वै) निश्चय है कि (वातः चन) वायु भी (कामम्) कमनीय परमेश्वर [की व्याप्ति] को (न आप्नोति) नहीं प्राप्त होती, (न अग्निः, सूर्यः) न अग्नि और सूर्य (उत न चन्द्रमाः) और न चन्द्रमा। (ततः) उन सब से (त्वम् असि ज्यायान् विश्वहा) तू सदा बड़ा है, (महान्) और महिमा में महान है। (तस्मै ते) उस तेरे लिये (काम) हे कमनीय परमेश्वर ! (नमः इत्) नमस्कार ही (कृणोमि) मैं करता हूँ।

    टिप्पणी

    [विश्वहा = अथवा सब सपत्नों का हनन करने वाला मन्त्र १९-२४)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Kama: Love and Determination

    Meaning

    Neither wind nor fire, nor sun nor moon, reaches, much less comprehends, Kama, cosmic Spirit of love, passion and creativity. O Kama, therefore you are greater than all others all time all ways. Therefore, O Great One, I offer you homage and worship with salutations in obeisance.

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    Translation

    Neither wind can equal Kama, nor fire, nor sun, nor even moon; you are superior to them, great in all respects; as such to you, O Kama, I bow in reverence.

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    Translation

    Neither air is the peer of this Kama nor the fire; neither the sun is equal of this Kama nor the moon; this is stronger than that of these and this has the power of overpowering all and is great. Thus I accept the strength of Kama.

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    Translation

    Not even Air, nor Fire, nor Moon, nor Sun is the peer of God. Stronger than these art Thou, and great for ever, O God, to Thee, to Thee I offer worship!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २४−(न) निषेधे (वै) एव (वातः) पवनः (चन) कश्चिदपि (कामम्) कमनीयं परमेश्वरम् (आप्नोति) प्राप्नोति (न) (अग्निः) (सूर्यः) (न) (उत) अपि (चन्द्रमाः) चन्द्रः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    ন বৈ বাতশ্চন্কামমাপ্নোতি নাগ্নিঃ সূর্য়ো নোত চন্দ্রমাঃ।

    ততস্ত্বমসি জ্যায়ান্বিশ্বহা মহাঁস্তস্মৈ তে কাম নম ইত্কৃণোমি।।৪৭।।

    (অথর্ব ৯।২।২৪)

    পদার্থঃ (ন বৈ চন) না তো কোনো (বাতঃ) বায়ু (কামম্) কামনাযোগ্য পরমেশ্বরকে (আপ্নোতি) ব্যাপ্ত করতে পারে, (ন অগ্নি) না পারে অগ্নি, (সূর্য়ঃ) সূর্য (উত) এবং (ন চন্দ্রমা) না তো চন্দ্র। (ততঃ) সে সবকিছুর চেয়েও (ত্বম্) তুমি (জ্যায়ান্) অধিক বিশাল (বিশ্বহা) সবচেয়ে (মহান্অসি) বড় পূজনীয়। (তস্মৈ তে ইৎ) সেই তুমিই (কামঃ) কামনা করার যোগ্য; (নমঃ কৃণোমি) তোমাকে নমস্কার করছি।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ সেই মহান সর্বব্যাপক পরমাত্মাকে বায়ু, অগ্নি, সূর্য, চন্দ্র আদি কোন কিছুই ব্যাপ্ত করতে পারে না। বরং এদের সকলকে নিজ শাসন দ্বারা পরিচালনাকারী পরমেশ্বরই বিশাল। সেই পরমেশ্বরকে বারবার প্রণাম করি।।৪৭।।

     

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