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  • यजुर्वेद - अध्याय 7/ मन्त्र 40
    ऋषिः - वत्स ऋषिः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - आर्षी गायत्री,विराट आर्षी त्रिष्टुप्, स्वरः - षड्जः
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    म॒हाँ२ऽइन्द्रो॒ यऽओज॑सा प॒र्जन्यो॑ वृष्टि॒माँ२ऽइ॑व। स्तोमै॑र्व॒त्सस्य॑ वावृधे। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि महे॒न्द्राय॑ त्वै॒ष ते॒ योनि॑र्महे॒न्द्राय॑ त्वा॥४०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒हान्। इन्द्रः॑। यः। ओज॑सा। प॒र्जन्यः॑। वृ॒ष्टि॒माँ२इ॑व। वृ॒ष्टि॒मानि॒वेति॑ वृष्टि॒मान्ऽइ॑व। स्तोमैः॑। व॒त्सस्य॑। वा॒वृ॒धे॒। व॒वृ॒ध इति॑ ववृधे। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मगृ॑हीतः। अ॒सि॒। म॒हे॒न्द्रायेति॑ महाऽइ॒न्द्रा॑य। त्वा॒। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। म॒हे॒न्द्रायेति॑ महाऽइ॒न्द्राय॑। त्वा॒ ॥४०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    महाँऽइन्द्रो य ओजसा पर्जन्यो वृष्टिमाँऽइव स्तोमैर्वत्सस्य वावृधे । उपयामगृहीतो सि महेन्द्राय त्वैष ते योनिर्महेन्द्राय त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    महान्। इन्द्रः। यः। ओजसा। पर्जन्यः। वृष्टिमाँ२इव। वृष्टिमानिवेति वृष्टिमान्ऽइव। स्तोमैः। वत्सस्य। वावृधे। ववृध इति ववृधे। उपयामगृहीत इत्युपयामगृहीतः। असि। महेन्द्रायेति महाऽइन्द्राय। त्वा। एषः। ते। योनिः। महेन्द्रायेति महाऽइन्द्राय। त्वा॥४०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 7; मन्त्र » 40
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    भाषार्थ -
    हे अनादिसिद्ध, महायोगी, सर्वव्यापक ईश्वर ! क्योंकि आप योगी जनों से (उपयामगृहीतः) यम-नियम आदि योग के अङ्गों द्वारा साक्षात् प्राप्त किये गये (असि) हो, अतः (त्वा) आपका (महेन्द्राय) योग से उत्पन्न महान् ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये (उपश्रयामहे) आश्रय ग्रहण करते हैं। क्योंकि--(ते) आपका (एषः) यह योग (योनिः) ऐश्वर्य प्राप्ति का निमित्त है, अतः (त्वा) आपका(महेन्द्राय) मोक्षदायक महान् ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये हम लोग ध्यान करते हैं। और-- जो (महान्) महान् गुण, कर्म, स्वभाव वाला (वृष्टिमान्) बहुत वर्षा करने वाले (पर्जन्यः) मेघ के समान, (वत्सस्य) स्तुति करने वाले की (स्तौमैः) स्तुतियों से और (ओजसा) अनन्त बल से (इन्द्रः) अखिल ऐश्वर्य वाला इन्द्र सुख की वर्षा करने वाला है, उसे जानकर योगी (वावृधे) अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त करता है ।। ७। ४० ।।

    भावार्थ - जैसे मेघ वर्षा के समय में अपने जल से सब पदार्थों को तृप्त करके बढ़ाता है वैसे ही ईश्वर योगाराधन में तत्पर योगी को समुन्नत करता है ।। ७ । ४० ।।

    भाष्यसार - ईश्वर के गुणों का उपदेश--हे अनादि सिद्ध, महायोगीन्, सर्वव्यापक ईश्वर ! योगी लोग यम-नियम आदि योग के अङ्गों से आपका साक्षात्कार करते हैं, इसलिये हम भी योगज महान् ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये आपकी उपासना करते हैं। यह योग ही आपकी प्राप्ति का निमित्त है इसलिये मोक्षदायक इस योगज महान् ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये हम आपका ध्यान करते हैं। आपके गुण, कर्म, स्वभाव महान् हैं। जैसे वर्षा के समय में मेघ अपने जल से सब पदार्थों को तृप्त करके उन्हें बढ़ाता है, वैसे आप हम स्तोता जनों की नानाविधि स्तुतियों से प्रसन्न होकर सुख की वर्षा करते हो, और योगीजनों को अत्यन्त समुन्नत बनाते हो क्योंकि आप अनन्त बलवान् होने से अखिल ऐश्वर्य के स्वामी हो, इन्द्र हो ॥ ७ । ४० ॥

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