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अथर्ववेद > काण्ड 1 > सूक्त 22

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  • अथर्ववेद - काण्ड 1/ सूक्त 22/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - सूर्यः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - हृद्रोगकामलाशन सूक्त

    अनु॒ सूर्य॒मुद॑यतां हृद्द्यो॒तो ह॑रि॒मा च॑ ते। गो रोहि॑तस्य॒ वर्णे॑न॒ तेन॑ त्वा॒ परि॑ दध्मसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अनु॑ । सूर्य॑म् । उत् । अ॒य॒ता॒म् । हृ॒त्ऽद्यो॒त: । ह॒रि॒मा । च॒ । ते॒ । गो: । रोहि॑तस्य । वर्णे॑न । तेन॑ । त्वा॒ । परि॑ । द॒ध्म॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनु सूर्यमुदयतां हृद्द्योतो हरिमा च ते। गो रोहितस्य वर्णेन तेन त्वा परि दध्मसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनु । सूर्यम् । उत् । अयताम् । हृत्ऽद्योत: । हरिमा । च । ते । गो: । रोहितस्य । वर्णेन । तेन । त्वा । परि । दध्मसि ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 22; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    १. रोगों की चिकित्सा करके वृद्धि करनेवाला 'ब्रह्मा' प्रस्तुत सूक्त का ऋषि है [वृहि वृद्धौ]। इस सूक्त का साक्षात् करके यह सूर्य-किरणों के महत्त्व को व्यक्त करते हुए कहता है (अनुसूर्यम्) = सूर्योदय के साथ (ते) = तेरी (हृद्योतः) = हृदय की जलन (च) = तथा (हरिमा) = रक्त की कमी से हो जानेवाला पीलापन (उद् आयताम्) = बाहर चला जाए। सूर्य की किरणों को छाती पर लेने से तेरा हृदय-रोग और पीलिया दोनों ही समाप्त होंगे। २. इसी उद्देश्य से (रोहितस्य) = लाल वर्ण की (गो:) = सूर्य-किरणों के (तेन वर्णेन) = उस लोहित वर्ण से (त्वा) = तुझे (परिदध्मसि)= -चारों ओर से धारित करते हैं। 'तेरे चारों ओर सूर्य की लाल किरणें हों' ऐसी व्यवस्था करते हैं। इनका शरीर पर ऐसा प्रभाव होगा कि तेरा हृदयरोग भी दूर होगा और रक्त की कमी भी दूर होकर हरिमा का नाश हो जाएगा। ।

    भावार्थ -

    प्रात: सूर्य की अरुण वर्ण की किरणों को शरीर पर लेने से हृद्रोग व हरिमा दूर हो जाते हैं।

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