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अथर्ववेद - काण्ड 1/ सूक्त 22/ मन्त्र 3
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - हरिमा
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - हृद्रोगकामलाशन सूक्त
या रोहि॑णीर्देव॒त्या॑३ गावो॒ या उ॒त रोहि॑णीः। रू॒पंरू॑पं॒ वयो॑वय॒स्ताभि॑ष्ट्वा॒ परि॑ दध्मसि ॥
स्वर सहित पद पाठया: । रोहि॑णी: । दे॒व॒त्या: । गाव॑: । या: । उ॒त । रोहि॑णी: ।रू॒पम्ऽरू॑पम् । वय॑:ऽवय: । ताभि॑: । त्वा॒ । परि॑ । द॒ध्म॒सि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
या रोहिणीर्देवत्या३ गावो या उत रोहिणीः। रूपंरूपं वयोवयस्ताभिष्ट्वा परि दध्मसि ॥
स्वर रहित पद पाठया: । रोहिणी: । देवत्या: । गाव: । या: । उत । रोहिणी: ।रूपम्ऽरूपम् । वय:ऽवय: । ताभि: । त्वा । परि । दध्मसि ॥
अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 22; मन्त्र » 3
विषय - रोहिणी गौएँ
पदार्थ -
१. (यः) = जो (रोहिणी:) =-रोहित वर्ण की (देवत्याः) = दिव्य दुग्ध देनेवाली (गाव:) = गौएँ हैं, (उत) = और (या:) = जो (रोहिणी:) = रोहित वर्ण की सूर्य-किरणें हैं, (ताभि:) = उनसे (त्वा) = तुझे (रूपम्-रूपम्) = रूप रूप के अनुसार (वयोवयः) = और आयुष्य के अनुसार (परिदध्मसि) = धारण करते हैं। २. यहाँ मन्त्र में प्रात:कालीन सूर्य की अरुण किरणों के साथ रोहित वर्ण की गौओं का उल्लेख भी स्पष्ट है। जहाँ रोहित वर्ण की किरणे अत्यन्त उपयोगी है, वहाँ हृद्रोग व हरिमा को दूर करने में लाल रंग की गौओं के दूध का उपयोग भी अत्यधिक महत्त्व रखता है। यही गौ ('कपिला') कहलाती है और ऋषि-आश्रमों के साथ साहित्य में सर्वत्र इसका सम्बन्ध दीखता है। इसके दूध में भी वे ही गण आ जाते हैं जो सर्य की अरुण किरणों में होते हैं। ३. ("रुपंरूपम्') ये शब्द 'त्वचा का रंग गोरा है या कालिमा को लिए हुए' इस बात का संकेत कर रहे हैं और स्पष्ट है कि त्वचा के रंग-भेद से किरणों का कम या अधिक देर तक सेवन अभीष्ट होता है। गौर वर्ण अधिक देर तक किरणों को सहन नहीं कर सकता। इसीप्रकार ('वयोवयः') शब्द आयुष्य-भेद से अधिक व कम देर तक सूर्य-किरणों के सेवन का संकेत करते हैं। छोटा बच्चा कम देर तक सहन करेगा तो एक युवक अधिक देर तक।
भावार्थ -
सूर्य की रोहित किरणों व रोहिणी गौओं के दूध का आयुष्य व शक्ति के अनुसार सेवन द्वारा हम नीरोग हों।
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