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अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 14

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  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 14/ मन्त्र 5
    सूक्त - चातनः देवता - शालाग्निः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दस्युनाशन सूक्त

    यदि॒ स्थ क्षे॑त्रि॒याणां॒ यदि॑ वा॒ पुरु॑षेषिताः। यदि॒ स्थ दस्यु॑भ्यो जा॒ता नश्य॑ते॒तः स॒दान्वाः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । स्थ । क्षे॒त्रि॒याणा॑म् । यदि॑ । वा॒ । पुरु॑षऽइषिता: । यदि॑ । स्थ । दस्यु॑ऽभ्य: । जा॒ता: । नश्य॑त । इ॒त: । स॒दान्वा॑: ॥१४.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदि स्थ क्षेत्रियाणां यदि वा पुरुषेषिताः। यदि स्थ दस्युभ्यो जाता नश्यतेतः सदान्वाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । स्थ । क्षेत्रियाणाम् । यदि । वा । पुरुषऽइषिता: । यदि । स्थ । दस्युऽभ्य: । जाता: । नश्यत । इत: । सदान्वा: ॥१४.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 14; मन्त्र » 5

    पदार्थ -

    १. हे (सदान्वाः) = [सदा नोनूयमानाः] सदा अपशब्द बोलनेवाली स्त्रियो! (इतः) = यहाँ से हमारे घर से (नश्यत:) = तुम अदृष्ट हो जाओ। (यदि) = चाहे तुम (क्षेत्रियाणाम् स्थ) = क्षेत्रिय रोगों की निदानभूत हो, (यदि वा) = अथवा पुरुष (इषिता:) = किसी अन्य पुरुष से व्यर्थ की चुगलियों से उत्तेजित [excited, animated] कर दी गई हो। अथवा (यदि) = यदि तुम (दस्युभ्यः जाता:) = नाशक वृत्तियों से ऐसी बन गई हो। २. स्त्रियों में आक्रोश वृत्ति पैदा होने के तीन कारण हैं-[क] कोई क्षेत्रिय रोग, [ख] किसी पुरुष से भड़काया जाना, [ग] कोई बड़ी हानि हो जाना [दस्यु]। किसी भी कारण से यह दोष उत्पन्न हो जाए तो उस स्त्री का दूर होना ही ठीक है।

    भावार्थ -

    आक्रोशकारिणी स्त्री का घर से दूर होना ही ठीक है।

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