अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 14/ मन्त्र 1
सूक्त - चातनः
देवता - शालाग्निः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - दस्युनाशन सूक्त
निः॑सा॒लां धृ॒ष्णुं धि॒षण॑मेकवा॒द्यां जि॑घ॒त्स्व॑म्। सर्वा॒श्चण्ड॑स्य न॒प्त्यो॑ ना॒शया॑मः स॒दान्वाः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठनि॒:ऽसा॒लाम् । धृ॒ष्णुम्। धि॒षण॑म् । ए॒क॒ऽवा॒द्याम् । जि॒घ॒त्ऽस्व᳡म् । सर्वा॑: । चण्ड॑स्य । न॒प्त्य᳡: । ना॒शया॑म: । स॒दान्वा॑: ॥१४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
निःसालां धृष्णुं धिषणमेकवाद्यां जिघत्स्वम्। सर्वाश्चण्डस्य नप्त्यो नाशयामः सदान्वाः ॥
स्वर रहित पद पाठनि:ऽसालाम् । धृष्णुम्। धिषणम् । एकऽवाद्याम् । जिघत्ऽस्वम् । सर्वा: । चण्डस्य । नप्त्य: । नाशयाम: । सदान्वा: ॥१४.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
विषय - पत्नी पर घर का निर्भर
पदार्थ -
१. घर का बनना बहुत कुछ पत्नी पर निर्भर करता है। 'गृहिणी गृहमुच्यते' वस्तुत: गृहिणी ही घर है, अत: गृहिणी में जो-जो दोष सम्भव हैं उन सबका संकेत करते हुए कहते हैं कि निम्न दोषों से युक्त पत्नी तो पत्नी नहीं है, वह तो पिशाची है, उसे हम घर से (नाशयामः) = [णश अदर्शने] दूर करते हैं। [क] (नि:सालाम्) = [नि:सालयति निर्गमयति अपसारयति-सा०] जो लड़-झगड़कर बन्धुओं को घर से दूर करती है। पति के भाई आदि के साथ विरोध करके उनकी फूट का कारण बनती है अथवा 'सालात् निर्गता' सालवृक्ष से भी उन्नत शरीरवाली, अर्थात् बहुत बड़े आकारवाली है। [ख] (धृष्णम्) = धर्षणशील है, भय उत्पन्न करनेवाली है, [ग]
३ (धिषणम्) = [धृष्णोति धृषेर्धिष च संज्ञायाम् ] बड़ों का निरादर करनेवाली है। 'बड़ों का निरादर करना' घर के अमङ्गल का हेतु होता है, [घ] (एकवाद्याम्) = [एकप्रकार परषरूपं वाद्यं वचनं यस्याः] कठोर बोलनेवाली व एक ही बात की रट लगानेवाली-जिद्दी स्वभाव की है,[ङ] (जियत्स्वम्) = सर्वदा भक्षणशीला है, [च] और जो (सर्वा:) = सब (चण्डस्य नप्त्य:) = क्रोध की सन्तान है, अर्थात् क्रोध से भरी हुई है,[छ] (सदान्वा:) = [सदा नोनूयामानाः, आक्रोशकारिणी:] सदा बोलती ही रहती है। २. वस्तुत: पत्नी का आदर्श यही है कि [क] वह घर में सबके साथ मधुर व्यवहार करनेवाली हो तथा बहुत लम्बे कद की न हो [ख]अपने व्यवहार और शब्दों से भय पैदा न करे, प्रेम का वातावरण रक्खे, [ग] बड़ों का निरादर न करे [घ] कठोर न बोले, न जिद्दी हो, [ङ] सबको खिलाकर खाये, उसमें चटोरापन न हो, [च] क्रोधी स्वभाव की न होकर प्रसन्न स्वभाववाली हो, [छ] बहुत न बोलती हो, सदा नपे-तुले शब्दों का ही प्रयोग करती हो, ऐसी ही पत्नी घर का सुन्दर निर्माण कर पाती है। इसके विपरीत तो घर के विनाश का ही कारण बनती है। वह गृहिणी नहीं, पिशाचनी होती है । वह पति के भी अल्पायुष्य का कारण बनती है।
भावार्थ -
पत्नी उत्तम है तो घर बनता है। पत्नी के दोष से घर का विनाश होता है।
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