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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 39

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 39/ मन्त्र 5
    सूक्त - गोषूक्तिः, अश्वसूक्तिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-३९

    अ॒पामू॒र्मिर्मद॑न्निव॒ स्तोम॑ इन्द्राजिरायते। वि ते॒ मदा॑ अराजिषुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पाम् । ऊ॒र्मि: । मद॑न्ऽइव । स्तोम॑: । इ॒न्द्र॒ । अ॒जि॒र॒य॒ते॒ ॥ वि । ते॒ । मदा॑: । अ॒रा॒जि॒षु॒: ॥३९.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपामूर्मिर्मदन्निव स्तोम इन्द्राजिरायते। वि ते मदा अराजिषुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपाम् । ऊर्मि: । मदन्ऽइव । स्तोम: । इन्द्र । अजिरयते ॥ वि । ते । मदा: । अराजिषु: ॥३९.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 39; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    १.हे (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन् प्रभो! (अपाम् ऊर्मि: इव) = जलों की तरंग की भाँति (मदन) = उल्लसित होता हुआ (स्तोमः) = यह स्तवन (अजिरायते) = अत्यन्त शीघ्र गतिवाला होता है। यह स्तोम हमारे मुख से उच्चरित होकर शीघ्रता से आपकी ओर गतिवाला होता है। २. ऐसा होने पर हे प्रभो! (ते मदा:) = आपसे प्राप्त कराये गये उल्लासजनक सोम (वि अराजिषुः) = विशिष्ट रूप से दीप्त होते हैं। प्रभु-स्तवन से वासनाओं का आक्रमण नहीं होता और सोम-रक्षण होकर आनन्द का अनुभव होता है।

    भावार्थ - हम प्रभु-स्तवन में प्रवृत्त होते हैं, परिमाणत: हमारा जीवन शक्ति-सम्पन्न व उल्लासमय बनता है। अगले सूक्त का ऋषि 'मधुच्छन्दाः ' ही है-उत्तम मधुर इच्छाओंवाला -

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