Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 91

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 91/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - चन्द्रमाः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सुत्रामाइन्द्र सूक्त

    इन्द्रः॑ सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ अवो॑भिः सुमृडी॒को भ॑वतु वि॒श्ववे॑दाः। बाध॑तां॒ द्वेषो॒ अभ॑यं नः कृणोतु सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑: । सु॒ऽत्रामा॑ । स्वऽवा॑न् । अव॑:ऽभि: । सु॒ऽमृ॒डी॒क: । भ॒व॒तु॒ । वि॒श्वऽवे॑दा: । बाध॑ताम् । द्वेष॑: । अभ॑यम् । न॒: । कृ॒णो॒तु॒ । सु॒ऽवीर्य॑स्य । पत॑य: । स्या॒म॒ ॥९६.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रः सुत्रामा स्ववाँ अवोभिः सुमृडीको भवतु विश्ववेदाः। बाधतां द्वेषो अभयं नः कृणोतु सुवीर्यस्य पतयः स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र: । सुऽत्रामा । स्वऽवान् । अव:ऽभि: । सुऽमृडीक: । भवतु । विश्वऽवेदा: । बाधताम् । द्वेष: । अभयम् । न: । कृणोतु । सुऽवीर्यस्य । पतय: । स्याम ॥९६.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 91; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (सु त्रामा) प्रजा की उत्तम रीति से रक्षा करने हारा (इन्द्रः) राजा भी (अवोभिः) रक्षा करने के नाना उपायों से ही (सु-अवान्*) प्रजा की उत्तम रीति से रक्षा करने में समर्थ होता है। अथवा (अवोभिः) रक्षा के साधनों से (स्वऽवान्) राजा स्व = धन सम्पत्ति और राष्ट्र से सम्पन्न होजाता है अथवा रक्षा के उपायों से ही बहुत से जन उसके अपने हो जाते हैं। (विश्व-वेदाः) और वह समस्त प्रकारों के धनसन्चय करके राष्ट्र के लिए (सु-मृडीकः) उत्तम रीति से सुखकारी (भवतु) हो। राजा (द्वेषः) आपस में द्वेषकारी, अप्रीति करने या प्रेम का नाश करने वाले कलहकारी लोगों को (बाधताम्) पीड़ित या दण्डित करे। और (नः) हमें (अभयं) समस्त राष्ट्रों में भयरहित (कृणोतु) कर दे जिससे हम निर्भय विचरते और व्यापार करते हुए भी (सु-वीर्यस्य) उत्तम बल सामर्थ्य के (पतयः) पति, स्वामी, (स्याम) बने रहें। परमात्मपक्ष में स्पष्ट है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। चन्द्रमाः (राजा) देवता। त्रिष्टुप् छन्दः। एकर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top