Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 92

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 92/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - चन्द्रमाः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सुत्रामाइन्द्र सूक्त

    स सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ इन्द्रो॑ अ॒स्मदा॒राच्चि॒द्द्वेषः॑ सनु॒तर्यु॑योतु। तस्य॑ व॒यं सु॑म॒तौ य॒ज्ञिय॒स्यापि॑ भ॒द्रे सौ॑मन॒से स्या॑म ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । सु॒ऽत्रामा॑ । स्वऽवा॑न् । इन्द्र॑: । अ॒स्मत् । आ॒रात् । चि॒त् । द्वेष॑: । स॒नु॒त: । यु॒यो॒तु॒ । तस्य॑ । व॒यम् । सु॒ऽम॒तौ । य॒ज्ञिय॑स्य । अपि॑ । भ॒द्रे । सौ॒म॒न॒से । स्या॒म॒ ॥९७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स सुत्रामा स्ववाँ इन्द्रो अस्मदाराच्चिद्द्वेषः सनुतर्युयोतु। तस्य वयं सुमतौ यज्ञियस्यापि भद्रे सौमनसे स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । सुऽत्रामा । स्वऽवान् । इन्द्र: । अस्मत् । आरात् । चित् । द्वेष: । सनुत: । युयोतु । तस्य । वयम् । सुऽमतौ । यज्ञियस्य । अपि । भद्रे । सौमनसे । स्याम ॥९७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 92; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (सु-त्रामा) राष्ट्र का उत्तम रक्षक, (सु-अवान्, स्ववान्) उत्तम रक्षा साधनों से सम्पन्न, अर्थशक्ति से सम्पन्न, या बहुत से सहायकों से युक्त होकर (सः) वह (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान्, प्रतापी राजा (द्वेषः) हमारे शत्रुओं को (अस्मत्) हम से (आरात्) दूर से (चित्) ही (सनुतः) गुप्त अप्रत्यक्ष, साम, दान, भेद आदि सुगूढ़ उपायों द्वारा (युयोत) भेद डाले। (तस्य) ऐसे गुणवान् बुद्धिमान् (यज्ञियस्य) यज्ञ = पूजा और सत्कार के योग्य राजा के (सु-मतौ) उत्तम शासन या सम्मति में रहते हुए हम (भद्रे) कल्याण और सुखकारी (सौमनसे) शुभ-मनोभाव में (स्याम) रहें, अर्थात् उसके प्रति सदा अच्छा मनोभाव बनाये रक्खें। यदि राजा शत्रुओं से प्रजा की रक्षा न करके उनसे प्रजा का नाश कराता और निर्धन करता है, या प्रजा का व्यर्थ शत्रु से युद्ध-कलह करके नाश कराता है तो प्रजा तंग आकर राजा का सत्कार नहीं करती और उसके प्रति दुर्भाव से रहती और द्रोह करती है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। चन्द्रमाः (राजा) देवता। त्रिष्टुप् छन्दः। एकर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top