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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 172/ मन्त्र 2
आ॒रे सा व॑: सुदानवो॒ मरु॑त ऋञ्ज॒ती शरु॑:। आ॒रे अश्मा॒ यमस्य॑थ ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒रे । सा । वः॒ । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ । मरु॑तः । ऋ॒ञ्ज॒ती । शरुः॑ । आ॒रे । अश्मा॑ । यम् । अस्य॑थ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आरे सा व: सुदानवो मरुत ऋञ्जती शरु:। आरे अश्मा यमस्यथ ॥
स्वर रहित पद पाठआरे। सा। वः। सुऽदानवः। मरुतः। ऋञ्जती। शरुः। आरे। अश्मा। यम्। अस्यथ ॥ १.१७२.२
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 172; मन्त्र » 2
अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
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अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे सुदानवो मरुतो वो युष्माकं या ऋञ्जती शरुरस्ति साऽस्मत्त आरे अस्तु। यं शस्त्रविशेषमश्मा यूयमस्यथ सोऽस्मत्त आरे अस्तु ॥ २ ॥
पदार्थः
(आरे) दूरे (सा) (वः) युष्माकम् (सुदानवः) प्रशस्तदानकर्त्तारः (मरुतः) वायुवद्बलिष्ठाः (ऋञ्जती) ऋञ्जमाना पाचयित्री (शरुः) दुष्टानां हिंसिका ऋष्टिः (आरे) समीपे (अश्मा) मेघइव (यम्) शस्त्रविशेषम् (अस्यथ) प्रक्षिपथ ॥ २ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या मेघवत् सुखप्रदा दुष्टानां त्यक्तारः श्रेष्ठानां समीपे दुष्टेभ्यो दूरे वसन्ति ते सङ्गन्तव्या भवन्ति ॥ २ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (सुदानवः) प्रशंसित दान करनेवाले (मरुतः) वायुवत् बलवान् विद्वानो ! (वः) तुम्हारी जो (ऋञ्जती) पचाती-जलाती (शरुः) दुष्टों को विनाशती हुई द्विधारा तलवार है (सा) वह हमसे (आरे) दूर रहे और (यम्) जिस विशेष शस्त्र को (अश्मा) मेघ के समान तुम (अस्यथ) छोड़ते हो वह हमारे (आरे) समीप रहे ॥ २ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य मेघ के समान सुख देनेवाले, दुष्टों को छोड़नेवाले, श्रेष्ठों के समीप और दुष्टों से दूर वसते हैं, वे सङ्ग करने योग्य हैं ॥ २ ॥
विषय
क्या तो समीप और क्या दूर
पदार्थ
१. हे (मरुतः) = प्राणो ! आप (सुदानवः) = उत्तमता से वासनारूप शत्रुओं को काटनेवाले हो । (सा) = वह (वः) = आपकी (अञ्जती) = हमारे जीवनों को सद्गुणों से अलंकृत करती हुई (शरु:) = वासनाओं को नष्ट करनेवाली शक्ति [शृ हिंसायाम्] (आरे) = हमें समीपता से प्राप्त हो और वह २. (अश्मा) = [महाशनो, महापाप्मा] हमें खा जानेवाला पापरूप शत्रु (यम्) = जिसे अस्यथ - आप दूर फेंकते हो, [असु क्षेपणे], (आरे) = हमसे दूर हो, आराद्- (दूरसमीपयो:) - शब्द दूर व समीप का वाचक है। पूर्वार्द्ध में समीप का वाचक है और उत्तरार्द्ध में दूर का प्राणों की वासनानाशक शक्ति हमें समीपता से प्राप्त हो और वासना हमसे दूर हो ।
भावार्थ
भावार्थ - प्राण वासनाओं को नष्ट करके जीवन को सद्गुणों से सुशोभित करते हैं ।
विषय
देह में प्राणों की स्थिति।
भावार्थ
हे ( सुदानवः मरुतः ) उत्तम दानशील और शत्रुसेना के खण्ड खण्ड करने वाले विद्वान् और राष्ट्र देहके प्राण रूप वीर पुरुषो ! (वः) आप लोगों की ( ऋञ्जती शरुः ) जो बहुत वेग से जाने वाली शत्रुओं को संताप देने, जलाने वाली, हिंसा करने वाली, पंक्ति, बाण, धार या शस्त्र है ( सा ) वह (आरे ) हमसे दूर रहे । और ( अश्मा ) वज्र के समान कठोर अस्त्र या व्यापक, दूर तक फैलाने वाला विद्युत् ( यम् अस्यथ ) जिसको तुम फेंकते हो वह भी ( आरे ) दूर ही रहे । (२) हे विद्वानो ! (वः ऋञ्जती शरुः ) उत्तम कार्य साधन करने वाली अज्ञान नाशक विद्या है, वह हमारे तुम्हारे ( आरे ) समीप हो और (अश्मा ) वज्र, अभेद्य बल जिसको दूर तक फेंकते हों, जिसको दूर तक चला सकते हों वह भी (आरे) हमारे पास हो । उसका हम प्रयोग कर सकें । ( ३ ) प्राणों की रोगादि नाशक शक्ति शरीर को साधने वाली होने से ‘ऋञ्जती शरु’ है । ‘अश्मा’ भोक्ता आत्मा है जिसको वे धारण करते हैं । वह दोनों प्राप्त हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अगस्त्य ऋषिः ॥ मरुतो देवता ॥ छन्दः- १ विराड् गायत्री । २, ३ गायत्री ॥ तृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे मेघाप्रमाणे सुख देणारी, दुष्टांचा संग सोडणारी, श्रेष्ठांच्या संगतीत राहणारी व दुष्टांपासून लांब राहणारी असतात, ती संगती करण्यायोग्य असतात. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Maruts, courageous brothers of charity, givers of bliss and protection like winds and lightning, may that missile of yours, which you throw like thunderbolt upon the destroyers, and the deadly double edged sword you wield against the powers of darkness, be far away from us for our protection against evil.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Company with the noble persons is desirable.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O mighty ! like the winds you are liberal benefactors. May your bright destructive weapon not hurt us. May the missles that you throw upon yonr enemies like the cloud, be available to us also ( so that we may defeat our foes).
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons deserve association who are givers of happiness like the clouds and do not live in the company of the wicked. Rather, they should stay and work with good persons.
Foot Notes
(ऋन्जमाना ) पाचयित्नी = Burner. (शरु:) दुष्टानां हिंसका: = Destroyers of the wicked. (अश्मा ) मेघइव = Like the cloud.
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