ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 177/ मन्त्र 2
ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ये ते॒ वृष॑णो वृष॒भास॑ इन्द्र ब्रह्म॒युजो॒ वृष॑रथासो॒ अत्या॑:। ताँ आ ति॑ष्ठ॒ तेभि॒रा या॑ह्य॒र्वाङ्हवा॑महे त्वा सु॒त इ॑न्द्र॒ सोमे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठये । ते॒ । वृष॑णः । वृ॒ष॒भासः॑ । इ॒न्द्र॒ । ब्र॒ह्म॒ऽयुजः॑ । वृष॑ऽरथासः । अत्याः॑ । तान् । आ । ति॒ष्ठ॒ । तेभिः॑ । आ । या॒हि॒ । अ॒र्वाङ् । हवा॑महे । त्वा॒ । सु॒ते । इ॑न्द्र । सोमे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ये ते वृषणो वृषभास इन्द्र ब्रह्मयुजो वृषरथासो अत्या:। ताँ आ तिष्ठ तेभिरा याह्यर्वाङ्हवामहे त्वा सुत इन्द्र सोमे ॥
स्वर रहित पद पाठये। ते। वृषणः। वृषभासः। इन्द्र। ब्रह्मऽयुजः। वृषऽरथासः। अत्याः। तान्। आ। तिष्ठ। तेभिः। आ। याहि। अर्वाङ्। हवामहे। त्वा। सुते। इन्द्र। सोमे ॥ १.१७७.२
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 177; मन्त्र » 2
अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राजविषयमाह ।
अन्वयः
हे इन्द्र ते वृषणो ये वृषभासो ब्रह्मयुजो वृषरथासोऽत्याः सन्ति तानातिष्ठ। हे इन्द्र वयं सुते सोमे त्वा हवामहे त्वं तेभिरर्वाङायाहि ॥ २ ॥
पदार्थः
(ये) (ते) (वृषणः) प्रबला युवानः (वृषभासः) परिशक्तिबन्धकाः (इन्द्र) विद्युदिव सेनेश (ब्रह्मयुजः) ब्रह्माणं युञ्जन्ति यैस्ते (वृषरथासः) वृषाः शक्तिबन्धका रथा रमणसाधनानि येषान्ते (अत्याः) नितरां गमनशीला अश्वाः (तान्) (आ) समन्तात् (तिष्ठ) (तेभिः) तैः (आ) आभिमुख्ये (याहि) आगच्छ (अर्वाङ्) अभिमुखम् (हवामहे) स्वीकुर्महे (त्वा) त्वाम् (सुते) निष्पन्ने (इन्द्र) सूर्यइव वर्त्तमान (सोमे) ओषध्यादिगुणइवैश्वर्ये ॥ २ ॥
भावार्थः
ये राजानः सर्वसाधनसाध्यरथान् प्रबलानश्वान् वृषभांश्च कार्येषु संयोजयन्ति ते प्रशस्तयानादियुक्ता ऐश्वर्यं लभन्ते ॥ २ ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब अगले मन्त्र में राजविषय का उपदेश किया है ।
पदार्थ
हे (इन्द्र) सूर्य के समान वर्त्तमान राजन् ! (ते) आपके (ये) जो (वृषणः) प्रबल ज्वान (वृषभासः) वृषभ (ब्रह्मयुजः) उत्तम अन्न का योग करनेवाले (वृषरथासः) शक्तिबन्धक और रमण साधन रथ (अत्याः) और निरन्तर गमनशील घोड़े हैं (तान्) उनको (आ, तिष्ठ) यत्नवान् करो अर्थात् उन पर चढ़ो, उन्हें कार्यकारी करो। हे (इन्द्र) सूर्य के समान वर्त्तमान राजन् ! हम लोग (सुते) उत्पन्न हुए (सोमे) ओषधि आदिकों के गुण के समान ऐश्वर्य के निमित्त (त्वा) आपको (हवामहे) स्वीकार करते हैं आप (तेभिः) उनके साथ (अर्वाङ्) सम्मुख (आ, याहि) आओ ॥ २ ॥
भावार्थ
जो राजजन समस्त साधनों से साध्य रथों, प्रबल घोड़ों और बैलों को कार्य्यों में संयुक्त कराते हैं, वे प्रशस्त यान आदि पदार्थों से युक्त हुए ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥ २ ॥
विषय
शक्तिशाली इन्द्रियों का अधिष्ठातृत्व
पदार्थ
१. प्रभु जीव से कह रहे हैं कि हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष ! (ये) = जो (ते) = तेरे (वृषण:) = शक्तिशाली (वृषभासः) = श्रेष्ठ (ब्रह्मयुजः) = ब्रह्म से तेरा मेल करानेवाले (वृषरथासः) = शक्तिशाली शरीररूप रथवाले (अत्याः) = सतत गतिवाले इन्द्रियाश्व हैं (तान् आतिष्ठ) = उनपर तू स्थित हो, इन इन्द्रियाश्वों का तू अधिष्ठाता बन । इन्द्रियाँ शक्तिशाली व श्रेष्ठ हों। ज्ञान की ओर इनका झुकाव हो । शरीररूप रथ भी दृढ़ हो। ये इन्द्रियाश्व सतत गतिशील हैं, हममें क्रियाशीलता हो । इस प्रकार इन उत्तम इन्द्रियाश्वों के हम अधिष्ठाता हों- ये अश्व हमारे वश में हों । प्रभु कहते हैं कि (तेभिः) = उन इन्द्रियाश्वों से (अर्वाङ् आ याहि) = तू अन्तर्मुख यात्रावाला हो। ३. जीव प्रभु से कहता है कि हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशाली प्रभो ! हम (सोमे सुते) = अपने जीवन में सोम का सवन करने पर (त्वा हवामहे) = तुझे पुकारते हैं। यह सोम का [सवन] शरीर में शक्ति का रक्षण ही हमें इस योग्य बनाता है कि हम आपको अपने हृदय में आसीन होने के लिए आमन्त्रित करें। इस सोम के रक्षण से ही इन्द्रियाँ शक्तिशाली व श्रेष्ठ बनती हैं। इसी से शरीररूप रथ दृढ़ बनता है। यह सोमरक्षण ही वस्तुत: हमें प्रकृति-प्रवणता से दूर करके प्रभु-प्रवण बनाता है।
भावार्थ
भावार्थ- हम इन्द्रियाश्वों को शक्तिशाली बनाएँ। उन इन्द्रियाश्वों के अधिष्ठाता बनें। सदा क्रियाशील हों। इन सब बातों के लिए सोम का रक्षण करनेवाले हों । तब हम प्रभु को आमन्त्रित करने के लिए तैयार होते हैं ।
विषय
बलवान् नायकों का आह्वान, शासक के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! सेनापते ! हे विद्वन् ! ( ये ) जो (ते) तेरे ( वृषणः ) बलवान् (वृषभासः) प्रजाओं में श्रेष्ठ और प्रजा और शत्रुओं पर मेघों के समान सुखों और शस्त्रों वर्षा करने वाले, दानवीर और युद्धवीर, (ब्रह्मयुजः) महान् ऐश्वर्य और अन्न से युक्त और उच्च उत्तम पदों पर नियुक्त, (वृषरथासः) बैल गाड़ियों या बलवान् अश्वों से युक्त रथों पर सवार (अत्याः) वेग से गमन करने वाले हों । हे राजन् ! तू ( तान् आ तिष्ठ ) उन पर शासक होकर विराज । ( तेभिः ) उनके साथ ही ( अर्वाङ् ) सबके समक्ष (आयाहि) प्रकट हो । ( सुते सोमे ) अभिषेक द्वारा ऐश्वर्य प्राप्त होने पर ( त्वा ) तुझे ( हवामहे ) बुलाते हैं । मरुतों के पक्ष में—मरुद् गण वेगवान् होने से ‘अत्य’ हैं । वर्षण शील होने और प्रति बन्धकारी होने से ‘वृषभ’ हैं। वर्षणकारी मेघों में वेग से गमन करने से या मेघरूप रथ चाले होने से वे ‘वृषरथ’ हैं । (इन्द्र) विद्युत् सोमादि ओषधिवर्ग के उत्पन्न हो जाने पर आवे और जल वर्षा कर उनको बढ़ावे । (३) विद्युत् पक्ष में—( ब्रह्मयुजः ) वेद का अभ्यास और परमात्मा में योगाभ्यास करने वाले । ( वृषरथासः ) आनन्दवर्धक धर्ममेघ में रमण करने वाले । इन्द्र, आचार्य विद्वान् ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अगस्त्य ऋषिः॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः– १, २ निचृत् त्रिष्टुप् । ३ त्रिष्टुप् । ४ भुरिक् त्रिष्टुप् । ५ भुरिक् पङ्क्तिः ॥ स्वरः—१—४ धैवतः । ५ पञ्चमः ॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे राजे संपूर्ण साधनांनी साध्य, रथ, प्रबल घोडे व बैलांना कार्यात संयुक्त करवितात त्यांना प्रशस्त यान इत्यादी पदार्थांनी युक्त ऐश्वर्य प्राप्त होते. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, lord of light, energy and the honour of action and success, universal ruler and dispenser, come in response to our invocation. Ride what are your potent and excellent chariots responsive to the mantric word of command and control at the remotest distance, come with and come by the powers that move faster than even light and come here where we pray. The time is ripe, the soma is distilled and ready for celebration of the success and divine visit.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of a king are further dealt.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Indra-President of the Assembly or the Commander of the army! you are beneficent like energy. Deploy your horse power (cavalry or electricity), which is young and vigorous; on whose back, the knowers of the Vedas sit along with other learned persons. With bountiful chariots come down to us. O Indra! you are splendid like the sun. We invoke you when the wealth is desired like the SOMA juice of nourishing herbs which is poured out in Yajnas.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those rulers who use properly the transports of various kinds of strong horse powers, get wealth.
Foot Notes
(इन्द्र) विद्युदिव सेनेश! =The commander of the army who is beneficent and resplendent like the lightning. (इन्द्र) सूर्यइव वर्तमान = Behaving like the sun (सोमे) ओषध्यादिगुण इवैश्वर्ये = For the sake of prosperity like the poured out juice of the nourishing herbs.
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