ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 152/ मन्त्र 4
ऋषिः - शासो भारद्वाजः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
वि न॑ इन्द्र॒ मृधो॑ जहि नी॒चा य॑च्छ पृतन्य॒तः । यो अ॒स्माँ अ॑भि॒दास॒त्यध॑रं गमया॒ तम॑: ॥
स्वर सहित पद पाठवि । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । मृधः॑ । ज॒हि॒ । नी॒चा । य॒च्छ॒ । पृ॒त॒न्य॒तः । यः । अ॒स्मान् । अ॒भि॒ऽदास॑ति । अध॑रम् । ग॒म॒य॒ । तमः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वि न इन्द्र मृधो जहि नीचा यच्छ पृतन्यतः । यो अस्माँ अभिदासत्यधरं गमया तम: ॥
स्वर रहित पद पाठवि । नः । इन्द्र । मृधः । जहि । नीचा । यच्छ । पृतन्यतः । यः । अस्मान् । अभिऽदासति । अधरम् । गमय । तमः ॥ १०.१५२.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 152; मन्त्र » 4
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्र) हे राजन् (नः) हमारे (मृधः) संग्रामकारी शत्रु को (वि जहि) विनष्ट कर (पृतन्यतः) संग्राम करते हुए शत्रुओं को (नीचा यच्छ) नीचा मुख करके वश में ले (यः) जो (अस्मान्) हमें (अभिदासति) नष्ट करता है (अधरं तमः) नीचे अन्धकार में (गमय) प्राप्त करा-पहुँचा ॥४॥
भावार्थ
राजा प्रजा के शत्रुओं को विनष्ट करे, संग्राम करनेवाले को नीचा मुखकर वश करे और जो आक्रमण करे, उसे भी नीचे अन्धकार में पहुँचाये, उस पर तामस अस्त्र फेंके ॥४॥
विषय
शत्रुओं को अन्धकारमय लोक में प्राप्त कराना
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो ! (नः) = हमारे (मृधः) = कतल [murder] करनेवाले इन 'काम-क्रोध-लोभ' को (विजहि) = विनष्ट करिये । (पृतन्यतः) = सेनाओं के द्वारा हमारे पर आक्रमण करनेवालों को (नीचायच्छ) = नीचे नियमन में करिये [ trample upon ] । इन्हें पाँव तले कुचल दीजिये, ये अशुभवृत्तियाँ फौज की फौज के रूप में हमारे पर आक्रमण करती हैं, इन्हें आपने ही पराजित करना है, [२] (यः) = जो भी (अस्मान्) = हमें (अभिदासति) = दास बनाता है, उपक्षय करना चाहता है, आप उसे (अधरं तमः गमय) = निकृष्ट अन्धकार में प्राप्त कराइये । औरों को दास बनानेवाले लोग भी उन असुर्यलोकों को प्राप्त करें जो कि अन्धतमस से आवृत हैं। ये काम-क्रोध-लोभ आदि वृत्तियाँ भी घने अन्धकार में पहुँच जायें। हमारे तक ये न पहुँच पायें।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु हमें कतल करनेवालों, फौजों के रूप में आक्रमण करनेवालों तथा दास हमारा बनानेवालों को अन्धकारमय लोकों में ले जायें।
विषय
इन्द्र, वीर सेनापति से भी शत्रुनाश की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (इन्द्र) अभिमुख शत्रु पर वेग से आक्रमण करनेहारे ! तू (नः मृधः वि जहि) हमारे हिंसक शत्रुओं को विनाश कर। और (पृतन्यतः नीचा यच्छ) सेनाएं चाहने वालों को नीचे गिरा। (यः अस्मान् अभि दासति) जो हमें नाश करना चाहता है उसको (अधरं तमः गमय) नीचे के अन्धकार को प्राप्त करा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः शासो भारद्वाजः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः- १, २, ४ निचृदनुष्टुप्। ३ अनुष्टुप्। ५ विराडनुष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्र) हे राजन् ! (नः-मृधः-वि जहि) अस्माकं संग्रामकारिणः शत्रून् विनाशय (पृतन्यतः नीचा यच्छ) संग्रामं कुर्वतो नीचैर्मुखीकृत्य वशे नय (यः-अस्मान्-अभिदासति) योऽस्मान् नाशयति (अधरं-तमः-गमय) नीचैरन्धकारं प्रापय ॥४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, throw off those powers and tendencies which seek to destroy us. Subdue those who seek to fight and subdue us. Take those down to deep darkness who seek to subdue and enslave us.
मराठी (1)
भावार्थ
राजाने प्रजेच्या शत्रूंना नष्ट करावे. युद्ध करणाऱ्या शत्रूचा नाश करून जो आक्रमणकारी आहे त्यालाही अंधारात ढकलून द्यावे. त्याच्यावर तामस अस्त्र फेकावे. ॥४॥
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