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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 187 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 187/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वत्स आग्नेयः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    यो विश्वा॒भि वि॒पश्य॑ति॒ भुव॑ना॒ सं च॒ पश्य॑ति । स न॑: पर्ष॒दति॒ द्विष॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । विश्वा॑ । अ॒भि । वि॒ऽपश्य॑ति । भुव॑ना । सम् । च॒ । पश्य॑ति । सः । नः॒ । प॒र्ष॒त् । अति॑ । द्विषः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो विश्वाभि विपश्यति भुवना सं च पश्यति । स न: पर्षदति द्विष: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः । विश्वा । अभि । विऽपश्यति । भुवना । सम् । च । पश्यति । सः । नः । पर्षत् । अति । द्विषः ॥ १०.१८७.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 187; मन्त्र » 4
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 45; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यः) जो परमेश्वर (विश्वा) सब (भुवना) लोकलोकान्तरों प्राणियों को (अभिविपश्यति) सम्मुख बाह्य देखता है जानता है (च) और (सं पश्यति) अन्दर स्वरूप को देखता है (स नः०) पूर्ववत् ॥४॥

    भावार्थ

    परमेश्वर सब लोकलोकान्तरों प्राणियों को बाहिर भीतर से जानता है, दुष्टों को दूर करता है, स्तुति करने योग्य है ॥४॥

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    विषय

    'सर्वप्रकाशक व पालक' प्रभु

    पदार्थ

    [१] (यः) = जो प्रभु (विश्वा भुवना) = सब प्राणियों को (अभि विपश्यति) = आभिमुख्येन प्रकाशित कर रहे हैं, (च) = और (संपश्यति) = सम्यक् देख रहे हैं, अर्थात् सब का ध्यान कर रहे हैं, (सः) = वे प्रभु (नः) = हमें (द्विषः) = सब द्वेष भावनाओं से (अतिपर्षत्) = पार करें। [२] 'प्रभु ही सब को प्रकाश प्राप्त कराते हैं और सबका रक्षण करते हैं' इस भाव के उदित होने पर द्वेष का सम्भव ही नहीं रहता ।

    भावार्थ

    भावार्थ-' प्रभु ही हम सब के पालक हैं' यह भाव हमें द्वेष से ऊपर उठाकर परस्पर एकता का अनुभव कराये ।

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    विषय

    निरञ्जन, स्वयंप्रकाश प्रभु।

    भावार्थ

    (यः) जो (विश्वा भुवना) समस्त लोकों को (अभि वि पश्यति) सम्मुख देखता और (सं पश्यति च) अच्छी प्रकार देखता है, (सः नः द्विषः अति पर्षत्) वह हमें अप्रीति युक्त शत्रुओं, दुःखों, रोगों, कष्टों से पार करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्वत्स आग्नेयः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः- १ निचृद् गायत्री। २—५ गायत्री॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यः-विश्वा भुवना) यः परमेश्वरः सर्वाणि लोकलोकान्तराणि भूतानि च (अभिविपश्यति) सम्मुखं बाह्यं पश्यति-जानाति (च) तथा (सम्पश्यति) अन्तस्तः पश्यति जानाति (स नः०) पूर्ववत् ॥४॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Who watches all the regions of the universe in their formal diversity as well as in their essential unity and integrity may, we pray, cast off our hate, jealousy and enmity and make us clean and immaculate.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर सर्व लोकलोकांतर, प्राणी यांना आतून व बाहेरून जाणतो. दुष्टांना दूर करतो. तो स्तुती करण्यायोग्य आहे. ॥४॥

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