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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 43/ मन्त्र 16
    ऋषिः - अत्रिः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    उ॒रौ दे॑वा अनिबा॒धे स्या॑म ॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒रौ । दे॒वाः॒ । अ॒नि॒ऽबा॒धे । स्या॒म॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उरौ देवा अनिबाधे स्याम ॥१६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उरौ। देवाः। अनिऽबाधे। स्याम ॥१६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 43; मन्त्र » 16
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे देवा ! यूयं यथा वयमुरावनिबाधे स्याम तथा विदधत ॥१६॥

    पदार्थः

    (उरौ) बहौ (देवाः) विद्वांसः (अनिबाधे) व्यवहारे (स्याम) भवेम ॥१६॥

    भावार्थः

    विद्वद्भिः सर्वे मनुष्या यथा निर्विघ्नाः स्युस्तथा विधेयम् ॥१६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (देवाः) विद्वान् जनो ! आप लोग जैसे हम लोग (उरौ) बहु (अनिबाधे) व्यवहार में (स्याम) होवें वैसे करिये ॥१६॥

    भावार्थ

    विद्वानों को चाहिये कि सब मनुष्य जैसे विघ्नरहित होवें, वैसा करें ॥१६॥

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    विषय

    प्रजा पीड़ारहित राज्य में रहे।

    भावार्थ

    भा०-हे (देवाः ) विद्वान्, व्यवहारकुशल एवं दानी, विजयी, वीर पुरुषो ! हम लोग ( उरौ ) बड़े, विशाल ( अनिवाधे ) बाधा, पीड़ा,.. कष्टादि से सर्वथा रहित राष्ट्र में ( स्याम ) रहें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अत्रिर्ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:–१, ३, ६, ८, ९, १७ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ४, ५, १०, ११, १२, १५ त्रिष्टुप् । ७, १३ विराट् त्रिष्टुप् । १४ भुरिक्पंक्ति: । १६ याजुषी पंक्तिः ॥ सप्तदशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    विशाल अनिबाध जीवन

    पदार्थ

    ४२.१७ पर अर्थ द्रष्टव्य है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सर्व माणसे विघ्नरहित होतील असे विद्वानांनी वागावे. ॥ १६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Divinities, may we ever be in the light of your unbounded grace, free and uninterrupted.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties and nature of a learned person are stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O enlightened persons ! do arrange in such manner that we may be free from all obstacles in a vast dealing.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    It is the duty of the enlightened persons to do such things which may make all men free from obstacles.

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