ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 43/ मन्त्र 9
प्र तव्य॑सो॒ नम॑उक्तिं तु॒रस्या॒हं पू॒ष्ण उ॒त वा॒योर॑दिक्षि। या राध॑सा चोदि॒तारा॑ मती॒नां या वाज॑स्य द्रविणो॒दा उ॒त त्मन् ॥९॥
स्वर सहित पद पाठप्र । तव्य॑सः । नमः॑ऽउक्तिम् । तु॒रस्य॑ । अ॒हम् । पू॒ष्णः । उ॒त । वा॒योः । अ॒दि॒क्षि॒ । या । राध॑सा । चो॒दि॒तारा॑ । म॒ती॒नाम् । या । वाज॑स्य । द्र॒वि॒णः॒ऽदौ । उ॒त । त्मन् ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र तव्यसो नमउक्तिं तुरस्याहं पूष्ण उत वायोरदिक्षि। या राधसा चोदितारा मतीनां या वाजस्य द्रविणोदा उत त्मन् ॥९॥
स्वर रहित पद पाठप्र। तव्यसः। नमःऽउक्तिम्। तुरस्य। अहम्। पूष्णः। उत। वायोः। अदिक्षि। या। राधसा। चोदितारा। मतीनाम्। या। वाजस्य। द्रविणःऽदौ। उत। त्मन् ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 43; मन्त्र » 9
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे विद्वांसो ! यथाऽहं तुरस्य तव्यस उत पूष्णो वायोर्न्नमउक्तिमदिक्षि उत त्मन्या राधसा मतीनां प्र चोदितारा या वाजस्य द्रविणोदौ वर्त्तेते तावदिक्षि तथा यूयमप्युपदिशत ॥९॥
पदार्थः
(प्र) (तव्यसः) बलस्य (नमउक्तिम्) नमस्सत्कारस्यान्नाऽऽदेर्वा वचनम् (तुरस्य) शीघ्रकारिणः (अहम्) (पूष्णः) पुष्टिकरस्य (उत) अपि (वायोः) (अदिक्षि) उपदिशामि (या) यौ (राधसा) धनेन (चोदितारा) प्रेरकौ (मतीनाम्) मनुष्याणाम् (या) यौ (वाजस्य) विज्ञानस्याऽन्नस्य वा (द्रविणोदौ) यौ द्रविणसौ दत्तस्तौ (उत) अपि (त्मन्) आत्मनि ॥९॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा विद्वांसो विद्योपदेशदानाभ्यां मनुष्यान् सुशिक्षितान् कुर्वन्ति तथैव यूयमप्यनुतिष्ठत ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वान् जनो ! जैसे (अहम्) मैं (तुरस्य) शीघ्र कार्य्य करनेवाले (तव्यसः) बलयुक्त (उत) और (पूष्णः) पुष्टिकारक (वायोः) वायु के (नमउक्तिम्) सत्कार वा अन्न आदि के वचन का (अदिक्षि) उपदेश करता हूँ और (उत) भी (त्मन्) आत्मा में (या) जो (राधसा) धन से (मतीनाम्) मनुष्यों के (प्र, चोदितारा) अत्यन्त प्रेरणा करनेवाले और (या) जो (वाजस्य) विज्ञान वा अन्न के (द्रविणोदौ) बल से देनेवाले वर्त्तमान हैं, उनको उपदेश देता हूँ, वैसे आप लोग भी उपदेश दीजिये ॥९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे विद्वान् जन विद्या के उपदेश और दान से मनुष्यों को उत्तम प्रकार शिक्षित करते हैं, वैसे ही तुम लोग भी करो ॥९॥
विषय
ज्ञानवान् बलवानों का आदर
भावार्थ
भा० – ( अहम् ) मैं ( तव्यस्य ) बलवान् ( तुरस्य ) अति शीघ्रकारी, (पूष्णः ) पुष्टिकारक, सर्वपोषक और ( वायोः ) वायु के समान अति बलवान् प्राणप्रद पुरुषों के लिये ( नमः उक्तिं अदिक्षि) आदर सत्कार, अधिकार सूचक उत्तम वचन का प्रयोग करूं । ( या ) जो दोनों ( राधसा ) धन के द्वारा ( मतीनां ) मननशील, ज्ञानवान् पुरुषों को ( चोदितारा ) शुभ कार्य और उन्नति के मार्ग पर उत्साहित करने वाले, ( उत ) और ( त्मन् ) अपने राष्ट्र कार्य में ( वाजस्य ) अन्न संग्राम और ऐश्वर्य की वृद्धि के लिये भी ( द्रविणो-दौ ) धन प्रदान करने वाले हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अत्रिर्ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:–१, ३, ६, ८, ९, १७ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ४, ५, १०, ११, १२, १५ त्रिष्टुप् । ७, १३ विराट् त्रिष्टुप् । १४ भुरिक्पंक्ति: । १६ याजुषी पंक्तिः ॥ सप्तदशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
पूषा व वायु का आराधन
पदार्थ
[१] (अहम्) = मैं (तव्यसः) = अत्यन्त बलशाली (तुरस्य) = शत्रुओं के विनाशक (पूष्णः) = पूषा के, सूर्य के तथा (वायोः) = वायु के (नम उक्तिम्) = नमन के साथ स्तोत्र को (अदिक्षि) = [आदिशामि] करता मैं पूषा व वायु का आराधन करता हूँ। पूषा का आराधन यही है कि यथासम्भव सूर्य सम्पर्क में जीवन को बिताते हुए सूर्य की तरह ही क्रियाशील होते हुए अपनी प्राणशक्ति को बढ़ाना । वायु के आराधन का भाव है कि वायु की तरह निरन्तर गतिवाला होना, अकर्मण्यता व आलस्य से सदा परे रहना । एवं पूषा व वायु का आराधन करता हुआ व्यक्ति 'तव्यान् व तुर्' बनता है, शक्तिशाली व शत्रुओं का संहार करनेवाला । [२] मैं उन 'पूषा व वायु' का आराधन करता हूँ (या) = जो (राधसा) = मुझे जीवन में सफल बनानेवाले हैं [राध सिद्धौ], (मतीनां चोदितारौ) = मेरे अन्दर सद्बुद्धियों को प्रेरित करनेवाले हैं। (उत) = और (त्मन्) = स्वयं (वाजस्य द्रविणोदौ) = शक्ति के धन को प्राप्त करानेवाले हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम यथासम्भव सूर्य सम्पर्क में जीवन को बिताते हुए शक्तियों के पोषण का पूर्ण ध्यान करें। यही 'पूषा' का उपासन है। हम निरन्तर गतिशील होते हुए 'वायु' की आराधना करें। यह आराधना हमें सफलता, सद्बुद्धि व शक्ति को देगी। सूर्य सम्पर्क से दूर व अकर्मण्य पुरुष 'असफल, मूर्ख व निर्बल' हो जाता है ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्वान लोक विद्येचा उपदेश व दान यांनी माणसांना उत्तम प्रकारे शिक्षित करतात तसेच अनुष्ठान तुम्ही ही करा. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
I offer the song of homage and reverence in honour of Pusha, power of nourishment, and Vayu, energy of wind and electricity, both power givers for success and achievement, inspirers of mankind, and both spontaneous and instant givers of wealth and progress.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of attributes of enlightened person is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person ! as I utter the praise of rapid and powerful wind which gives strength or development, and tell about the teachers and preachers who prompt intellect of men and give knowledge with wealth, so you should also emulate.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
You should also train men well as the enlightened persons do by giving good education and donations.
Foot Notes
(तव्यसः ) बलस्य । तवः इति बलनाम (NG 2,9) । = Of the strength. (मतीनाम् ) मनुष्याणाम् मतयः इति मेधाविनाम (NG 3,15)। = Of thoughtful or wisemen. (वाजस्य ) विज्ञानस्यान्नस्य वा । वाज इति अन्ननाम (NG 2, 9) वज गतौ । गतेस्त्रिष्वर्थेष्वत्र ज्ञानार्थग्रहणम् । = Of the knowledge or food.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal