ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 59/ मन्त्र 6
ते अ॑ज्ये॒ष्ठा अक॑निष्ठास उ॒द्भिदोऽम॑ध्यमासो॒ मह॑सा॒ वि वा॑वृधुः। सु॒जा॒तासो॑ ज॒नुषा॒ पृश्नि॑मातरो दि॒वो मर्या॒ आ नो॒ अच्छा॑ जिगातन ॥६॥
स्वर सहित पद पाठते । अ॒ज्ये॒ष्ठाः । अक॑निष्ठासः । उ॒त्ऽभिदः॑ । अम॑ध्यमासः । मह॑सा । वि । व॒वृ॒धुः॒ । सु॒ऽजा॒तासः॑ । ज॒नुषा॑ । पृश्नि॑ऽमातरः । दि॒वः । मर्याः॑ । आ । नः॒ । अच्छ॑ । जि॒गा॒त॒न॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ते अज्येष्ठा अकनिष्ठास उद्भिदोऽमध्यमासो महसा वि वावृधुः। सुजातासो जनुषा पृश्निमातरो दिवो मर्या आ नो अच्छा जिगातन ॥६॥
स्वर रहित पद पाठते। अज्येष्ठाः। अकनिष्ठासः। उत्ऽभिदः। अमध्यमासः। महसा। वि। ववृधुः। सुऽजातासः। जनुषा। पृश्निऽमातरः। दिवः। मर्याः। आ। नः। अच्छ। जिगातन ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 59; मन्त्र » 6
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 6
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे विद्वांसो ! येऽज्येष्ठा अकनिष्ठास उद्भिदोऽमध्यमासो जनुषा सुजातासः पृश्निमातरो दिवो मर्या महसा वि वावृधुस्ते नोऽच्छाऽऽजिगातन ॥६॥
पदार्थः
(ते) (अज्येष्ठाः) अविद्यमानो ज्येष्ठो येषान्ते (अकनिष्ठासः) अविद्यमानाः कनिष्ठा येषान्ते (उद्भिदः) ये पृथिवीं भित्त्वा प्ररोहन्ति (अमध्यमासः) अविद्यमानो मध्यमो येषां ते (महसा) महता बलादिना (वि) (वावृधुः) वर्धन्ते (सुजातासः) शोभनेषु व्यवहारेषु प्रसिद्धाः (जनुषा) जन्मना (पृश्निमातरः) पृश्निरन्तरिक्षं माता येषान्ते (दिवः) कामयमानाः (मर्याः) मनुष्याः (आ) समन्तात् (नः) अस्मान् (अच्छा) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (जिगातन) प्रशंसन्ति ॥६॥
भावार्थः
यदि मनुष्येषु यथावत्सुशिक्षा भवेत्तर्हि कनिष्ठा मध्यमोत्तमा जना विवेकिनो भूत्वा यथावज्जगदुन्नतिं कर्त्तुं शक्नुयुः ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वानो ! जो (अज्येष्ठाः) नहीं विद्यमान ज्येष्ठ जिनके वा (अकनिष्ठासः) नहीं विद्यमान छोटा जिनके वा (उद्भिदः) पृथिवी को फोड़कर उगनेवाले तथा (अमध्यमासः) नहीं विद्यमान मध्यम जिनके वे (जनुषा) जन्म से (सुजातासः) उत्तम व्यवहारों में प्रसिद्ध वा (पृश्निमातरः) अन्तरिक्ष माता जिनका वे और (दिवः) कामना करते हुए (मर्याः) मनुष्य (महसा) बड़े बल आदि से (वि, वावृधुः) विशेष बढ़ते हैं (ते) वे (नः) हम लोगों की (अच्छा) उत्तम प्रकार (आ, जिगातन) सब ओर से प्रशंसा करते हैं ॥६॥
भावार्थ
जो मनुष्यों में यथायोग्य उत्तम शिक्षा हो तो कनिष्ठ, मध्यम और उत्तम जन विचारशील होकर यथायोग्य जगत् की उन्नति कर सकें ॥६॥
विषय
ऊंचे लक्ष्य तक पहुंचने का उपदेश ।
भावार्थ
भा०- (ते) वे (अज्येष्ठाः ) ज्येष्ठ, अपने से बड़े पुरुष से पृथक् (अकनिष्ठासः) बहुत छोटे व्यक्तियों से पृथक् और ( अमध्यमासः) मध्यम, समान व्यक्तियों से पृथक्, निर्मम (उद्भिदः ) पृथ्वी को फोड़ कर उत्पन्न होने वाले वृक्षों के समान सदा ऊंचे लक्ष्य को भेदने वाले, अथवा उत्तम फल उत्पन्न करने वाले, उत्तम मनुष्य ( महसा ) महान् सामर्थ्य से (वि ववृधुः ) विशेष रूप से वृद्धि को प्राप्त करें। वे ( सु-जातासः) उत्तम ऐश्वर्य आदि गुणों में प्रसिद्ध ( जनुषा ) जन्म से, स्वभावतः ( पृश्नि-मातरः ) सूर्य से उत्पन्न किरणों के समान सर्वपोषक, भूमि-माता के पुत्र एवं ज्ञान, पोषक आचार्य के पुत्र तुल्य वीर जन (दिवः ) नाना कामनाओं को करने वाले ( मर्याः ) मनुष्य (नः) हमें (अच्छ जिगातन ) उत्तम रीति से प्राप्त हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ४ विराड् जगती । २, ३, ६ निचृज्जगती । ५ जगती । ७ स्वराट् त्रिष्टुप् । ८ निचृत् त्रिष्टुप् ॥
विषय
तेजस्विता-ज्ञानप्रकाश-प्रभु प्राप्ति
पदार्थ
[१] शरीरस्थ प्राण ४९ भागों में बटे हुए हैं। (ते) = वे प्राण (अज्येष्ठाः अकनिष्ठासः) = न छोटे हैं न बड़े हैं, अर्थात् इन प्राणों में कोई छोटा बड़ा नहीं है। सभी प्राणों का समानरूप से महत्त्व है। (अमध्यमासः) = इन में कोई भी मध्यम श्रेणी का नहीं है । (उद्भिदः) = सब के सब शत्रुओं का उद्भेदन करनेवाले हैं। (महसा विवावृधुः) = तेजस्विता से खूब ही वृद्धि को प्राप्त हो रहे हैं । [२] (सुजातासः) = उत्तम प्रादुर्भाववाले ये प्राण (जनुषा) = अपने प्रादुर्भाव से (पृश्निमातरः) = ज्ञानरश्मियों का [पृश्नि = a ray of light] निर्माण करनेवाले हैं। प्रभु कहते हैं कि हे (दिवः मर्या:) = प्राणसाधना द्वारा प्रकाशमय जीवनवाले मनुष्यो ! (नः अच्छा) = हमारी ओर (आजिगातन) = आओ । प्राणसाधना करके हम जीवन को प्रकाशमय बनायें और निरन्तर प्रभु की ओर गतिवाले हों ।
भावार्थ
भावार्थ– शरीर में सब प्राणों का महत्त्व है। ये हमें तेजस्वी व ज्ञान के प्रकाशवाला बनाते हैं। ज्ञान को प्राप्त करके हम प्रभु की ओर बढ़ते हैं। तेजस्विता व ज्ञान ही हमें प्रभु प्राप्ति का पात्र बनाते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
जर माणसांमध्ये यथायोग्य उत्तम शिक्षण असेल तर कनिष्ठ, मध्यम व उत्तम लोक विचारशील होऊन जगाची यथायोग्य उन्नती करू शकतात. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
None highest, none lowest, none middling, among them, they are equals all, burst forth into life through layers of impediments. Nobly born by nature, children of heaven, earth and the firmament, they are mortals, humans all, who, as we wish, come to us and appreciate us all. They grow and rise by their own strength and grandeur.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of wind is dealt.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned persons ! let them come to us well are matching in manhood, there is none superior among them, non-inferior by birth. They have grown by their might and have the firmament as their mother, and are well-known for their good dealings. They are noble by birth, desire the welfare of all and with their strength. Come there to us.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
If there is good education among men, then all men whether superior or inferior, may be endowed with destruction and able to also good to the world.
Foot Notes
(सुजातासः) शोभनेषु व्यवहारेषु प्रसिद्धाः जनी-प्रादुर्भावे । = Well-known for good dealings. (दिवः) कामयमाना: । दिवु -क्रीडाविजिगीषाव्यवहार दयुतिस्तुतिमोदम स्वप्नकान्तिगतिषु (दि०) अत्र कान्त्यर्थः । कान्तिः कामना != Desiring the welfare of all.
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