ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 61/ मन्त्र 3
ज॒घने॒ चोद॑ एषां॒ वि स॒क्थानि॒ नरो॑ यमुः। पु॒त्र॒कृ॒थे न जन॑यः ॥३॥
स्वर सहित पद पाठज॒घने॑ । चोदः॑ । ए॒षा॒म् । वि । स॒क्थानि॑ । नरः॑ । य॒मुः॒ । पु॒त्र॒ऽकृ॒थे । न । जन॑यः ॥
स्वर रहित मन्त्र
जघने चोद एषां वि सक्थानि नरो यमुः। पुत्रकृथे न जनयः ॥३॥
स्वर रहित पद पाठजघने। चोदः। एषाम्। वि। सक्थानि। नरः। यमुः। पुत्रऽकृथे। न। जनयः ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 61; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे नरः ! पुत्रकृथे जनयो नैषां जघने यश्चोदोऽस्ति ये सक्थानि वि यमुस्तान् यूयं सत्कुरुत ॥३॥
पदार्थः
(जघने) कट्यधोभागावयवे (चोदः) प्रेरकः (एषाम्) (वि) (सक्थानि) सक्थीनि (नरः) नेतारः (यमुः) नियच्छेयुः (पुत्रकृथे) पुत्रकरणे (न) इव (जनयः) मातापितरः ॥३॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । यथा जनका मातापितरः सुनियमेन सन्तानोत्पत्तिं कृत्वैतान् सुनियम्य सुशिक्षितान् कुर्युस्तथा सर्वे कुर्वन्तु ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (नरः) नायक जनो ! (पुत्रकृथे) पुत्र करने में (जनयः) माता-पिता (न) जैसे वैसे (एषाम्) इनके (जघने) कटि के नीचे के भाग के अवयवों को जो (चोदः) प्रेरणा करनेवाला है और जो (सक्थानि) घुटनों को (वि, यमुः) नियम में रक्खें, उनका आप लोग सत्कार करो ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे उत्पन्न करनेवाले माता-पिता सुन्दर नियम से सन्तानोत्पत्ति करके इनको उत्तम प्रकार नियमयुक्त करके उत्तम प्रकार शिक्षित करें, वैसे सब करें ॥३॥
विषय
अंगों को बांधने का उपदेश ।
भावार्थ
भा०-जिस प्रकार अश्वों के ( जघने चोदः ) जघन अर्थात् चूतड़ भाग पर कशा का प्रहार होता है उसी प्रकार (एषां ) इन मनुष्यों और वीर पुरुषों के ( जघने ) निरन्तर गमन कार्य और हनन कार्य में भी ( चोदः ) प्रेरक पुरुष नियुक्त हो । वे लोग इस अवसर पर ( सक्थानि वि यमुः ) अपने घुटने से टखने तक की टांगों को विशेष प्रकार से बांध लिया करें। और जिस प्रकार ( पुत्र-कृथे न ) पुत्र उत्पन्न करने के लिये ( जनयः ) स्त्री वा पुरुष लोग (वि यमुः ) विशेष रूप से नियमपूर्वक प्रतिज्ञाबद्ध होकर परस्पर विवाहित हो जाते हैं उसी प्रकार ये मनुष्य भी ( पुत्र थे ) पुत्रादि के लिये, ( सक्थानि वि यमुः ) प्राप्त करने योग्य पदार्थों को प्राप्त करने के लिये विशेष २ नियमों से बद्ध हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ १–४, ११–१६ मरुतः । ५-८ शशीयसी तरन्तमहिषी । पुरुमीळहो वैददश्विः । १० तरन्तो वैददश्विः । १७ – १९ रथवीतिर्दाल्भ्यो देवताः ॥ छन्दः – १ –४, ६–८, १०– १९ गायत्री । ५ अनुष्टुप् । ९ सतोबृहती ॥ एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
गति-संयम-सत्सन्तान
पदार्थ
[१] (जघने) = गमन के साधनभूत जघन प्रदेश में (एषाम्) = इन प्राणों की ही (चोदः) = प्रेरणा कार्य करती है प्राणशक्ति से ही जघन प्रदेश सबल होकर हमें दूर-दूर जाने में समर्थ करते हैं । (नरः) = ये हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले प्राण ही (सक्थानि) = हमारे ऊरु प्रदेशों के (वियमुः) = विशेषरूप से संयमवाला बनाते हैं । [२] इस प्रकार हमारे जीवनों को गतिशील व संयमी बनाकर ये प्राण (पुत्रकृथे) = उत्तम सन्तानों के निर्माण में (जनयः न) = उत्तम पत्नियों के समान होते हैं। वस्तुतः प्राणसाधना से ही पति-पत्नी उत्तम सन्तानों को जन्म देनेवाले बनते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना हमें गतिशील, संयमी व सत्सन्तानवाला बनाती है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे माता-पिता नियमपूर्वक संतानोत्पत्ती करतात. त्यांच्यावर नियंत्रण ठेवतात व सुशिक्षित करतात तसे सर्वांनी वागावे. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
They goad and spur on the horses’ flanks, the riders make them move fast in order, their muscles strained and waxed, as parents raise their children to the optimum with freedom and control.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of Maruts are mentioned.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O leaders! respect those persons whose goad is on the croup, the heroes stretch their legs apart. They are like the parents on the birth of the children.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
There is Upamālankara or simile in the mantra. All should do like the parents having given birth to their children make them highly educated by having proper control over them.
Foot Notes
(जनयः) मातापितरः । जनी -प्रादुर्भावि = Father. and mother. (चोदः) प्रोरकः । भुव प्रेरणे | = Goad.
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