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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 55 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 55/ मन्त्र 5
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - पूषा छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    मा॒तुर्दि॑धि॒षुम॑ब्रवं॒ स्वसु॑र्जा॒रः शृ॑णोतु नः। भ्रातेन्द्र॑स्य॒ सखा॒ मम॑ ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा॒तुः । दि॒धि॒षुम् । अ॒ब्र॒व॒म् । स्वसुः॑ । जा॒रः । शृ॒णो॒तु॒ । नः॒ । भ्राता॑ । इन्द्र॑स्य । सखा॑ । मम॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मातुर्दिधिषुमब्रवं स्वसुर्जारः शृणोतु नः। भ्रातेन्द्रस्य सखा मम ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मातुः। दिधिषुम्। अब्रवम्। स्वसुः। जारः। शृणोतु। नः। भ्राता। इन्द्रस्य। सखा। मम ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 55; मन्त्र » 5
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः किं जानीयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! य इन्द्रस्य भ्रातेव मम सखा नो दिधिषुं शृणोतु यः स्वसुर्जारो मातुर्धर्त्ताऽस्ति तमहमब्रवं तं सर्वे विजानन्तु ॥५॥

    पदार्थः

    (मातुः) जनन्याः (दिधिषुम्) धारकम् (अब्रवम्) ब्रूयाम् (स्वसुः) भगिन्या इवोषसः (जारः) निवारयिता (शृणोतु) (नः) अस्माकम् (भ्राता) बन्धुरिव (इन्द्रस्य) विद्युतः (सखा) (मम) ॥५॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथाऽग्ने सखा वायुरस्ति रात्रेर्निवर्त्तकः सूर्य्यश्च तथैव धार्मिका मम सखायोऽहं च तेषां सुहृद्भूत्वा रात्रिमिव वर्त्तमानामविद्यां वयं निवारयेम ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्य क्या जानें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (इन्द्रस्य) बिजुली के (भ्राता) भ्राता के समान (मम) मेरा (सखा) मित्र (नः) हम लोगों के (दिधिषुम्) धारण करनेवाले को (शृणोतु) सुने और जो (स्वसुः) भगिनी के समान उषा का (जारः) निवारण करनेवाला (मातुः) माता का धारण करनेवाला है, उसको मैं (अब्रवम्) कहूँ और उसको सब जानें ॥५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे अग्नि का मित्र वायु है, और रात्रि का निवारण करनेवाला सूर्य भी है, वैसे ही धार्मिक मेरे मित्र और मैं भी उनका मित्र होकर रात्रि के समान वर्त्तमान अविद्या का हम सब निवारण करें ॥५॥

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    विषय

    सूर्य वत् प्रकाशक । 'स्वसुर्जार', 'मातुर्दिधिषु' का रहस्य ।

    भावार्थ

    जो ( स्वसुः जारः ) रात्रि वा उषा को नष्ट करने वाले सूर्य के समान भगिनी के तुल्य प्रजा को ( जारः ) सन्मार्ग में चलाने वाला, और ( इन्द्रस्य सखा ) अग्नि या विद्युत् के मित्र वायु के समान ( मम सखा ) मेरा मित्र (भ्राता) एवं पतिवत् वा ( स्वसुः भ्राता इव ) बहिन के भाई के समान, उसका भरण पोषण करने वाला है, उसको मैं ( मातुः ) ज्ञान देने वाली विद्या वा सबकी माता के समान, वा मापी जाने योग्य भूमि को ( दिधुषुम् ) धारण करने में समर्थ (अब्रवम् ) कहता हूं, वह ( नः शृणोतु ) हमारा वचन श्रवण करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः – १, २, ५, ६ गायत्री । ३, ४ विराड् गायत्री ॥ षड्ज: स्वरः ॥ षडृर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    'माता के दिधिषु' प्रभु

    पदार्थ

    [१] (मातुः) = निर्माण के कार्यों में प्रवृत्त प्रमाता [ज्ञानी] पुरुष के (दिधिषुम्) = धारण करनेवाले प्रभु को (अब्रवम्) = मैं प्रार्थना करता हूँ। वह (स्वसुः) = उत्तम प्राणशक्ति को देनेवाला (जारः) = अज्ञानान्धकार को जीर्ण करनेवाला प्रभु (नः शृणोतु) हमारी प्रार्थना को सुने। [२] ये प्रभु ही (इन्द्रस्य) = जितेन्द्रिय पुरुष के (भ्राता) = भरण करनेवाले हैं और (मम सखा) = मेरे मित्र है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- निर्माण कार्य प्रवृत्त पुरुषों के प्रभु ही धारक है, उत्तम प्राणशक्ति के दाता व अज्ञानान्धकार विनाशक हैं, जितेन्द्रिय पुरुष के धारण करनेवाले हैं, हमारे मित्र हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे विद्वानांनो ! तुम्ही शरीर व आत्म्याची पुष्टी करणाऱ्या पदार्थांना जाणून त्यांचा उपयोग करा व ऐश्वर्य प्राप्त करा. ॥ ५ ॥

    टिप्पणी

    या मंत्रात पूषा व आदित्य यांचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    I speak of the sun, sustainer of the earth mother, lover of its own creation, the dawn, brother of electric energy of the cosmos, and my friend and companion for life. May the sun be close to us and respond to our prayer.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men know is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men let my friend, who is splendid like the brother of electricity or lightning; listen to what I tell him about our upholder (sun). I tell about the sun, who is destroyer of the dawn (which is like sister) and who is the upholder of the mother earth. Let all know about that grand sun.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

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    Foot Notes

    (दिधिसुम्) धारकम् । धि-धारणे (तुदा.) अन्दू दुम्फूजम्बूकम्बूकफैलू कर्कन्धूदिधिषूः (उणादि कोषे 1, 93 ) इति दिधिषू नियतित: । = Upholder. (इन्द्रस्य) विद्युतः। = Of electricity or lightning.

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