ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 59/ मन्त्र 10
गृह॑मेधास॒ आ ग॑त॒ म॑रुतो॒ माप॑ भूतन। यु॒ष्माको॒ती सु॑दानवः ॥१०॥
स्वर सहित पद पाठगृह॑ऽमेधासः । आ । ग॒त॒ । मरु॑तः । मा । अप॑ । भू॒त॒न॒ । यु॒ष्माक॑ । ऊ॒ती । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
गृहमेधास आ गत मरुतो माप भूतन। युष्माकोती सुदानवः ॥१०॥
स्वर रहित पद पाठगृहऽमेधासः। आ। गत। मरुतः। मा। अप। भूतन। युष्माक। ऊती। सुऽदानवः ॥१०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 59; मन्त्र » 10
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 30; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 30; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्गृहस्थाः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥
अन्वयः
हे गृहमेधासो मरुतो ! यूयमत्रागत सुदानवो भूतन युष्माकोती सहिता यूयं माप भूतन ॥१०॥
पदार्थः
(गृहमेधासः) गृहे मेधा प्रज्ञा येषां ते (आ) (गत) आगच्छत (मरुतः) उत्तमा मनुष्याः (मा) निषेधे (अप) (भूतन) विरुद्धा भवत (युष्माक) युष्माकम् (ऊती) ऊत्या रक्षणाद्यया क्रियया (सुदानवः) सुष्ठु दानाः ॥१०॥
भावार्थः
हे गृहस्था ! यूयं विद्यादिशुभगुणदातारो भूत्वा धर्मपुरुषार्थविरुद्धा मा भवत ॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर गृहस्थ कैसे होवें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (गृहमेधासः) गृह में बुद्धि जिन की ऐसे (मरुतः) उत्तम मनुष्यो ! आप लोग यहाँ (आ, गत) आइये और (सुदानवः) अच्छे दानवाले (भूतन) हूजिये और (युष्माक) आप लोगों की (ऊती) रक्षण आदि क्रिया के सहित आप लोग (मा) नहीं (अप) विरुद्ध हूजिये ॥१०॥
भावार्थ
हे गृहस्थ जनो ! आप लोग विद्या आदि श्रेष्ठ गुणों के देनेवाले होकर धर्म्म और पुरुषार्थ के विरुद्ध मत होओ ॥१०॥
विषय
गृहस्थ सज्जनों का वर्णन ।
भावार्थ
हे ( गृहमेधासः ) गृह में उत्तम बुद्धि रखने वाले, वा गृह में यज्ञ करने हारे उत्तम गृहस्थ जनो ! हे ( मरुतः ) मनुष्यो ! आप लोग (आ गत ) आइये । ( मा अपभूतन ) हमसे दूर मत होइये । हे ( सु-दानवः ) उत्तम दानयुक्त, एवं दानशील पुरुषो ! ( युष्माक-ऊती ) आप लोगों की रक्षा, ज्ञान और सत्कार से ही हम भी प्रसन्न हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ १-११ मरुतः। १२ रुद्रो देवता, मृत्युविमोचनी॥ छन्दः १ निचृद् बृहती। ३ बृहती। ६ स्वराड् बृहती। २ पंक्ति:। ४ निचृत्पंक्तिः। ५, १२ अनुष्टुप्। ७ निचृत्त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप्। ९,१० गायत्री। ११ निचृद्गायत्री॥
विषय
गृहस्थी यज्ञशील हों
पदार्थ
पदार्थ - हे (गृहमेधासः) = गृह में यज्ञ करने हारे गृहस्थ जनो! हे (मरुतः) = मनुष्यो! आप लोग आ गत आइये । (मा अपभूतन) = हमसे दूर मत होइये। हे (सुदानवः) = उत्तम दानशील पुरुषो ! (युष्माक-ऊती) = आप लोगों की रक्षा और सत्कार से ही हम प्रसन्न हों।
भावार्थ
भावार्थ-गृहस्थी लोगों को चाहिये कि वे अपने घरों में नित्य यज्ञ करें तथा विद्वानों को बुलाकर उन्हें दान व दक्षिणा से तृप्त करें। उन विद्वानों से सन्मार्ग प्राप्त करके उत्तम सुख का उपभोग करें।
मराठी (1)
भावार्थ
हे गृहस्थांनो ! तुम्ही विद्या इत्यादी श्रेष्ठ गुणांचे दाते व्हा. धर्म व पुरुषार्थाविरुद्ध वागू नका. ॥ १० ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Maruts, guardians of the home and family as a sacred institution of social yajna, come, stay not away, forsake us not. Let your divine protection remain constant, O generous givers of prosperity, joy and domestic bliss.
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