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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 68 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 68/ मन्त्र 9
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ए॒ष स्य का॒रुर्ज॑रते सू॒क्तैरग्रे॑ बुधा॒न उ॒षसां॑ सु॒मन्मा॑ । इ॒षा तं व॑र्धद॒घ्न्या पयो॑भिर्यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षः । स्यः । का॒रुः । ज॒र॒ते॒ । सु॒ऽउ॒क्तैः । अग्रे॑ । बु॒धा॒नः । उ॒षसा॑म् । सु॒ऽमन्मा॑ । इ॒षा । तम् । व॒र्ध॒त् । अ॒घ्न्या । पयः॑ऽभिः । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष स्य कारुर्जरते सूक्तैरग्रे बुधान उषसां सुमन्मा । इषा तं वर्धदघ्न्या पयोभिर्यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । स्यः । कारुः । जरते । सुऽउक्तैः । अग्रे । बुधानः । उषसाम् । सुऽमन्मा । इषा । तम् । वर्धत् । अघ्न्या । पयःऽभिः । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ७.६८.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 68; मन्त्र » 9
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 15; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ राज्ञः समृद्धये प्रजानां प्रार्थना कथ्यते।

    पदार्थः

    (कारुः) सुकर्मा (सुमन्मा) सुबुद्धियुक्तः (उषसां) उषःकालात् (अग्रे) पूर्वं (बुधानः) प्रबुद्धः (एषः, स्यः) अयं वेदवित्पुरुषः (सूक्तैः) वेदोक्तमन्त्रैः (तं) राज्ञः (इषा) अन्नद्वारा (वर्धत्) वृद्धये प्रार्थयतां (अघ्न्या) गवां (पयोभिः) दुग्धैः वर्धयतु इति च प्रार्थयेत। अन्यच्च (यूये) वेदवेत्तारः पुरुषाः (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवाचनादिभिर्वाक्यैः प्रार्थयध्वं यत् हे परमात्मन् ! (नः) अस्मान् (सदा) सर्वदा (पात) त्रायस्वेति ॥९॥ अष्टषष्टितमं सूक्तं पञ्चदशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब राजा की वृद्धि के लिये प्रजा की प्रार्थना कथन करते हैं।

    पदार्थ

    (कारुः) सदाचारी (सुमन्मा) बुद्धिमान् (उषसां) उषाकाल से (अग्ने) पहले (बुधानः) जागनेवाला (एषः, स्यः) यह वेदवेत्ता पुरुष (सूक्तैः) वेदों के सूक्तों से (तं) राजा के अर्थ (इषा, वर्धत्) अन्नों द्वारा बढ़ने के लिए प्रार्थना करे (अघ्न्या, पयोभिः) गौओं के दुग्ध द्वारा परमात्मा बढ़ावे, यह प्रार्थना करे और (यूयं) आप लोग (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवाचक वाणियों से यह प्रार्थना करें कि (नः) हमारा (सदा) सर्वदा (पात) कल्याण हो ॥

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे वेदवेत्ता पुरुषो ! तुम प्रात: ब्राह्ममुहूर्त्त में उठ कर अपने आचार को पवित्र बनाने का उपाय विचारो और स्वाध्याय करते हुए राजा तथा प्रजा के लिए कल्याण की प्रार्थना करो कि हे भगवन् ! पुष्कल अन्न, वस्त्र तथा दुग्धादि पदार्थों से आप हमारी रक्षा करें। परमात्मा आज्ञा देते हैं कि राजा तथा प्रजा तुम दोनों के ऐसे ही सद्भाव हों, जिससे तुम्हारी सदैव वृद्धि हो और हे वैदिक कर्मों के अनुष्ठानी पुरुषो ! तुम सदैव ऐसा ही अनुष्ठान करते रहो ॥९॥ यह ६८ वाँ सूक्त और १५ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    विद्वान् का कर्त्तव्य उपदेश करना, ज्ञान बढ़ाना ।

    भावार्थ

    हे उत्तम स्त्री पुरुषो ! ( उषसां अग्रे यथा सु-मन्मा कारुः जरते ) प्रभात वेलाओं के आगे, उनके आगमन के पूर्व जिस प्रकार उत्तम विचारवान्, स्तुतिकर्त्ता, भक्त पुरुष स्तुति करता है उसी प्रकार ( सु-मन्मा ) उत्तम ज्ञानवान्, ( बुधानः ) स्वयं बोधवान् और अन्यों को बोध प्रदान करता हुआ ( कारुः ) मन्त्रों का व्याख्यान करने वाला विद्वान् पुरुष ( एषः स्यः ) वही है जो ( सूक्तैः ) उत्तम मन्त्र गणों से ( उषसाम् अग्रे ) ज्ञान की कामना करने वाले शिष्य जनों के समक्ष ( जरते ) विद्या का उपदेश करता है । ( अघ्न्या पयोभिः ) गौ जिस प्रकार दुग्धों से पालक को बढ़ाती है उसी प्रकार ( अघ्न्या ) कभी न नाश होने वाली वेदवाणी, प्रभुशक्ति वा आत्मशक्ति ( तं ) उसको ( इषा वर्धत् ) उत्तम इच्छा शक्ति से बढ़ाती है । हे विद्वान् पुरुषो ! ( यूयं ) आप लोग (नः सदा स्वस्तिभिः पात ) हमें सदा उत्तम साधनों से पालन करो । इति पञ्चदशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १, ६, ८ साम्नी त्रिष्टुप् । २, ३, ५ साम्नी निचृत् त्रिष्टुप् । ४, ७ साम्नी भुरिगासुरी विराट् त्रिष्टुप् । निचृत् त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूकम्॥

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    विषय

    विद्वानों का कर्त्तव्य

    पदार्थ

    पदार्थ- हे उत्तम स्त्री-पुरुषो! (उपसां अग्रे, यथा सु-मन्मा कारुः जरते) = प्रभात वेलाओं के आगमन के पूर्व जैसे उत्तम (विचारवान्) = पुरुष स्तुति करता है वैसे (सु-मन्मा) = उत्तम ज्ञानवान्, (बुधान:) = स्वयं बोधवान् अन्यों को बोध कराता हुआ (कारुः) = मन्त्रों का व्याख्याता विद्वान् (एषः स्यः) = वही है जो (सूक्तै:) = उत्तम मन्त्र गणों से (उपसाम् अग्रे) = ज्ञान-कामनावाले शिष्यों के समक्ष (जरते) = विद्या का उपदेश करता है। (अघ्न्या पयोभिः) = गौ जैसे दुग्धों से पालक को बढ़ाती है वैसे ही 'अघ्न्या' अविनाशी वेदवाणी, प्रभुशक्ति वा आत्मशक्ति (तं) = उसको (इषा वर्धत्) = इच्छा शक्ति से बढ़ाती है। हे विद्वान् पुरुषो! (यूयं) = आप (नः सदा स्वस्तिभिः पात) = हमारा सदा उत्तम साधनों से पालन करो।

    भावार्थ

    भावार्थ- उत्तम विद्वान् का कर्त्तव्य है कि वह ज्ञान की कामनावाले शिष्यों को वेद वाणी द्वारा विद्या का उपदेश करके उनकी इच्छाशक्ति को सुदृढ़ करे। अगले सूक्त का ऋषि वसिष्ठ और देवता अश्विनौ ही है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Thus does the divine poet, wakeful in advance of the rise of dawn, with holy mind and faithful intelligence, celebrate in song the divine Ashvins, twin harbingers of new life to nature and humanity. May the inviolable Mother Nature and Infinity advance him in life with vision, will and energy. O saints and scholars, mler and administrators, O Ashvins, protect and promote us with peace, happiness and all time well being in life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करतो, की हे वेदवेत्त्या पुरुषांनो! तुम्ही प्रात:काळी ब्रह्ममुहूर्तामध्ये आपले जीवन पवित्र करण्याच उपाय शोधा व स्वाध्याय करीत राजा व प्रजेच्या कल्याणाची प्रार्थना करा. हे भगवान! पुष्कळ अन्न, वस्त्र व दूध इत्यादी पदार्थांनी तू आमचे रक्षण कर. परमात्मा आज्ञा देतो, की राजा व प्रजा तुम्ही दोघेही सद्भावाने वागा. ज्यामुळे तुमची सदैव वृद्धी व्हावी व वैदिक कर्माच्या अनुष्ठानी पुरुषांनो! तुम्ही सदैव असेच अनुष्ठान करा. ॥९॥

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