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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 76 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 76/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - उषाः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्रति॑ त्वा॒ स्तोमै॑रीळते॒ वसि॑ष्ठा उष॒र्बुध॑: सुभगे तुष्टु॒वांस॑: । गवां॑ ने॒त्री वाज॑पत्नी न उ॒च्छोष॑: सुजाते प्रथ॒मा ज॑रस्व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रति॑ । त्वा॒ । स्तोमैः॑ । ई॒ळ॒ते॒ । वसि॑ष्ठाः । उ॒षः॒ऽबुधः॑ । सु॒ऽभ॒गे॒ । तु॒स्तु॒ऽवांसः॑ । गवा॑म् । ने॒त्री । वाज॑ऽपत्नी । नः॒ । उ॒च्छ॒ । उषः॑ । सु॒ऽजा॒ते॒ । प्र॒थ॒मा । ज॒र॒स्व॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रति त्वा स्तोमैरीळते वसिष्ठा उषर्बुध: सुभगे तुष्टुवांस: । गवां नेत्री वाजपत्नी न उच्छोष: सुजाते प्रथमा जरस्व ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रति । त्वा । स्तोमैः । ईळते । वसिष्ठाः । उषःऽबुधः । सुऽभगे । तुस्तुऽवांसः । गवाम् । नेत्री । वाजऽपत्नी । नः । उच्छ । उषः । सुऽजाते । प्रथमा । जरस्व ॥ ७.७६.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 76; मन्त्र » 6
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    इदानीम् उषःकाले अनुष्ठानविधानं कुर्मः।

    पदार्थः

    (उषः बुधः) ब्राह्ममुहूर्ते प्रबोद्धारः (वसिष्ठाः) विद्वांसः ! (स्तोमैः) यज्ञैः (त्वा प्रति) भवतीं (ईळते) स्तुवन्ति (सुभगे) भो सौभाग्यस्य दात्रि ! (गवाम् नेत्री) त्वम् इन्द्रियाणां संयमाधात्री अतएव (तुस्तुवांसः) स्तोतव्यासि (वाजपत्नी) हे सर्वविधैश्वर्यस्य स्वामिनि ! (जरस्व) तमो दग्ध्वा (नः) अस्मभ्यं (उच्छ उषः) सुप्रकाशं कुरु, यतस्त्वं (प्रथमा) अखिलदीप्तिषु मुख्या (सुजाते) सुष्ठुप्रादुर्भाववती चासि ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब उषःकाल में अनुष्ठान का विधान करते हैं।

    पदार्थ

    (उषः बुधः) उषःकाल में जागनेवाले (वसिष्ठाः) विद्वान् ! (स्तोमैः) यज्ञों द्वारा (त्वा प्रति) तेरे लिये (ईळते) स्तुति करते हैं, (सुभगे) हे सौभाग्य के देनेवाली ! (गवां नेत्री) तू इन्द्रियों को संयम में रखने के कारण (तुस्तुवांसः) स्तुतियोग्य है, (वाजपत्नी) हे सब प्रकार के ऐश्वर्य्य की स्वामिनी ! (जरस्व) अन्धकार को जलाकर (नः) हमारे लिये (उच्छ उषः) अच्छा प्रकाश कर, क्योंकि तू (प्रथमा) सब दीप्तियों में मुख्य (सुजाते) सुन्दर प्रादुर्भाववाली है ॥६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में रूपकालङ्कार से उषःकाल का वर्णन करते हुए परमात्मा उपदेश करते हैं जो पुरुष उषःकाल में उठकर सन्ध्यावन्दन तथा हवनादि अनुष्ठानार्ह कार्यों में प्रतिदिन प्रवृत्त रहते हैं, वे सब धनों के देनेवाली तथा इन्द्रियसंयम का मुख्यसाधनरूप उषःकाल से परम लाभ उठाते हैं अर्थात् जो पुरुष अपनी निद्रा त्याग उषःकाल में उठकर अपने नित्यकर्मों में प्रवृत्त होते हैं, वे सौभाग्यशाली पुरुष इन्द्रियों का संयम करते हुए ऐश्वर्य्यशाली होकर सब प्रकार का सुख भोगते हैं, क्योंकि इन्द्रियसंयम का मुख्य साधन उषःकाल में ब्रह्मोपासन है, इसलिये सब मनुष्यों को उचित है कि जब पूर्वदिशा में सूर्य्य की लाली उदय हो, उसी काल में ब्रह्मोपासनरूप अनुष्ठान करें ॥६॥

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    विषय

    सत्पुरुष विदुषी स्त्री को उपदेश ।

    भावार्थ

    हे ( सुभगे ) उत्तम भाग्यवति ! विदुषि ! (तुष्टुवांसः ) स्तुति करने हारे, ( उषर्बुधः ) प्रभात वेलामें जागने वाले ( वसिष्ठाः ) उत्तम वसु, विद्वान् गृहस्थ, ब्रह्मचारी गण, (त्वा) तेरी ( स्तोमैः ) उत्तम स्तुत्य वचनों से ( इडते ) स्तुति करते हैं । हे ( उषः ) पापनाशिके ! तू ( वाजयन्ती ) ऐश्वर्य और ज्ञान का पालन करने वाली ( गवां नेत्री ) गौओं के समान सौम्य वाणियों को प्रस्तुत करने वाली होकर ( नः ) हमारे बीच ( उच्छ ) गुणों और ज्ञान का प्रकाश कर । हे ( सु-जाते ) उत्तम माता पिता की उत्तम पुत्रि ! तू (प्रथमा) सर्वश्रेष्ठ गिनी जाकर (जरस्व) अपने प्रिय पुरुष के गुणों का वर्णन कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ छन्दः—१ त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ४, ५, ६, ७ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    उषा काल में

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (सुभगे) = उत्तम भाग्यवति! (तुष्टुवांसः) = स्तुतिकर्ता, (उपर्बुधः) = प्रभात में जागनेवाले (वसिष्ठा:) = विद्वान् गृहस्थ, ब्रह्मचारी (त्वा) = तेरी (स्तोमैः) = स्तुत्य वचनों से (इडते) = स्तुति करते हैं। हे (उषः) = पापनाशिके! तू (वाजयन्ती) = ऐश्वर्य और ज्ञान की पालक (गवां नेत्री) = गो-तुल्य सौम्य वाणियों को प्रस्तुत करनेवाली होकर (नः) = हमारे बीच (उच्छ) = गुणों का प्रकाश कर। हे (सुजाते) = मातापिता की उत्तम पुत्री ! तू (प्रथमा) = सर्वश्रेष्ठ गिनी जाकर (जरस्व) = प्रिय पुरुष के गुणों का वर्णन कर।

    भावार्थ

    भावार्थ- विद्वान् गृहस्थी तथा ब्रह्मचारी जन प्रातः काल की उषा वेला में ऐश्वर्य तथा ज्ञान की प्राप्ति के लिए स्तुति करें अर्थात् कार्य योजना का निर्माण करें तथा उस योजना के अनुसार पुरुषार्थ करें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O dawn, lady of light and good fortune, nobly bom of the sun divine, generous sustainer and giver of inspiration and energy, harbinger of light and controller of mind and senses, brilliant and celebrant sages of highest faith and intelligence awake at dawn offer you homage with songs of adoration: Come, first born, light of divinity, shine and bring us too the life divine.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात रूपकालंकाराने उष:कालाचे वर्णन केलेले असून, परमात्मा उपदेश करतो, की जे पुरुष उष:काली उठून संध्यावंदन व हवन इत्यादी अनुष्ठान करण्यायोग्य कार्यात दररोज प्रवृत्त असतात ते सर्व धन देणाऱ्या इंद्रियसंयमाचे मुख्य साधनरूप उष:कालाचा परम लाभ करून घेतात. अर्थात, जे पुरुष आपल्या निद्रेचा त्याग करून उष:काली उठून आपले नित्य कर्म करतात ते सौभाग्यवान पुरुष इंद्रियांचा संयम करून ऐश्वर्यवान बनून सर्व प्रकारचे सुख भोगतात. कारण इंद्रियसंयमाचे मुख्य साधन उष:काली ब्रह्मोपासना आहे. त्यामुळे सर्व माणसांनी पूर्व दिशेला सूर्याची जी लाली दिसते त्याचवेळी ब्रह्मोपासनारूपी अनुष्ठान करावे. ॥६॥

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