ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 77/ मन्त्र 3
दे॒वानां॒ चक्षु॑: सु॒भगा॒ वह॑न्ती श्वे॒तं नय॑न्ती सु॒दृशी॑क॒मश्व॑म् । उ॒षा अ॑दर्शि र॒श्मिभि॒र्व्य॑क्ता चि॒त्राम॑घा॒ विश्व॒मनु॒ प्रभू॑ता ॥
स्वर सहित पद पाठदे॒वाना॑म् । चक्षुः॑ । सु॒ऽभगा॑ । वह॑न्ती । श्वे॒तम् । नय॑न्ती । सु॒ऽदृशी॑कम् । अश्व॑म् । उ॒षाः । अ॒द॒र्शि॒ । र॒श्मिऽभिः । विऽअ॑क्ता । चि॒त्रऽम॑घा । विश्व॑म् । अनु॑ । प्रऽभू॑ता ॥
स्वर रहित मन्त्र
देवानां चक्षु: सुभगा वहन्ती श्वेतं नयन्ती सुदृशीकमश्वम् । उषा अदर्शि रश्मिभिर्व्यक्ता चित्रामघा विश्वमनु प्रभूता ॥
स्वर रहित पद पाठदेवानाम् । चक्षुः । सुऽभगा । वहन्ती । श्वेतम् । नयन्ती । सुऽदृशीकम् । अश्वम् । उषाः । अदर्शि । रश्मिऽभिः । विऽअक्ता । चित्रऽमघा । विश्वम् । अनु । प्रऽभूता ॥ ७.७७.३
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 77; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ तामेव दिव्यशक्तिं सकलजगदाधारमन्वाचष्टे।
पदार्थः
(देवानां चक्षुः) सर्वासां दिव्यशक्तीनां प्रकाशिका (सुभगा) सर्वैश्वर्यसम्पन्ना (श्वेतम् अश्वम् वहन्ती) श्वेतवर्णस्य गमनशीलस्य सूर्यस्य गमयित्री (सुदृशीकम्) सर्वातिरिक्तदर्शना (अदर्शि रश्मिभिः नयन्ती) अदृश्यरश्मीनाञ्चालिका (व्यक्ता) सर्वत्र विभक्ता (चित्रामघा) नानाविधैश्वर्यसम्पन्ना (उषाः) परमात्मरूपा शक्तिः (विश्वम्) सकलं जगत् (अनु) आधेयरूपेणाश्रित्य (प्रभूता) सविस्तारं विराजते ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
अब उस दिव्यशक्ति को सम्पूर्ण विश्व का आधार कथन करते हैं।
पदार्थ
(देवानां चक्षुः) सब दिव्य शक्तियों की प्रकाशक (सुभगा) सर्वैश्वर्य्यसम्पन्न (श्वेतं अश्वं वहन्ती) श्वेतवर्ण के गतिशील सूर्य्य को चलानेवाली (सुदृशीकं) सर्वोपरि दर्शनीय (अदर्शि रश्मिभिः नयन्ती) नहीं देखे जानेवाली रश्मियों की चालिका (व्यक्ता) सब में विभक्त (चित्रामघा) नाना प्रकार के ऐश्वर्य्य से सम्पन्न (उषाः) परमात्मरूपशक्ति (विश्वं) सम्पूर्ण संसार को (अनु) आधेयरूप से आश्रय करके (प्रभूता) विस्तृतरूप से विराजमान हो रही है ॥३॥
भावार्थ
जो दिव्यशक्ति सूर्य्यादि सब तेजों का चक्षुरूप, सब प्रकाशक ज्योतियों को प्रकाश देनेवाली, गतिशील सूर्य्य चन्द्रादिकों को चलानेवाली और जो सम्पूर्ण संसार को आश्रय करके स्थित हो रही है, वही दिव्य शक्ति सम्पूर्ण विश्व का अधिष्ठान है ॥ या यों कहो कि सम्पूर्ण दिव्य शक्तियों की प्रकाशक एकमात्र परमात्मज्योति ही है। उसी के आश्रित हुए सब ब्रह्माण्ड नियमानुसार चलते और उसी के शासन में सब पदार्थ भ्रमण कर रहे हैं, जैसा कि अन्यत्र भी कहा है कि “एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गि सूर्याचन्द्रमसौ विधृतौ तिष्ठतः० ॥” हे गार्गि ! उसी अक्षर परमात्मा की आज्ञा में सूर्य्य-चन्द्रमादि सब ब्रह्माण्ड स्थिर हैं और वही सबको धारण कर रहा है। इसी भाव को “तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्तात्० ॥” इस मन्त्र में भी प्रतिपादन किया है कि उसी परमात्मज्योति से सब ब्रह्माण्ड प्रकाशित होते हैं, अतएव सिद्ध है कि उषःकाल में उसी के उपासन से पुरुष सद्गति को प्राप्त हो सकता है, अन्यथा नहीं ॥३॥
विषय
सौभाग्यवती का लक्षण ।
भावार्थ
जिस प्रकार ( उषा ) उषा, प्रभात वेला की सूर्य की कान्ति ( रश्मिभिः व्यक्ता अदर्शि ) किरणों से विशेष प्रकाशित दिखाई देती है, चह ( चित्रामधा विश्वम् अनु प्रभूता ) समस्त विश्व में प्रकट होती, चित्र विचित्र वर्ण युक्त प्रकाशों से मानों पूज्य धन युक्त होती है । वह (सुभगा) उत्तम भद्रवर्ण युक्त होकर ( देवानां चक्षुः ) मनुष्यों की आंखों को ( श्वेतं वहन्ती ) श्वेत प्रकाश देती हुई, और ( सुदृशीकम् श्वेतं अश्वम् नयन्ती ) उत्तम दर्शनीय, श्वेत, व्यापक प्रकाशवान् सूर्य को प्राप्त कराती है उसी प्रकार ( उषा ) पति की कामना से युक्त नववधू, ( सु भगा ) उत्तम ऐश्वर्य से युक्त, सौभाग्यवती, ( देवानां ) विद्वान् पुरुषों के बीच ( चक्षुः ) सोम्य दृष्टि करती हुई और ( श्वेतम् ) शुद्ध चरित्रवान् ( सु-दृशीकम् ) उत्तम दर्शनीय, ( अश्वम् ) अश्ववत् सुदृढ़ शरीर वाले विद्यावेत्ता पुरुष के प्रति अपनी चक्षु को (नयन्ती) पहुंचाती हुई, उसे प्रेम से वरण करती हुई, ( चित्रा-मघा ) उत्तम नाना प्रकार के पूज्य धनों से युक्त और (रश्मिभिः व्यक्ता ) किरण-कान्तियों से सुशोभित, ( विश्वम् अनु प्रभूता ) सबके समक्ष प्रकट होकर ( अदर्शि ) दीखे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ उषा देवताः॥ छन्दः—१ त्रिष्टुप् । २, ३, ४, ५ निचृत्: त्रिष्टुप् । ६ विराट् त्रिष्टुप् ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
विषय
नव वधू
पदार्थ
पदार्थ- जैसे (उषा) = प्रभात की सूर्य - कान्ति (रश्मिभिः व्यक्ता अदर्शि) = किरणों से प्रकाशित दिखाई देती है, वह (चित्रामघा विश्वम् अनु प्रभूता) = विश्व में प्रकट चित्र-विचित्र-वर्णयुक्त प्रकाशों से मानो पूज्य धनयुक्त होती है। वह (सुभगा) = उत्तम भद्रवर्ण युक्त होकर (देवानां चक्षुः) = मनुष्यों की आँखों को (श्वेतं वहन्ती) = श्वेत प्रकाश देती और (सुदृशीकम् श्वेतं अश्वम् नयन्ती) = दर्शनीय, प्रकाशवान् सूर्य को प्राप्त कराती है वैसे ही (उषा) = पति - कामना से युक्त नववधू, (सु-भगा) = सौभाग्यवती, (देवानां) = विद्वान् पुरुषों के बीच (चक्षुः) = सौम्य दृष्टि करती हुई और (श्वेतम्) = शुद्ध चरित्रवान् (सुदृशीकम्) = उत्तम दर्शनीय, (अश्वम्) = अश्ववत् सुदृढ़ शरीरवाले पुरुष के प्रति अपनी (चक्षुः नयन्ती) = चक्षु को पहुँचाती हुई, प्रेम से वरण करती हुई, (चित्रा मघा) = नाना धनों से युक्त और (रश्मिभिः व्यक्ता) = कान्तियों से सुशोभित, (विश्वम् अनु प्रभूता) = सबके समक्ष प्रकट होकर (अदर्शि) = दीखे।
भावार्थ
भावार्थ-वधू बनने की इच्छुक कन्या अपनी विवेक शक्ति के द्वारा शुद्ध चरित्रवाले विद्वान्, बलवान्, कान्तियुक्त, सुदृढ़ शरीरवाले युवक को पति के रूप में वरण करे। जब लोगों के मध्य में आवे तो सौम्य दृष्टि रखे।
इंग्लिश (1)
Meaning
It is the eye of divinities, revealing and radiating the glory of divinity, bearing light and good fortune, leading the glorious sun like the white horse of the universal chariot of existence. Thus appears the dawn manifested in rays of light in wondrous majesty prevailing all over the world.
मराठी (1)
भावार्थ
जी दिव्यशक्ती सूर्य इत्यादी सर्व तेजांचे चक्षूरूप, सर्व प्रकाशक ज्योतींना प्रकाश देणारी, गतिशील, सूर्य, चंद्राला चालविणारी व सर्व जगाचा आश्रय असून, सर्वत्र विराजमान होत आहे. तीच दिव्यशक्ती संपूर्ण विश्वाचे अधिष्ठान आहे. ॥३॥
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