ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 77/ मन्त्र 4
अन्ति॑वामा दू॒रे अ॒मित्र॑मुच्छो॒र्वीं गव्यू॑ति॒मभ॑यं कृधी नः । या॒वय॒ द्वेष॒ आ भ॑रा॒ वसू॑नि चो॒दय॒ राधो॑ गृण॒ते म॑घोनि ॥
स्वर सहित पद पाठअन्ति॑ऽवामा । दू॒रे । अ॒मित्र॑म् । उ॒च्छ॒ । उ॒र्वीम् । गव्यू॑तिम् । अभ॑यम् । कृ॒धि॒ । नः॒ । य॒वय॑ । द्वेषः॑ । आ । भ॒र॒ । वसू॑नि । चो॒दय॑ । राधः॑ । गृ॒ण॒ते । म॒घो॒नि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अन्तिवामा दूरे अमित्रमुच्छोर्वीं गव्यूतिमभयं कृधी नः । यावय द्वेष आ भरा वसूनि चोदय राधो गृणते मघोनि ॥
स्वर रहित पद पाठअन्तिऽवामा । दूरे । अमित्रम् । उच्छ । उर्वीम् । गव्यूतिम् । अभयम् । कृधि । नः । यवय । द्वेषः । आ । भर । वसूनि । चोदय । राधः । गृणते । मघोनि ॥ ७.७७.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 77; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पूर्वाभिहितमैश्वर्यसम्पन्नपरमात्मानं स्वशत्रूनपनेतुं तथा सर्वविधमैश्वर्यं लब्धुं च प्रार्थयते।
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (अन्ति वामा) भवान् मामन्नैः पशुभिश्च समृद्धं कुरुतां (अमित्रम् दूरे उच्छ) मच्छत्रूंश्च अपनय (उर्वीम् गव्यूतिम्) मां विस्तृतभूम्यधिपतिं करोतु (नः)अस्मान् (अभयम् कृधि) निर्भीकान् कुरु (मघोनि) हे दिव्यशक्तिसम्पन्न भगवन् ! (गृणते) भवान् स्वाश्रितान् (राधः) ऐश्वर्याभिमुखं (चोदय) प्रेरयतु तथा च (यवय द्वेषः) अस्माकं द्वेषमपहत्य (वसूनि आभर) अखिलैर्धनैरस्मान् संवर्धयतु ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
अब उक्त ऐश्वर्य्यसम्पन्न परमात्मा से शत्रुनिवारण तथा सब प्रकार के ऐश्वर्य्यप्राप्ति की प्रार्थना कथन करते हैं।
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (अन्तिवामा) आप हमें अन्न तथा पशुओं से सम्पन्न करें अर्थात् प्रशस्तसमृद्धियुक्त करें। “वाम इति प्रशस्तनामसु पठितम्” निघण्टु ३।८॥ (अमित्रं दूरे उच्छ) हमारे शत्रुओं को हमसे दूर करें, (उर्वीं गव्यूतिम्) विस्तृत पृथ्वी का हमको अधिपति बनावें, (नः) हमको (अभयं कृधि) भयरहित करें, (मघोनि) हे दिव्यशक्तिसम्पन्न भगवन् ! (गृणते) आप अपने उपासकों को (राधः) ऐश्वर्य्य की ओर (चोदय) प्रेरित करें और (यवय द्वेषः) हमारे द्वेष दूर करके (वसूनि आ भर) सम्पूर्ण धनों से हमें परिपूर्ण करें ॥४॥
भावार्थ
हे सब धनों से परिपूर्ण तथा ऐश्वर्य्यसम्पन्न स्वामिन् ! आप हमें अन्न तथा गवादि पशुओं का स्वामी बनावें, आप हमें विस्तीर्ण भूमिपति बनावें, हमारे शत्रुओं को हमसे दूर करके सब संसार का हमें मित्र बनावें अर्थात् द्वेषबुद्धि को हमसे दूर करें, जिससे कोई भी हमसे शत्रुता न करे। अधिक क्या, आप उपासकों को शीलसम्पन्न करें, सब प्रकार का धन दें, जिससे हम लोग निरन्तर आपकी उपासना तथा आज्ञापालन में तत्पर रहें ॥४॥
विषय
स्त्री और राजशक्ति का वर्णन ।
भावार्थ
हे ( मधोनि ) ऐश्वर्य, धन की स्वामिनि राजशक्ते ! हे विदुषि ! तू ( अन्ति-वामा ) अपने समीप नाना प्रकार के भोग्य पदार्थों और उत्तम ऐश्वर्यों को रखती हुई ( अमित्रम् दूरे ) शत्रु को दूर करती हुई (उच्छ) अपने आप चमक । तू ( उर्वीं ) बड़ी भूमि और विशाल (गव्यूतिम्) मार्ग को ( नः ) हमारे लिये ( अभयं कृधि ) भय से रहित कर । ( द्वेषः यवय ) हमारे में से द्वेष भावों और द्वेष करने वालों को दूर कर । ( वसूनि आभर ) नाना ऐश्वर्य हमें प्राप्त करा, ( गृणते ) स्तुति, उपदेश करने वाले पुरुष को ( राधः चोदय ) ऐश्वर्य प्रदान कर । ( २ ) इसी प्रकार स्त्री भी, समीप रहकर भोगने योग्य, एवं नाना धन समीप रखने वाली होने से 'अन्तिवामा', ( अमित्रम् ) स्नेहरहित पुरुष से दूर रहे, संसार के बड़े भारी मार्ग को भयरहित करे, द्वेष को दूर करे, धनों का संग्रह करे, उपदेष्टा विद्वान् को धन प्रदान करे ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ उषा देवताः॥ छन्दः—१ त्रिष्टुप् । २, ३, ४, ५ निचृत्: त्रिष्टुप् । ६ विराट् त्रिष्टुप् ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
विषय
राजशक्ति
पदार्थ
पदार्थ- हे (मघोनि) = धन की स्वामिनि राजशक्ते! हे विदुषि! तू (अन्ति-वामा) = अपने समीप भोग्य पदार्थों और ऐश्वर्यों को रखती हुई (अमित्रम् दूरे) = शत्रु को दूर करती हुई उच्छ स्वयं चमक। तू (उर्वी) = बड़ी भूमि और विशाल (गव्यूतिम्) = मार्ग को (नः) = हमारे लिये (अभयं कृधि) = भयरहित कर। (द्वेषः यवय) = द्वेष-भावों और द्वेषियों को दूर कर (वसूनि आभर) = ऐश्वर्य प्राप्त करा, (गृणते) = उपदेष्टा पुरुष को (राधः चोदय) = ऐश्वर्य दे।
भावार्थ
भावार्थ- विदुषी स्त्री अपनी राजशक्ति के द्वारा प्रजाओं को समस्त भोग्य पदार्थ, सुरक्षा तथा भूमि व निवास सहित समस्त ऐश्वर्य प्रदान करके समाज से विषमता व वैर-भावों-झगड़ों को दूर करे।
इंग्लिश (1)
Meaning
O lady of light, O dawn of a new day, be close at hand with wealth and loveliness, let the unfriendly be far off, pray shine and illuminate the wide world, and let all our paths of progress be free from fear and violence. Ward off hate, jealousy and enmity, bring us the wealth, honour and excellence of life, and inspire and energise the power, prosperity and generosity of the celebrant, you who command the wealth, power and majesty of the world.
मराठी (1)
भावार्थ
हे सर्वधनसंपन्न व ऐश्वर्यसंपन्न स्वामी! तू आम्हाला अन्न व गायी इत्यादी पशूंचा स्वामी बनव. विस्तीर्ण भूमिपती बनव. आमच्या शत्रूंना आमच्यापासून दूर करून सर्व जग आमचे मित्र बनव. द्वेषबुद्धी दूर कर. त्यामुळे कोणीही शत्रुत्व पत्करणार नाही. उपासकांना शीलसंपन्न कर. सर्व प्रकारचे धन दे, त्यामुळे आम्ही सतत तुझी उपासना व आज्ञापालन करण्यात तत्पर राहू. ॥४॥
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