ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 14/ मन्त्र 11
ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ
देवता - इन्द्र:
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
त्वं हि स्तो॑म॒वर्ध॑न॒ इन्द्रास्यु॑क्थ॒वर्ध॑नः । स्तो॒तॄ॒णामु॒त भ॑द्र॒कृत् ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । हि । स्तो॒म॒ऽवर्ध॑नः । इन्द्र॑ । असि॑ । उ॒क्थ॒ऽवर्ध॑नः । स्तो॒तॄ॒णाम् । उ॒त । भ॒द्र॒ऽकृत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं हि स्तोमवर्धन इन्द्रास्युक्थवर्धनः । स्तोतॄणामुत भद्रकृत् ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । हि । स्तोमऽवर्धनः । इन्द्र । असि । उक्थऽवर्धनः । स्तोतॄणाम् । उत । भद्रऽकृत् ॥ ८.१४.११
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 14; मन्त्र » 11
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(इन्द्र) हे इन्द्र ! (त्वं, हि) त्वमेव (स्तोमवर्धनः) स्तुतिप्रसारकः (असि) भवसि (उक्थवर्धनः) शास्त्रीयवाचां वर्धकः त्वमेव (उत) अथ (स्तोतॄणाम्) सत्पथिनाम् (भद्रकृत्) कल्याणं त्वमेव करोषि ॥११॥
विषयः
महिम्नः स्तुतिं दर्शयति ।
पदार्थः
हे इन्द्र ! हि=यतः । त्वमेव । स्तोमवर्धनः=स्तोमान् स्तुतीर्वर्धयितुं शीलमस्यास्तीति स्तोमवर्धनः । पुनः । उक्थवर्धनोऽसि= उक्थानाम्=उक्तीनां वर्धकोऽसि । तवैव कृपया स्तावकानां स्तोमोक्थे प्रकाशेते । उत=अपि च । हे इन्द्र त्वमेव । स्तोतॄणाम्=स्तुतिपाठकानाम् । भद्रकृदसि=मङ्गलविधायकोऽसि । अतस्त्वमेव । सेव्योऽसीत्यर्थः ॥११ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(इन्द्र) हे योद्धा ! (त्वं, हि) आप ही (स्तोमवर्धनः) कीर्ति के बढ़ानेवाले (असि) हैं (उक्थवर्धनः) शास्त्रीय वाक् के बढ़ानेवाले आप ही हैं (उत) और (स्तोतॄणाम्) आपकी आज्ञानुसार चलनेवाले सदाचारियों के (भद्रकृत्) कल्याणकर्ता आप हैं ॥११॥
भावार्थ
राजा अपने प्रजाहितकारक सद्गुणों से प्रजा को ऐसा अनुरक्त करे कि वह अन्य राजाओं की अपेक्षा अपने राजा को ही सर्वोत्तम समझे और राजा वैदिक मार्गों का निर्विघ्न प्रसार करे, जिससे प्रजा उसकी अनुयायिनी बनकर उचित सुख का अनुभव कर सके अर्थात् अपने कर्मकाण्ड तथा धर्म में उन्नत होती हुई प्रजा के मार्गों में कोई रुकावट तथा बाधा राजा न करे, जिससे अपने धर्म में दृढ़ हुई प्रजा राष्ट्र का शुभचिन्तन करती हुई सुखी रहे ॥११॥
विषय
महिमा की स्तुति दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(इन्द्र) हे इन्द्र ! (हि) जिस कारण (त्वम्) तू ही (स्तोमवर्धनः) स्तुतियों का वर्धक हो । तथा (उक्थवर्धनः+असि) तू ही उक्तियों का वर्धक हो । (उत) और (स्तोतॄणाम्) स्तुतिपाठकों का (भद्रकृत्) तू कल्याणकर्त्ता हो ॥११ ॥
भावार्थ
उसी की कृपा से भक्तों की स्तुतिशक्ति, भाषण चातुर्य्य और कल्याण होता है, यह जानकर वही स्तुत्य और पूज्य है, यह शिक्षा इससे देते हैं ॥११ ॥
विषय
मङ्गलकारी प्रभु।
भावार्थ
हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ( त्वं ) तू ( स्तोतृणाम् ) स्तुति-कर्त्ता जनों के ( हि ) अवश्य ( स्तोम-वर्धनः ) स्तुति समूह को बढ़ाने वाला और ( उक्थ-वर्धनः ) उत्तम वचन को बढ़ाने वाला ( उत ) और ( भद्रकृत् ) उनका कल्याण करने वाला है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ ऋषी॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ११ विराड् गायत्री। २, ४, ५, ७, १५ निचृद्गायत्री। ३, ६, ८—१०, १२—१४ गायत्री॥ पञ्चदशं सूक्तम्॥
विषय
स्तोतॄणां भद्रकृत्
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = प्रभो! (त्वं हि) = आप ही (स्तोमवर्धनः असि) = हमारे स्तुति समूह का वर्धन करनेवाले हैं। आप ही (उक्थवर्धनः) = ऊँचे से गायन के योग्य उत्तम वचनों के बढ़ानेवाले हैं। [२] (उत) = और (स्तोतृणाम्) = इन स्तोताओं के (भद्रकृत्) = कल्याण को करनेवाले हैं। प्रभु का स्तोता प्रभु के गुणों को अपने अन्दर धारण करने की प्रेरणा को प्राप्त करता हुआ कल्याम का भागी होता है।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु के स्तोता बनें। यही कल्याण का मार्ग है।
इंग्लिश (1)
Meaning
By you the songs of praise and adoration thrive and exalt, by you the songs of celebration and prayer vibrate and fructify. Indeed, you do all the good to the celebrants.
मराठी (1)
भावार्थ
त्याच्या कृपेने भक्तांची स्तुतीशक्ती, भाषणचातुर्य व कल्याण होते हे जाणून तोच (ईश्वर) स्तुत्य व पूज्य आहे ही शिकवण मिळते. ॥११॥
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