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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 53/ मन्त्र 7
    ऋषिः - मेध्यः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्बृहती स्वरः - मध्यमः

    यस्ते॒ साधि॒ष्ठोऽव॑से॒ ते स्या॑म॒ भरे॑षु ते । व॒यं होत्रा॑भिरु॒त दे॒वहू॑तिभिः सस॒वांसो॑ मनामहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । ते॒ । साधि॑ष्ठः । अव॑से । ते । स्या॒म॒ । भरे॑षु । ते॒ । व॒यम् । होत्रा॑भिः । उ॒त । दे॒वहू॑तिऽभिः । स॒स॒ऽवांसः॑ । म॒ना॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्ते साधिष्ठोऽवसे ते स्याम भरेषु ते । वयं होत्राभिरुत देवहूतिभिः ससवांसो मनामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः । ते । साधिष्ठः । अवसे । ते । स्याम । भरेषु । ते । वयम् । होत्राभिः । उत । देवहूतिऽभिः । ससऽवांसः । मनामहे ॥ ८.५३.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 53; मन्त्र » 7
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Whoever is the most efficient and eligible for your love and protection, we pray, the same we may be to achieve in your divine projects and obligations. Seekers of honour and excellence, with all our invocations, homage and service to the divinities, we adore you and pray for protection and advancement.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    साधकाने हा संकल्प केला पाहिजे की, तो परमेश्वरासंबंधी आपले कर्तव्य निभावण्यात सर्वात उपयुक्त ठरावा. परमेश्वराच्या गुणांचे स्तवन त्याने आपल्या वाणीने विद्वानांद्वारे निर्दिष्ट शब्दात करावे. ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे प्रभु! (ते) आपके (भरेषु) दायित्वों के प्रति, (ते) आपकी (अवसे) प्रसन्नता या सन्तोष के प्रयोजनानुसार (यः) जो (ते) आप की दृष्टि में (साधिष्ठः) सर्वाधिक उपयुक्त सिद्ध हो उसे उतने ही उपयुक्त हम (स्याम) हों। (ससवांसः) ऐश्वर्यप्राप्ति की इच्छा रखने वाले (वयम्) हम (होत्राभिः) वाणियों के द्वारा (उत) और (देवहूतिभिः) विद्वानों के आह्वान द्वारा (मनामहे) आपका मनन करें॥७॥

    भावार्थ

    साधक के लिये यह संकल्प धारण करना आवश्यक है कि वह परमेश्वर के प्रति अपना कर्तव्य निभाने वालों में सबसे उपयुक्त सिद्ध हो। भगवद् गुणों का स्तवन वह स्ववाणी से विद्वानों द्वारा निर्दिष्ट शब्दों में करे॥७॥

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    विषय

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    भावार्थ

    ( यः ) जो ( ते ) तेरी ( साधिष्ठः ) सबसे उत्तम साधना करने वाला है वह ( अवसे ) हमारी रक्षा करने वाला हो। हम (भरेषु ) यज्ञों में भी (ते स्याम) तेरे ही होकर रहें। (वयं) हम लोग ( देव-हूतिभिः ) विद्वान् पुरुषों द्वारा स्वीकृत ( होत्राभिः ) वाणियों और यज्ञ सत्क्रियाओं द्वारा ( ससवांसः ) तेरी स्तुति करते हुए ही ( मनामहे ) तेरा चिन्तन उपासना किया करें।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मेध्यः काण्व ऋषिः॥ छन्दः—१, ५, ७ विराड बृहती। ३ आर्ची स्वराड् बृहती। २, ४, ६ निचृत् पंक्ति:। ८ विराट् पंक्तिः॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    साधिष्ठः

    पदार्थ

    [१] (यः) = जो (ते) = तेरा होता है वह (साधिष्ठः) = अतिशयेन सिद्धि को प्राप्त होनेवाला होता है। वह (ते) = आपके अवसे रक्षण के लिए होता है। हम (भरेषु) = संग्रामों में (ते स्याम) = आपके हों। आपके द्वारा ही तो हमने संग्रामों में विजय प्राप्त करनी है। [२] (वयं) = हम (होत्राभिः) = यज्ञों के द्वारा त्यागपूर्वक अदन के द्वारा (उत) = और (देवहूतिभिः) = दिव्यगुणों को पुकारने के द्वारा (ससवांस:) = आपका संभजन करते हुए (मनामहे) = आपका मनन करते हैं- आपका चिन्तन करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु का उपासक सिद्धि को प्राप्त करता है, सुरक्षित होता हुआ संग्राम में विजयी बनता है। अग्निहोत्र व दिव्यगुणों की साधना ही प्रभु का संभजन है। इस संभजन को करते हुए हम प्रभु का चिन्तन करें।

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