Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 75 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 75/ मन्त्र 11
    ऋषिः - विरुपः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    कु॒वित्सु नो॒ गवि॑ष्ट॒येऽग्ने॑ सं॒वेषि॑षो र॒यिम् । उरु॑कृदु॒रु ण॑स्कृधि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कु॒वित् । सु । नः॒ । गोऽइ॑ष्टये । अग्ने॑ । स॒म्ऽवेषि॑षः । र॒यिम् । उरु॑ऽकृत् । उ॒रु । नः॒ । कृ॒धि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कुवित्सु नो गविष्टयेऽग्ने संवेषिषो रयिम् । उरुकृदुरु णस्कृधि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कुवित् । सु । नः । गोऽइष्टये । अग्ने । सम्ऽवेषिषः । रयिम् । उरुऽकृत् । उरु । नः । कृधि ॥ ८.७५.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 75; मन्त्र » 11
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, refulgent lord, give us ample and high quality wealth for the development and expansion of our lands and cows, and let us too vastly expand and highly rise in life.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    आम्ही माणसांनी गाई इत्यादी पशूंचे पालन करून त्यांचे दूध, घृत इत्यादीने यज्ञकर्म करून लोकांवर उपकार करावा. ॥११॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे अग्ने ! गविष्टये=गोप्रभृतिपशूनां प्राप्तये । नः=अस्मान् । कुवित्=बहु । रयिम्=सम्पत्तिम् । सु+संवेषिषः=प्रापय । हे भगवन् ! त्वं उरुकृदसि । नः=अस्माकं सर्वं वस्तु । उरु=महत् । कृधि=कुरु ॥११ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    (अग्ने) हे जगदाधार ! तू (गविष्टये) गौ आदि पशुओं की प्राप्ति के लिये (कुवित्) बहुत (रयिम्) सम्पत्ति (नः) हम लोगों को (सुसंवेषिषः) दीजिये । हे भगवन् ! तू (उरुकृत्) बहुत करनेवाला है, इसलिये (नः) हम लोगों की सब वस्तु को (उरु) बहुत (कृधि) कर ॥११ ॥

    भावार्थ

    हम मनुष्य गौ आदि पशुओं को पाल कर उसके दुग्ध घृत आदि से यज्ञकर्म करके लोकोपकार करें ॥११ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उस से धन-सम्पदा की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) तेजस्विन् ! तू ( नः ) हमें ( गविष्टये ) भूमियों को प्राप्त करने के लिये ( कुवित् रयिम् ) बहुत साधन ( सं वेषिषः ) प्राप्त कर। तू (उरुकृत्) बहुत धन को उत्पन्न करने वाला है। तू (नः उरु कृधि ) हमारे धन और प्राप्तव्य फल को बहुत कर, उसे बढ़ा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विरूप ऋषि:॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः—१, ४, ५, ७,९,११ निचृद् गायत्री। २, ३, १५ विराड् गायत्री । ८ आर्ची स्वराड् गायत्री। षोडशर्चं सूक्तम॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    गविष्टये

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = परमात्मन्! आप (नः) = हमारे लिए (गविष्टये) = गौओं के ज्ञानवाणियों के (एषण) = [प्राप्ति] के निमित्त (कुवित्) = खूब ही (रयिं) = धन को (सु) = अच्छी प्रकार (संवेषिणः) = प्राप्त कराइये। प्रभु हमें धन दें। हम उस धन का विनियोग ज्ञान के साधनों को जुटाने में करें। धन भोग साधनों को जुटाने में ही व्ययित न हो। [२] हे प्रभो ! आप (उरुकृतः) = खूब ही धनों को करनेवाले हैं। (नः) = हमारे लिए (उरुकृधि) = खूब ही धन को करिये। आपकी कृपा से हम खूब धन को प्राप्त कर सकें।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु हमारे लिए खूब ही धन को प्राप्त करायें। यह धन ज्ञान प्राप्ति के साधनों को जुटाने में व्ययित हो ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top