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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 81 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 81/ मन्त्र 9
    ऋषिः - कुसीदी काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    स॒द्यो॒जुव॑स्ते॒ वाजा॑ अ॒स्मभ्यं॑ वि॒श्वश्च॑न्द्राः । वशै॑श्च म॒क्षू ज॑रन्ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒द्यः॒ऽजुवः॑ । ते॒ । वाजाः॑ । अ॒स्मभ्य॑म् । वि॒श्वऽच॑न्द्राः । वशैः॑ । च॒ । म॒क्षु । ज॒र॒न्ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सद्योजुवस्ते वाजा अस्मभ्यं विश्वश्चन्द्राः । वशैश्च मक्षू जरन्ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सद्यःऽजुवः । ते । वाजाः । अस्मभ्यम् । विश्वऽचन्द्राः । वशैः । च । मक्षु । जरन्ते ॥ ८.८१.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 81; मन्त्र » 9
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 38; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Your wealth, honours and victories instantly rising, constantly moving and effective are all radiant over the world, they come to us without delay according to your will and order and celebrate and glorify you.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ईश्वराने आम्हाला असे धन द्यावे की ज्याद्वारे जगावर उपकार होऊन आनंद प्राप्त व्हावा. ॥९॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे इन्द्र ! सद्योजुवः=सर्वोपकारिणः । विश्वश्चन्द्राः= सर्वानन्दप्रदाः । वाजाः=अन्यानि अस्मभ्यम् । ते=त्वया दातव्याः । यतः । वशैश्च=विविधैः कामैर्युक्ता वयम् । मक्षू=शीघ्रम् । त्वां जरन्ते=स्तुवन्ति ॥९ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    हे भगवन् ! (सद्योजुवः) तत्काल उपकारी (विश्वश्चन्द्राः) सबों के आनन्दप्रद (वाजाः) धन (अस्मभ्यं) हम लोगों को (ते) तू दे क्योंकि (वशैः+च) विविध कामनाओं से युक्त होकर ये मनुष्यगण (मक्षू) शीघ्रता के साथ (जरन्ते) स्तुति करते हैं ॥९ ॥

    भावार्थ

    ईश्वर हम लोगों को वह धन दे, जिससे जगत् में उपकार आनन्द हो ॥९ ॥

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    विषय

    सर्व मनोरथ पूरक प्रभु।

    भावार्थ

    हे ऐश्वर्यवन् ! स्वामिन् ! ( ते वाजाः ) तेरे ऐश्वर्य, ( विश्वचन्द्राः ) सब संसार को आह्लादित करने वाले हैं। वे ( अस्मभ्यं सद्योजुवः ) हमें शीघ्र ही प्राप्त हों। सब लोग ( वशैः च मक्षु जरन्ते ) नाना कामनाओं से प्रेरित होकर तेरी स्तुति करते हैं। इत्यष्टात्रिंशो वर्गः॥ इति पञ्चमोऽध्यायः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कुसीदी काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः—१, ५, ८ गायत्री। २, ३, ६, ७ निचृद गायत्री। ४, ९ त्रिराड् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    आह्लादक बल

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो! (ते वाजाः) = आप के बल (अस्मभ्यं सद्योजुवः) = शीघ्र ही हमें सन्मार्ग पर प्रेरित करनेवाले होते हैं (विश्वश्चन्द्राः) = ये बल सब के लिये आह्लाद का कारण बनते हैं। [२] ये बल (वशैः) = शत्रुओं को वशीभूत करने के हेतुओं से (मक्षू) = शीघ्र ही (जरन्ते) = आपका स्तवन करते हैं। आपका स्तवन करते हुए हम बलों के द्वारा शत्रुओं को अभिभूत करनेवाले हों।

    भावार्थ

    भावार्थ-प्रभु के बल हमें सत्कर्त्तव्यों में प्रेरित करें ये सब के लिये आह्लादक हों और शत्रुओं को अभिभूत करनेवाले हों। कुसीदी काण्व ही प्रभु से प्रार्थना करता है-

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