ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 29/ मन्त्र 6
एन्दो॒ पार्थि॑वं र॒यिं दि॒व्यं प॑वस्व॒ धार॑या । द्यु॒मन्तं॒ शुष्म॒मा भ॑र ॥
स्वर सहित पद पाठआ । इ॒न्दो॒ इति॑ । पार्थि॑वम् । र॒यिम् । दि॒व्यम् । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । द्यु॒ऽमन्त॑म् । शुष्म॑म् । आ । भ॒र॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एन्दो पार्थिवं रयिं दिव्यं पवस्व धारया । द्युमन्तं शुष्ममा भर ॥
स्वर रहित पद पाठआ । इन्दो इति । पार्थिवम् । रयिम् । दिव्यम् । पवस्व । धारया । द्युऽमन्तम् । शुष्मम् । आ । भर ॥ ९.२९.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 29; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 6
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दो) हे ऐश्वर्यशालिन् परमात्मन् ! भवान् (दिव्यम् पार्थिवम् रयिम्) अस्मान् दिव्यपार्थिवैश्वर्याणां (धारया पवस्व) धारया पुनातु (द्युमन्तम् शुष्मम्) दिव्यं बलं च (आभर) देहि ! ॥६॥ इत्येकोनत्रिंशत्तमं सूक्तमेकोनविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दो) हे ऐश्वर्यशालिपरमात्मन् ! (दिव्यम् पार्थिवम् रयिम्) आप हमको द्युलोकसम्बन्धी तथा पृथ्वीसम्बन्धी ऐश्वर्य की (धारया पवस्व) धारा से पवित्र करिये और ((द्युमन्तम्) दिव्यबल को (आभर) ) दीजिये ॥६॥
भावार्थ
जो पुरुष उक्त प्रकार के अवगुणों से रहित होते हैं, उनको परमात्मा द्युलोक पृथिवीलोक के ऐश्वर्यों से भरपूर करता है ॥६॥ यह २९ वाँ सूक्त और १९ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
घुमान् शुष्म
पदार्थ
[१] (इन्दो) = हे सोम ! तू (पार्थिवं रयिम्) = इस शरीर रूप पृथिवी के दृढ़ता व शक्ति रूप धन को (आपवस्व) = हमें सर्वथा प्राप्त करा । इसी प्रकार (दिव्यं) [रयिं] = मस्तिष्क रूप द्युलोक के ज्ञानरूप धन को भी (धारया) = अपनी धारक शक्ति से हमारे लिये प्राप्त करा । [२] इस प्रकार (घुमन्त) = प्रशस्त ज्ञान की ज्योतिवाले (शुष्मम्) = शत्रु-शोषक बल को (आभर) = तू हमारे लिये प्राप्त करानेवाला हो । सोमरक्षण से हमारे में 'ब्रह्म व क्षत्र' दोनों का विकास हो ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें दृढ़ शरीर व दीप्त मस्तिष्क बनाता हैं । दृढ़ शरीर व दीप्त मस्तिष्क बनकर यह सब शत्रुओं का भेदन करनेवाला 'भिन्दु' होता हुआ 'बिन्दु' कहलाता है । सोम का रक्षक होने से भी यह सोम का पुतला 'बिन्दु' नामवाला ही हो जाती है [बिन्दुः सोम 'मरणं बिन्दुपातेन जीवनं बिन्दुधारणात् '] । यह कहता है-
विषय
ऐश्वर्य शक्ति आदि की प्रार्थना। पक्षान्तर में तीव्र रसों से विद्युत्, यांत्रिक बलों को उत्पन्न करने आदि विज्ञान का संकेत।
भावार्थ
हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! तू (पार्थिवं) पृथिवी के और (दिव्यं) तेजोयुक्त अग्नि, सूर्यादि के (रयिं) ऐश्वर्य को भी (धारया) वाणी वा धारणा द्वारा (पवस्व) दे वा सञ्चालित कर। तू (द्युमन्तं शुष्मम्) तेज से युक्त बल भी प्रदान कर। यहां सोम नामक तीव्र रस से दिव्य रयि, विद्युत् और तेजोयुक्त बल, यान्त्रिक बल प्राप्त करने का भी संकेत है। इत्येकोनविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नृमेध ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १ विराड् गायत्री। २–४, ६ निचृद् गायत्री। ५ गायत्री॥ षडृर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, blissful as the moon and generous as showers of rain, pure and purifying, flow forth, sanctify us and bring us streams of wealth, honour and excellence of the earth and heaven, bear and bring us divine strength, forbearance and fortitude of a high order of freedom and progress.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या पुरुषांमध्ये वरील अवगुण नसतात त्यांना परमात्मा द्युलोक, पृथ्वीलोकाचे भरपूर ऐश्वर्य देतो. ॥६॥
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