ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 39/ मन्त्र 3
सु॒त ए॑ति प॒वित्र॒ आ त्विषिं॒ दधा॑न॒ ओज॑सा । वि॒चक्षा॑णो विरो॒चय॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठसु॒तः । ए॒ति॒ । प॒वित्रे॑ । आ । त्विषि॑म् । दधा॑नः । ओज॑सा । वि॒ऽचक्षा॑णः । वि॒ऽरो॒चय॑न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सुत एति पवित्र आ त्विषिं दधान ओजसा । विचक्षाणो विरोचयन् ॥
स्वर रहित पद पाठसुतः । एति । पवित्रे । आ । त्विषिम् । दधानः । ओजसा । विऽचक्षाणः । विऽरोचयन् ॥ ९.३९.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 39; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(विरोचयन्) सर्वं वस्तु प्रकाशयन् (विचक्षाणः) अखिलब्रह्माण्डस्य द्रष्टा (सुतः) स स्वयम्भूः परमात्मा (ओजसा त्विषिम् दधानः) स्वप्रतापेन ज्ञानं धारयन् (पवित्रे एति) विदुषां पवित्रेऽन्तःकरणे विराजितो भवति ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(विरोचयन्) सब प्रकाशित वस्तुओं को प्रकाशमान करता हुआ (विचक्षाणः) और अखिल ब्रह्माण्ड का द्रष्टा (सुतः) वह स्वयम्भू परमात्मा (ओजसा त्विषिम् दधानः) अपने प्रताप से ज्ञान को धारण कराता हुआ (पवित्रे एति) विद्वानों के पवित्र अन्तः-करण प्राप्त होता है ॥३॥
भावार्थ
यद्यपि परमात्मा सर्वव्यापक है, तथापि उसका स्थान विद्वानों के हृदय को इसलिये वर्णन किया गया है कि विद्वान् लोग अपने हृदय को उसके ज्ञान का पात्र बनाते हैं ॥३॥
विषय
विचक्षाणः विरोचयन्
पदार्थ
[१] (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ सोम (पवित्रे) = पवित्र हृदयवाले पुरुष में एति प्राप्त होता है । हृदय की पवित्रता के होने पर ही यह शरीर में स्थित होता है। यह (ओजसा) = ओजस्विता के साथ (त्विषिम्) = ज्ञान की दीप्ति को (आदधानः) = धारण करता हुआ होता है। 'शरीर में ओजस्विता व मस्तिष्क में ज्ञानदीप्ति' ये दोनों ही सोमरक्षण के मुख्य लाभ हैं । [२] मस्तिष्क को यह सोम (विचक्षाण:) = विशिष्ट ज्ञान दर्शनवाला बनाता है तथा (विरोचयन्) = शरीर को यह ओजस्विता से दीत करता है । सोमरक्षण से सूक्ष्म बनी हुई बुद्धि तत्त्व का दर्शन करनेवाली होती है और शरीर को यह सोमरक्षण ओजस्वी व दीस बनाता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से हम 'ब्रह्म व क्षत्र' का पोषण कर पाते हैं।
विषय
परमधाम प्राप्ति, ज्ञान प्राप्ति
भावार्थ
(ओजसा) बल पराक्रम से (त्विषिं आ दधानः) कान्ति को धारण करता हुआ, (विचक्षाणः) विविध ज्ञानों का साक्षात् करता हुआ, (सुतः) स्वच्छ, परिष्कृत होकर (विरोचयन्) विशेष दीप्ति से चमकता हुआ, (पवित्रे) परम पवित्र धाम को (एति) प्राप्त होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बृहन्मतिर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ४, ६ निचृद् गायत्री। २, ३, ५ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, universal watchful guardian and light giver of the world, discovered and realised in the self, wearing its celestial light and lustre, manifests and shines in the pure soul of the devotee.
मराठी (1)
भावार्थ
जरी परमात्मा सर्वव्यापक आहे तरीही त्याचे स्थान विद्वानांचे हृदय आहे, कारण विद्वान लोक आपल्या हृदयाला त्याच्या ज्ञानाचे पात्र बनवितात. ॥३॥
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