ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 39/ मन्त्र 5
आ॒विवा॑सन्परा॒वतो॒ अथो॑ अर्वा॒वत॑: सु॒तः । इन्द्रा॑य सिच्यते॒ मधु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒ऽविवा॑सन् । प॒रा॒ऽवतः॑ । अथो॒ इति॑ । अ॒र्वा॒ऽवतः॑ । सु॒तः । इन्द्रा॑य । सि॒च्य॒ते॒ । मधु॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आविवासन्परावतो अथो अर्वावत: सुतः । इन्द्राय सिच्यते मधु ॥
स्वर रहित पद पाठआऽविवासन् । पराऽवतः । अथो इति । अर्वाऽवतः । सुतः । इन्द्राय । सिच्यते । मधु ॥ ९.३९.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 39; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सुतः) स स्वयम्भूः परमात्मा (परावतः) दूरस्थान् (अथो अर्वावतः) अथ च समीपस्थान् पदार्थान् (आविवासन्) सुष्ठु प्रकाशयन् (इन्द्राय सिच्यते मधु) जीवात्मने आनन्दं वर्षति ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सुतः) वह स्वयम्भू परमात्मा (परावतः) दूरस्थ (अथो अर्वावतः) और समीपस्थ वस्तुओं को (आविवासन्) भली प्रकार प्रकाशित करता हुआ (इन्द्राय सिच्यते मधु) जीवात्मा के लिये आनन्दवृष्टि करता है ॥५॥
भावार्थ
जीवात्मा के लिये आनन्द का स्रोत एकमात्र वही परमात्मा है ॥५॥
विषय
मधु सेचन
पदार्थ
[१] (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ यह सोम (परावतः) = दूरदेश से (अथ उ) = और निश्चय से (अर्वावतः) = समीप देश से (आविवासन्) = अन्धकार को दूर करनेवाला होता है [विवासयति vanishes]। समीप देश से अन्धकार को दूर करने का भाव 'प्रकृति-विषयक अज्ञान को दूर करना' है तथा दूरदेश से अन्धकार को दूर करने का भाव 'आत्मविषयक अज्ञान को दूर करना' है। इस प्रकार सुरक्षित हुआ हुआ सोम हमें 'अपरा व परा' दोनों ही विद्याओं को प्राप्त कराता है। [२] यह सोम (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (मधु सिच्यते) = जीवन को अत्यन्त मधुर बनानेवाला होकर सिक्त होता है। शरीर में सुरक्षित होने पर यह सोम हमें अत्यन्त मधुर जीवनवाला बनाता है ।
भावार्थ
भावार्थ - जितेन्द्रिय पुरुष सोमरक्षण के द्वारा [क] अपरा विद्या [प्रकृति विद्या] को प्राप्त करता है, [ख] परा विद्या को प्राप्त करता है, आत्मदर्शन करता है, [ग] जीवन को मधुर बना पाता है।
विषय
उपासित प्रभु का उपास्य के हृदय में आविर्भाव।
भावार्थ
यह (सुतः) उपासित होकर (परावतः अथो अर्वावतः) दूर और पास सब स्थानों से (आविवासन्) प्रकट होता हुआ (इन्द्राय) जीव के लिये (मधु सिच्यते) मधु के समान उसके हृदय में सिक्त हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बृहन्मतिर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ४, ६ निचृद् गायत्री। २, ३, ५ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Self-manifested, illuminating the soul from far as well as from near, it rains showers of honey sweets of divine ecstasy for the soul.
मराठी (1)
भावार्थ
जीवात्म्यासाठी आनंदाचा स्रोत एकमेव तोच परमात्मा आहे. ॥५॥
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