ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 39/ मन्त्र 4
अ॒यं स यो दि॒वस्परि॑ रघु॒यामा॑ प॒वित्र॒ आ । सिन्धो॑रू॒र्मा व्यक्ष॑रत् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । सः । यः । दि॒वः । परि॑ । र॒घु॒ऽयामा॑ । प॒वित्रे॑ । आ । सिन्धोः॑ । ऊ॒र्मा । वि । अक्ष॑रत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं स यो दिवस्परि रघुयामा पवित्र आ । सिन्धोरूर्मा व्यक्षरत् ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । सः । यः । दिवः । परि । रघुऽयामा । पवित्रे । आ । सिन्धोः । ऊर्मा । वि । अक्षरत् ॥ ९.३९.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 39; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अयम् सः) अयं स परमात्मास्ति (यः दिवस्परि) द्युलोकादप्यूर्ध्वभागे वर्तमानः (रघुयामा) शीघ्रगामी (पवित्रे आ) ज्ञानयोगिनामन्तःकरणे निवासी (सिन्धोः ऊर्मा व्यक्षरत्) स्यन्दनशीलनद्यादिषु स्यन्दनशक्तिं जनयति ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अयम् सः) यह वह परमात्मा है (यः) जो कि (दिवस्परि) अन्तरिक्ष के भी ऊर्ध्वभाग में वर्तमान है (रघुयामा) और शीघ्र प्रगतिवाला है (पवित्रे आ) और ज्ञानयोगियों के पवित्र अन्तःकरण में निवास करता है तथा (सिन्धोः ऊर्मा व्यक्षरत्) जो स्यन्दन शक्ति उत्पन्न करता है ॥४॥
भावार्थ
उसी परमात्मा की अद्भुत शक्ति और सत्ता से सूर्यचन्द्रमादिकों का परिभ्रमण और नदियों का प्रवहन इत्यादि सम्पूर्ण गतियें उत्पन्न होती हैं ॥४॥
विषय
द्युक से भी परे
पदार्थ
[१] (अयम्) = यह (सः) = वह सोम (यः) = जो कि (दिवः परि) = द्युलोक के भी (परे रघुयामा) = शीघ्र गमनवाला होता है, वह (पवित्रे) = पवित्र हृदयवाले पुरुष में (आ वि अक्षरत्) = संचलनवाला होता है । सोम शरीर में सुरक्षित होने पर हमें पृथिवी पृष्ठ से अन्तरिक्ष में, अन्तरिक्ष से द्युलोक में, द्युलोक से भी परे स्वर्लोक में ले जानेवाला होता है। [२] यह सोम हमें (सिन्धोः ऊर्मा) = ज्ञान-समुद्र की तरंगों में ले चलनेवाला होता है, सुरक्षित सोम बुद्धि को सूक्ष्म बनाता है। इस सूक्ष्म बुद्धि से ज्ञानजल का सिन्धु प्रवाहित होता है। हम इस सिन्धु की तरंगों में तैरनेवाले बनते हैं। यह ज्ञान ही तो हमें द्युलोक से भी ऊपर ब्रह्मलोक में पहुँचाता है।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें द्युलोक से ऊपर स्वर्लोक में ले चलता है। यह हमें ज्ञान - समुद्र की तरंगों में तरानेवाला होता है।
विषय
जीव की प्रभु में निमग्नता।
भावार्थ
(अयं सः) यह वह परम तत्व है (यः) जो (दिवः परि) सूर्य से ऊपर वा समस्त कामनाओं से ऊपर (रघुयामा) लघु, प्रशस्त यम-नियमों का विधाता (सिन्धोः ऊर्मा) समुद्र की तरंग के समान (पवित्रे) परम पावन प्रभु में (वि अक्षरत्) विश रूप से बह रहा है और निरन्तर उसी में मग्न होता जा रहा है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बृहन्मतिर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ४, ६ निचृद् गायत्री। २, ३, ५ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This Soma is the spirit of joy which, at instant and universal speed, descends and manifests in the devotee’s pure soul from the light of divinity and stimulates oceanic waves of ecstasy to roll in the heart.
मराठी (1)
भावार्थ
त्याच परमात्म्याच्या अद्भुत शक्ती व सत्तेने सूर्य-चंद्र इत्यादींचे परिभ्रमण व नद्यांचे प्रवहन इत्यादी संपूर्ण गती उत्पन्न होतात. ॥४॥
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