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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 43/ मन्त्र 6
    ऋषिः - मेध्यातिथिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    पव॑स्व॒ वाज॑सातये॒ विप्र॑स्य गृण॒तो वृ॒धे । सोम॒ रास्व॑ सु॒वीर्य॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पव॑स्व । वाज॑ऽसातये । विप्र॑स्य । गृ॒ण॒तः । वृ॒धे । सोम॑ । रास्व॑ । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवस्व वाजसातये विप्रस्य गृणतो वृधे । सोम रास्व सुवीर्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पवस्व । वाजऽसातये । विप्रस्य । गृणतः । वृधे । सोम । रास्व । सुऽवीर्यम् ॥ ९.४३.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 43; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 33; मन्त्र » 6
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे परमात्मन् ! (वाजसातये) अन्नाद्यैश्वर्यलाभाय (वृधे) अभ्युदयाय च (गृणतः विप्रस्य पवस्व) भवन्तं स्तुवतः कर्मयोगिनो विदुषः पवित्रयित्वा योग्यान् विधाय (सुवीर्यम् रास्व) तेभ्यः शत्रुभ्योऽलं पराक्रमं देहि ॥६॥ इति श्रीमदार्यमुनिनोपनिबद्धे ऋक्संहिताभाष्ये षष्ठाष्टकेऽष्टमोध्यायः समाप्तः ॥ समाप्तं चेदं षष्ठाष्टकम् ॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे परमात्मन् ! (वाजसातये) अन्नादि ऐश्वर्य प्राप्ति के लिये और (वृधे) अभ्युन्नति के लिये (गृणतः विप्रस्य पवस्व) आपकी स्तुति करनेवाले जो कर्मयोगी विद्वान् हैं, उनको पवित्र करके योग्य बनाइये और (सुवीर्यम् रास्व) उनके शत्रुओं को दमन करने के लिये पर्याप्त पराक्रम को दीजिये ॥६॥

    भावार्थ

    कर्मयोगी पुरुष, जो अपने उद्योग से सदैव अभ्युदयाभिलाषी रहते हैं, उनको परमात्मा अनन्त प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करता है ॥६॥

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    विषय

    विप्र का वर्धक

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते! तू (गृणतः) = स्तुति करते हुए (विप्रस्य) = अपना विशेषरूप से पूरण करनेवाले ज्ञानी पुरुष के (वाजसातये) = शक्ति को प्राप्त कराने के लिये तथा (वृधे) = वृद्धि के लिये पवस्व प्राप्त हो । शरीर में सुरक्षित वीर्य शक्ति को प्राप्त कराता है और सब प्रकार की उन्नतियों का कारण बनता है । [२] हे सोम ! तू (सुवीर्यम्) = उत्तम वीर्यशक्ति को (रास्व) = दे। उस शक्ति को दे जिससे कि हम सब रोगों को कम्पित करके नष्ट करनेवाले हों [वि ईरयति ] । वर्धन करता है। हमारे रोगों को

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमें शक्ति को प्राप्त कराता है। यह हमारा कम्पित करके यह दूर करनेवाला होता है। शक्ति को प्राप्त कराके यह सोम हमें 'अयास्य' न थकनेवाला बनाता है। यह 'अयास्य' कहता है-

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    विषय

    उससे सुखों और बलों की याचना।

    भावार्थ

    हे सोम ऐश्वर्यवन् ! तू (गृणतः विप्रस्य) स्तुति करने वाले विद्वान् जन को (वाज-सातये) ऐश्वर्य देने और उसकी (वृधे) वृद्धि के लिये (पवस्व) प्राप्त हो उस पर सुखों की वर्षा कर और (सु-वीर्यम् रास्व) उत्तम बल दे। इति त्रयस्त्रिंशो वर्गः। इत्यष्टमोऽध्यायः॥ इति षष्ठोऽकः समाप्तः।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मेध्यातिथिर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २, ४, ५ गायत्री । ३, ६ निचृद् गायत्री॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Come, O Soma, bless and sanctify the dedicated celebrant for advancement and achievement of his life’s mission and bring us noble vigour and vitality, a brave progeny and heroic powers of progress.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे कर्मयोगी पुरुष आपल्या उद्योगाने सदैव अभ्युदयाचे अभिलाषी असतात त्यांना परमात्मा अनंत प्रकारचे ऐश्वर्य प्रदान करतो. ॥६।

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