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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 48 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 48/ मन्त्र 2
    ऋषिः - कविभार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    संवृ॑क्तधृष्णुमु॒क्थ्यं॑ म॒हाम॑हिव्रतं॒ मद॑म् । श॒तं पुरो॑ रुरु॒क्षणि॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सव्ँम्वृ॑क्तऽधृष्णुम् । उ॒क्थ्य॑म् । म॒हाऽम॑हिव्रतम् । मद॑म् । श॒तम् । पुरः॑ । रु॒रु॒क्षणि॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    संवृक्तधृष्णुमुक्थ्यं महामहिव्रतं मदम् । शतं पुरो रुरुक्षणिम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सव्ँम्वृक्तऽधृष्णुम् । उक्थ्यम् । महाऽमहिव्रतम् । मदम् । शतम् । पुरः । रुरुक्षणिम् ॥ ९.४८.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 48; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (संवृक्तधृष्णुम्) धर्मपथमपहायाधर्मपथमाश्रितानां दुराचारिणां नाशकं (उक्थ्यम्) स्तुत्यं (महामहिव्रतम्) महाश्रेष्ठव्रतकर्तारम् (मदम्) आनन्दकारकं (शतं पुरो रुरुक्षणिम्) दुष्टपुरनाशकं भवन्तं स्तुमः ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (संवृक्तधृष्णुम्) धर्मपथ को छोड़ अधर्मपथ को ग्रहण करनेवाले दुराचारियों को नाश करनेवाले (उक्थ्यम्) स्तुति करने योग्य (मदम्) बड़े श्रेष्ठ व्रतों को धारण करनेवाले (शतं पुरो रुरुक्षणिम्) आनन्दजनक दुष्कर्मियों के अनेक पुरों को नाश करनेवाले आपकी स्तुति करते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    परमात्मा सत्य के विरोधी अनन्त दुष्टों का भी नाश करनेवाला है, इसलिये सत्यव्रती होने के लिये उसी प्रकाशस्वरूप परमात्मा की उपासना की आवश्यकता है; उससे सम्पूर्ण अज्ञानों को दूर करके एकमात्र अपने सच्चे ज्ञान का प्रकाश करें ॥२॥

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    विषय

    'शतं पुरो रुक्षणिम्' [clearing, of the slum]

    पदार्थ

    [१] हम उस सोम को [ईमहे =] चाहते हैं जो कि (संवृक्तधृष्णुम्) = [संवृक्त-संछिन्न] नष्ट किये हैं, धर्षणशील शत्रु जिसने ऐसा है। यह सोम 'काम-क्रोध-लोभ' को नष्ट करता है, ये शत्रु हमारा धर्षण करते हैं । सुरक्षित सोम इन धर्षक शत्रुओं को छिन्न कर डालता है। (उक्थ्यम्) = यह सोम स्तुत्य है अथवा हमें स्तुति में प्रेरित करनेवाला है। सोम के रक्षित होने पर हम प्रभु-स्तवन की ओर प्रवृत्त होते हैं। यह सोम (महामहिव्रतम्) = महान् बहुत कर्मोंवाला है । सोम का रक्षण करनेवाला पुरुष महनीय कर्मों में प्रवृत्त रहता है। यह सोम (मदम्) = हमारे लिये उल्लास को देनेवाला है । [२] यह सोम शरीर में बने हुए असुरों के (शतम्) = सैकड़ों (पुरः) = नगरों को (रुरुक्षणिम्) = [विनाशयन्तम्] नष्ट करनेवाला है। 'काम' इन्द्रियों में, 'क्रोध' मन में व 'लोभ' बुद्धि में अपना नगर बनाता है। इन सब नगरों को यह सोम विध्वस्त करता है। यह सोम हमारे शरीर को असुर- पुरियों की स्थापना से मलिन नहीं होने देता। इन आसुरभावों से [slum] में परिवर्तित हुए हुए शरीर को इन के विनाश से फिर से यह सोम सुन्दर बना देता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम शत्रुओं का धर्षण करनेवाला है, हमें स्तुति में प्रवृत्त करता है, महनीय कर्मों के प्रति झुकाववाला बनाता है, उल्लासमय करता है। यह असुरों की नगरियों का विध्वंस करता है।

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    विषय

    अध्यात्म में आत्मा की उपासना।

    भावार्थ

    (संवृक्त-धृष्णुम्) घर्षण करने वाले शत्रुओं के मूलोच्छेदक, (उक्थ्यं) स्तुतियोग्य, (महामहिव्रतं) बड़े २ कर्म करने वाले, (मदम्) आनन्दप्रद, (शतं पुरः) सैकड़ों गढ़ियों पर (रुरुक्षिणं) चढ़ने वाले तुझ से हम नाना ऐश्वर्य प्राप्त करें। (२) अध्यात्म—यह आत्मा क्रोधादि का नाशक, बड़ा व्रतपालक, सौ हृदय नाड़ियों में आरुढ, उनका वशयिता है, उसकी उपासना करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कविर्भार्गव ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ५ गायत्री। २-४ निचृद् गायत्री॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    We worship you, eliminator of arrogance and pride, adorable, observer of lofty vows of discipline, inspiring, and breaker of a hundred strongholds of darkness.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर सत्याच्या विरोधी असणाऱ्या अनंत दलांचा नाश करणारा आहे. त्यामुळे सत्यव्रती होण्यासाठी त्याच प्रकाशस्वरूप परमेश्वराच्या उपासनेची आवश्यकता आहे. कारण संपूर्ण अज्ञान दूर करून एकमेव आपल्या खऱ्या ज्ञानाचा प्रकाश करतो. ॥२॥

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